कल पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट को 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई है। संजीव पर आरोप है कि, उन्होंने 1996 में राजस्थान के वकील समर सिंह राजपुरोहित को पालनपुर होटल रूम में हुए एक झूठे ड्रग्स के मामले में फसाया था। अदालत के इस फैसले के बाद जनता के बीच हलचल मच गई है। लेकिन इसका ज्यादा असर अगर किसी पर पड़ा है तो वो है संजीव का परिवार। संजीव के परिवार का कहना है कि संजीव को गलत तरीके से इस मामले में फसाया गया है। संजीव की बेटी आकाशी भट्ट ने तो यह तक कह दिया है कि सिर्फ संजीव ही है जो नरेंद्र मोदी को 2002 में हुए गोधरा गुजरात दंगो से जोड़ सकते हैं।
संजीव की पत्नी श्वेता ने संजीव की निर्दोषी का सबूत देते हुए एक 10 पन्नों की फाइल के X में एक ट्वीट साझा किया है। उस ट्वीट में उन्होंने 74 पॉइंट्स में पालनपुर मामले को समझाया है। श्वेता ने ट्वीट में लिखा है कि संजीव को उस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है जो उन्होंने किया ही नहीं था।
यह मामला तब का है जब संजीव भट्ट 1996 में बनासकांठा के जिला पुलिस अधीक्षक (DSP) के रूप में तैनात थे। अप्रैल 1996 में, पालनपुर पुलिस को सूचना मिली थी कि सुमेरसिंह राजपुरोहित नाम का एक व्यक्ति अवैध रूप से अफ़ीम बेच रहा था। जिसके बाद पुलिस ने छापा मारा था और उस छापे में उन्होंने सुमेरसिंह के नाम से पालनपुर होटल के बुक किए गए कमरे से अफीम बरामद किया था। अफीम बरामद होने के बाद सुमेरसिंह को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ मामला दर्ज हो गया था।
हालाँकि, परीक्षण पहचान परेड में संजीव गवाहों की पहचान करने में असमर्थ रहे थे जिसके बाद उन्हें सुमेरसिंह की रिहाई का आदेश मिला था। इसके बाद संजीव ने आगे की जांच करने के निर्देश भी दिए थे जिससे यह पता लग पाए की किसने सुमेरसिंह पर अफीम के झूठे आरोप लगाए थे।
इसके छह महीने बाद ही सुमेरसिंह ने पुलिस निरीक्षक आई.बी. व्यास और न्यायाधीश आर.आर. जैन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी और उन पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने एक स्थानीय न्यायाधीश के आदेश पर उसे फसाया था। जिसके बाद एक जांच की गई थी और 2000 में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर हो गई थी।लेकिन 2018 में गुजरात हाई कोर्ट को यह गुमराह किया गया था कि इस मामले में किसी प्रकार की जांच हुई ही नहीं हुई थी। जिसके बाद कोर्ट ने मामले की दोबारा जांच के आदेश दिए थे। इस मामले को दोबारा खोला गया और संजीव पर सुमेरसिंह पर अफीम रखने के झूठे आरोप के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। ट्रायल कोर्ट ने संजीव के खिलाफ कम सबूत होने के बावजूद उन्हें दोषी ठहरा दिया था।
श्वेता ने फाइल में लिखा है कि संजीव के खिलाफ अभियोजन पक्ष का मामला पूरी तरह से मनगढ़ंत कहानी पर आधारित है। अभियोजन पक्ष के मामले में कई विसंगतियां पाई गई हैं। श्वेता ने इसका उदाहरण देते हुए लिखा है कि अभियोजन पक्ष ने मुख्य आरोपी आई.बी. व्यास को ही एक सरकारी गवाह बना दिया था। जब की व्यास ने खुद अपने पिछले बयानों में कहा था कि उन्होंने ही इस मामले में छापेमारी और जांच की थी। लेकिन एक सरकारी गवाह बनने के बाद उसने भी अपने बयान में संजीव को फंसाने के लिए अभियोजन पक्ष की मनगढ़ंत कहानी ही दोहराई।
श्वेता ने बताया कि, संजीव को किसी भी तरह के बचाव गवाह को बुलाने की अनुमति नहीं दी गई थी और उन्हें खुद भी अपने बचाव में गवाही देने नहीं दिया गया था। श्वेता ने निचली अदालत पर भी आरोप लगाए है कि निचली अदालत के जज ने भी संजीव को हाइयर कोर्ट में अपनी याचिका देने का समय नहीं दिया था। श्वेता अपने ट्वीट के अंत में लिखती है कि, “एक बार फिर, एक और ईमानदार अधिकारी का खतरनाक उदाहरण बनाया गया है, जबकि हम सिर्फ भय के साथ इसे चुपचाप देखते रहे।
संजीव के परिवार और उनके समर्थकों का ऐसा मानना है कि गुजरात सरकार ने अपने खिलाफ संजीव की मुंहफट आदत होने के कारण उन्हें फंसाया है। संजीव उन अधिकारियों में शामिल थे जिन्होंने 2002 में हुए गोधरा गुजरात दंगों में गुजरात सरकार (भाजपा) की सच्चाई को उजागर किया था। संजीव की सजा की बहुत निंदा हो रही है। लोगों का मानना है कि यह राजनीति से जुड़ा मामला है और संजीव को उनकी ईमानदारी की वजह से फसाया गया है।