16 मई 2025,एक तारीख जो अब भारतीय खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो चुकी है। इस दिन दोहा (कतर) में आयोजित डायमंड लीग मीट के दौरान नीरज चोपड़ा ने पहली बार अपना भाला 90.23 मीटर दूर फेंका। यह केवल एक थ्रो नहीं था, बल्कि यह उस मुकाम की प्राप्ति थी, जिसका इंतज़ार पूरा देश सालों से कर रहा था। नीरज चोपड़ा के करियर में यह एक प्रतीकात्मक लम्हा था, जिसने उनकी क्षमता और प्रतिबद्धता पर लगे तमाम सवालों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया।
पिछले कुछ वर्षों से नीरज चाहे किसी इंटरव्यू में जाएं, प्रेस कॉन्फ्रेंस करें, या किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लें, हर बार उनसे एक ही सवाल पूछा जाता…”नीरज, 90 मीटर कब पार करोगे?” यह सवाल सिर्फ खेल प्रेमियों या पत्रकारों का नहीं था, बल्कि यह उनके खुद के लिए भी एक मानसिक लक्ष्य बन चुका था। उन्होंने कई बार 88 मीटर से ऊपर के थ्रो किए, 89.94 मीटर तक भी पहुंचे, लेकिन वह आधा मीटर मानो एक खाई बन गया था, जिसे पार करना आसान नहीं लग रहा था।
नीरज चोपड़ा के थ्रो में तकनीक, ताकत और टाइमिंग का संगम था। लेकिन इस बार कुछ चीज़ें खास थीं जैसे – नीरज की टीम ने उनके थ्रो की डिटेल्ड वीडियो एनालिसिस की। पाया गया कि उनका ‘release angle’ और ‘approach speed’ में थोड़ा सा सुधार करने की ज़रूरत है। उन्होंने थ्रो की शुरुआत के समय ज़्यादा रफ्तार और थ्रो के समय एक बेहतर ‘hip-block’ पर काम किया, जिससे भाले को हवा में अतिरिक्त समय और दिशा मिली।
नीरज ने अपने वेट ट्रेनिंग और core strengthening प्रोग्राम में बदलाव किया। इसके तहत explosive strength बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया, खासकर उनकी legs और shoulder mobility पर। यह सब उनके स्प्रिंटिंग मूवमेंट और थ्रो के अंतिम क्षणों में शक्ति देने में सहायक रहा।
नीरज के लिए यह थ्रो मानसिक बाधा बन चुका था। इसके लिए उन्होंने स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट की मदद ली। ध्यान (meditation), visualisation और breathing techniques जैसी विधियों से उन्होंने अपने ऊपर बने दबाव को खत्म किया और खुद को उस क्षण के लिए मानसिक रूप से तैयार किया।
नीरज चोपड़ा ने यह ऐतिहासिक थ्रो दोहा के लुसैल स्टेडियम में किया। वहां की हवाएं उस दिन एथलीट्स के लिए अनुकूल थीं। जैवलिन थ्रो में tailwind (पीछे से चलने वाली हवा) की अहम भूमिका होती है। यदि हवा की दिशा और गति सही हो, तो भाला हवा में अधिक समय तक टिक सकता है और दूरी बढ़ सकती है।
16 मई को कतर की राजधानी दोहा में तापमान 28 डिग्री सेल्सियस के आस-पास था और लगभग 2.3 m/s की tailwind थी…जो कि वर्ल्ड एथलेटिक्स द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर भी थी। इस तरह मौसम ने नीरज के ऐतिहासिक थ्रो में निर्णायक भूमिका निभाई।
जब नीरज चोपड़ा ने 90.18 मीटर थ्रो किया, तो उन्होंने रेव्ज़ स्पोर्ट्स को दिए इंटरव्यू में कहा:”Finally! अब कोई नहीं पूछेगा की 90 मीटर कब आएगा!’
यह वाक्य जितना सीधा था, उतना ही भावनात्मक भी। इसमें सालों की तपस्या, आलोचनाओं से उपजी झुंझलाहट और संतोष का एक मिला-जुला मिश्रण था।
नीरज चोपड़ा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि 90 मीटर उनके लिए अंत नहीं, बल्कि एक शुरुआत है। अब उनका अगला लक्ष्य 91+ मीटर है। वह कहते हैं कि अब वह थ्रो की दूरी के पीछे नहीं भागेंगे, बल्कि टेक्नीक और consistency पर फोकस करेंगे। यह विजन दर्शाता है कि नीरज केवल एक एथलीट नहीं, बल्कि एक परिपक्व खिलाड़ी हैं जो अपनी हर सीमा को विस्तार देना जानते हैं।
नीरज चोपड़ा का 90.23 मीटर थ्रो केवल एक संख्या नहीं है। यह उन तमाम रातों का फल है, जब उन्होंने दर्द में भी ट्रेनिंग छोड़ी नहीं। यह उस आत्म-संशय का उत्तर है, जो हर खिलाड़ी के अंदर होता है। यह भारतीय खेल संस्कृति के लिए एक बेंचमार्क है, जो आने वाले भाला फेंक खिलाड़ियों को दिखाएगा कि एक देशी लड़का, जो हरियाणा के एक छोटे गांव से निकला था, कैसे विश्व एथलेटिक्स में इतिहास रच सकता है।