गुजरात हाई कोर्ट ने बच्चों को स्कूल भेजे जाने की न्यूनतम आयु को लेकर सख्त टिप्पणी की है।हाई कोर्ट ने कहा कि 3 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्री-स्कूल जाने के लिए मजबूर करने वाले माता-पिता गैरकानूनी कार्य कर रहे हैं।कोर्ट ने कहा कि कोई भी प्री-स्कूल ऐसे बच्चे को दाखिला नहीं दे सकता, जिसने उस वर्ष 1 जून को तीन साल की आयु पूरी नही की हो।
क्या है मामला?
इस साल 1 जून को 6 वर्ष की आयु पूरी नहीं करने वाले बच्चों के अभिभावकों के एक समूह ने कक्षा एक में प्रवेश के लिए 6 साल की आयु सीमा निर्धारित करने वाली गुजरात सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी थी।
उन्होंने कहा था कि उनके बच्चों ने प्री-स्कूल में 3 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन 1 जून तक 6 साल की आयु पूरी नहीं की है और उन्हें वर्तमान शैक्षणिक सत्र में छूट मिलनी चाहिए।
क्या कहती है नई शिक्षा नीति?
नई शिक्षा नीति 2020 की बात करें, तो बच्चों को नर्सरी के लिए तीन साल, लोअर किंडरगार्टन (LKG) के लिए चार साल में एडमिशन दिया जाना चाहिए वहीं किंडरगार्टन (UKG) के लिए ये उम्र पांच साल है। इसका मतलब है कि बच्चों को छह साल की उम्र में कक्षा 1 में एडमिशन करने से पहले तीन साल का ये बेस पूरा करना होगा।
RTE अधिनियम के नियमों के उल्लंघन के दोषी हैं माता-पिता कोर्ट
हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने कहा, “प्री-स्कूल में 3 साल की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा बच्चे को औपचारिक स्कूल की कक्षा 1 में दाखिला लेने के लिए तैयार करती है।”कोर्ट ने कहा, “6 वर्ष की आयु पूरी नहीं करने वाले बच्चों के याचिकाकर्ता माता-पिता किसी भी तरह की छूट की मांग नहीं कर सकते क्योंकि वे शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के तहत नियमों के उल्लंघन के दोषी हैं।”
हाई कोर्ट ने और क्या कहा?
हाई कोर्ट ने कहा, “याचिका में तर्क दिया गया है कि उनके बच्चे कक्षा 1 में दाखिले लिए तैयार हैं क्योंकि उन्होंने शैक्षणिक सत्र 2020-21 में दाखिला लेकर प्री-स्कूल में 3 साल की प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली है।”कोर्ट ने कहा कि इस मामले में इन बच्चों ने प्री-स्कूल में भर्ती किए जाने से पहले 3 वर्ष की आयु पूरी नहीं की थी और अब इनके माता-पिता कक्षा 1 में दाखिले के लिए छूट मांग रहे हैं।