हर साल आज यानी 24 मार्च को ‘International Day for the Right to the Truth concerning Gross Human Rights Violations and for the Dignity of Victims’ मनाया जाता है। यह दिन उन लोगों के साहस और बलिदान को समर्पित है जिन्होंने मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया और अपने जीवन को न्याय और सच्चाई के लिए समर्पित कर दिया। साथ ही, यह दिन मानवता के खिलाफ अपराधों के पीड़ितों की गरिमा को बनाए रखने और न्याय दिलाने के महत्व को भी हाईलाइट करता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 दिसंबर 2010 को इस दिन को औपचारिक रूप से मान्यता दी थी। इस तारीख को चुना गया क्योंकि 24 मार्च 1980 को अल सल्वाडोर के आर्चबिशप ऑस्कर अर्नाल्फो रोमेरो की हत्या कर दी गई थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में गरीबों, उत्पीड़ितों और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया और इसी संघर्ष के कारण उनकी हत्या कर दी गई।
रोमेरो ने अपने देश में सैन्य शासन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई थी। वे अल सल्वाडोर में सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनकी हत्या के बाद भी उनकी विचारधारा जीवित रही, और वे दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रतीक बन गए।
ये क्यूँ है जरूरी?
किसी भी लोकतांत्रिक समाज में नागरिकों का यह मौलिक अधिकार है कि वे जान सकें कि उनके साथ या उनके समाज में क्या हुआ। जब राज्य या शक्तिशाली समूह मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, तो सच्चाई को छिपाने की कोशिश की जाती है। इस दिन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारें, न्यायालय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं सच्चाई को उजागर करें और इसे जनता के सामने रखें। युद्ध, दमन, जबरन गायब किए गए लोगों और मानवता के खिलाफ अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाना इस दिन का प्रमुख उद्देश्य है।
दुनिया भर में कई कार्यकर्ता और पत्रकार मानवाधिकारों के लिए लड़ते हैं। लेकिन सच्चाई को उजागर करने के प्रयासों में कई लोग मारे जाते हैं, जेल में डाल दिए जाते हैं या धमकाए जाते हैं। यह दिन उनके संघर्ष और योगदान को मान्यता देने के लिए भी समर्पित है।
इतिहास गवाह है कि कई मानवाधिकार उल्लंघन करने वाले अपराधी कभी भी सजा नहीं पाते। यह दिन इस बात पर जोर देता है कि दोषियों को सजा मिले और न्याय व्यवस्था मजबूत हो।
दुनिया के कई देशों में आज भी मानवाधिकारों का हनन जारी है। कई जगहों पर पत्रकारों की आवाज दबाई जाती है, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न किया जाता है, और विरोधियों को गायब कर दिया जाता है। चिली का पिनोचे शासन 1973 से 1990 तक चले तानाशाही शासन में हजारों लोग लापता हुए और मारे गए। रवांडा नरसंहार जिसमें जातीय संघर्ष के दौरान 8 लाख से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई और सीरिया के गृहयुद्ध इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
भारत भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों से अछूता नहीं है। चाहे वह 1984 के सिख विरोधी दंगे या कश्मीर में जबरन निकाले गए लोग मानवाधिकारों के हनन की दास्तां ही तो कहते हैं।
हमें उन आवाजों का समर्थन करना चाहिए जो सच्चाई को उजागर करने का प्रयास कर रही हैं। नागरिकों को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना जरूरी है। मानवाधिकारों के मुद्दों पर चर्चा करना और जागरूकता अभियान में भाग लेना। जो संगठन मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, उनका सहयोग करना। अगर कहीं अन्याय हो रहा है, तो हमें उसे उजागर करने का साहस रखना चाहिए।
सत्य का अधिकार केवल एक कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह समाज में न्याय और समानता बनाए रखने का आधार है। जब तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा और सच्चाई सामने नहीं आएगी, तब तक समाज में वास्तविक शांति और स्थिरता संभव नहीं होगी।
आज का यह दिन हमें याद दिलाता है कि इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता, और हमें लगातार यह सुनिश्चित करना होगा कि जो लोग न्याय के लिए लड़े, उनका बलिदान व्यर्थ न जाए।