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Reading: Nihon Hidankyo: दर्द भरी शुरुआत से लेकर शांति के ‘नोबेल’ तक
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Nihon Hidankyo: दर्द भरी शुरुआत से लेकर शांति के ‘नोबेल’ तक

हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु धमाकों मे बचे लोगों को 'हिबाकुशा' कहते हैं। शांति का नोबेल जीतने वाले 'Nihon Hidankyo' ने 'हिबाकुशा' की आवाज़ को एक मंच दिया।

Last updated: अक्टूबर 11, 2024 4:34 अपराह्न
By Rajneesh 7 महीना पहले
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4 Min Read
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दुनिया ने जब 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरते देखा, तब उन शहरों में बचे हुए लोगों के दर्द को कोई नहीं समझ पाया था। लाखों लोग उसी समय मारे गए और हजारों लोग कई वर्षों तक इस त्रासदी के दुष्परिणाम झेलते रहे। इन दर्दनाक घटनाओं के बीच कुछ लोग बचे रहे, जिन्हें हम ‘हिबाकुशा’ कहते हैं। यानी वे लोग जो परमाणु बम हमले में जीवित बचे। जापान के इन हिबाकुशा ने न केवल अपने घावों के साथ जीना सीखा, बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरों के प्रति जागरूक करने का बीड़ा भी उठाया। ‘Nihon Hidankyo’ इन्हीं सर्वाइवरों का एक संगठन है जिसने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया और इस वर्ष, उनके साहस और संघर्ष को मान्यता देते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

‘Nihon Hidankyo’, जिसका पूरा नाम ‘जापान कन्फेडरेशन ऑफ एटोमिक एंड हाइड्रोजन बम सर्वाइवर्स ऑर्गनाइजेशन’ है, की स्थापना 1956 में हुई थी। इसका उद्देश्य था कि परमाणु बम हमले के बचे लोगों की सहायता करना, उनके हक के लिए आवाज उठाना, और दुनिया को यह बताना कि परमाणु हथियार कितने विनाशकारी होते हैं। यह संगठन न केवल जापान में बल्कि पूरे विश्व में परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए काम कर रहा है।

हिरोशिमा और नागासाकी के बचे हुए लोगों के दिल में हमेशा से एक घाव था, जिसे वे न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी महसूस करते रहे। Nihon Hidankyo का मकसद सिर्फ यह नहीं था कि वे अपने जीवन की इस सच्चाई को स्वीकार करें, बल्कि दुनिया को यह संदेश देना था कि ऐसा कभी किसी के साथ न हो।

‘हिबाकुशा’ अपने अनुभवों को दुनिया के सामने लाने में आगे रहे हैं। उन्होंने अपने जले हुए शरीर और टूटे हुए दिल के साथ हमेशा शांति का संदेश फैलाया है। Nihon Hidankyo का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह रहा है कि उन्होंने इन ‘हिबाकुशा’ की आवाज़ को एक मंच दिया।

इन लोगों ने अपने दर्दनाक अनुभवों को साझा किया, ताकि दुनिया परमाणु हथियारों के खिलाफ खड़ी हो सके। ‘हिबाकुशा’ का यह संदेश सीधा था… “हमने जो देखा और झेला, वह दुनिया के किसी भी इंसान को झेलने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।”

‘Nihon Hidankyo’ का संघर्ष सिर्फ हिबाकुशा की कहानी नहीं है, यह मानवता की जीत की कहानी है। यह उस जिद्दी विश्वास की कहानी है जो तब पैदा होती है जब इंसान सबसे बुरे समय से गुज़रता है और फिर भी उठ खड़ा होता है, दुनिया को बेहतर बनाने के लिए। उनकी इस जिद्दी उम्मीद ने ही उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार तक पहुंचाया। यह पुरस्कार एक वादा भी है कि दुनिया परमाणु हथियारों से मुक्त हो, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति हिबाकुशा की तरह दर्द न सहे।

जब ‘Nihon Hidankyo’ के सदस्य इस पुरस्कार को प्राप्त करेंगे, तो वह सिर्फ एक सम्मान नहीं होगा, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए एक श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने अपने परिवार, दोस्तों और शहरों को खो दिया।

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