कुछ समय पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत में 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में वोटर टर्नआउट को प्रभावित करने को लेकर USAID द्वारा 21 million dollars की फंडिंग का दावा किया था। उनके मुताबिक, इस फंडिंग का मकसद किसी और को चुनाव जितवाना था, जिसके बाद भारत के राजनीतिक गलियारों में लंबी बहस छिड़ गई थी। कई नेताओं ने इसे विदेशी interference मानते हुए जांच की मांग की थी। अब इसमें एक नया खुलासा हुआ हैं।
“The Indian Express” ने एक जांच की, जिसमें पाया गया कि भारत को कोई फंड नहीं मिला हैं। Official records की मानें तो यह फंडिंग बांग्लादेश के लिए तय की गई थी, भारत के लिए नहीं। जांच की मानें तो, USAID ने 2022 में ये राशि बांग्लादेश में चुनावी प्रक्रिया को मज़बूत करने और युवाओं के “democratic participation” को बढ़ाने के लिए आवंटित की गई थी।
यह राशि “Amar Vote Amar” नामक एक programme की मदद हेतु दी गई थी, जिसका बाद में नाम बदलकर “Nagorik” कर दिया गया। इस फंडिंग का मकसद बांग्लादेशी नागरिकों, खासतौर पर युवाओं की voting और electoral process में भागीदारी को बढ़ाना था। बांग्लादेश में कई संगठनों को यह राशि मिली जैसे National Democratic Institute (NDI), International Republican Institute (IRI), International Foundation for Electoral Systems (IFES) आदि।
इन संगठनों ने बांग्लादेश में कई कार्यक्रम आयोजित किए और लोगों को voting और electoral process की अहमियत से रुबरु कराया। USAID और अन्य संगठनों के अनुसार, इसका उद्देश्य बांग्लादेश के democratic system को मज़बूत करना था, लेकिन ट्रंप के बयान ने इस भारत से जोड़कर गलतफहमी पैदा की, जिसके बाद भारतीय नेताओं ने इसे विदेशी हस्तक्षेप मानकर जांच की मांग की।
पूर्व Chief Election Commissioner एस. वाय. कुरैशी ने भी इस मामले में पहले ही कह दिया था कि 2012 में भारतीय चुनाव आयोग ने IFES के साथ एक समझौता ज़रूर किया था, मगर उसमें कोई वित्तीय मदद प्रदान नहीं की गई थी।
किसी भी राजनीतिक या सरकारी बयान को तब तक गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, जब तक सही facts पेश न किए जाएं, नहीं तो समाज में काफ़ी तनाव फैल सकता हैं। ट्रंप अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं, लेकिन अब वे एक ज़िम्मेदारी भरे पद पर आसीन हैं और उनसे दुनिया को “responsible behaviour” की ही उम्मीद होगी।