भारत और पाकिस्तान के बीच “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान, तुर्की ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बात कर समर्थन व्यक्त किया। सिर्फ इतना ही नहीं। भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा हमले के लिए भेजे गए जिन Drones को तबाह किया वो चीन और तुर्की के द्वारा ही भेजे गए थे।
वैसे भारत और तुर्की के संबंधों का इतिहास जटिल और उतार-चढ़ाव भरा रहा है। विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे और पाकिस्तान के साथ तुर्की के घनिष्ठ संबंधों के कारण, भारत ने तुर्की की नीतियों को कई बार अपने हितों के विरुद्ध पाया है।
1948 में भारत और तुर्की के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए। हालांकि, शीत युद्ध के दौरान तुर्की नाटो का सदस्य था और पश्चिमी गुट का हिस्सा था, जबकि भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख सदस्य था। इस वैचारिक भिन्नता के कारण दोनों देशों के संबंध सीमित रहे।
कश्मीर मुद्दे पर तुर्की की स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय रही है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद, तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस कदम की आलोचना की और पाकिस्तान के पक्ष में बयान दिए। राष्ट्रपति एर्दोआन ने कश्मीर को घिरे हुए क्षेत्र के रूप में वर्णित किया और वहां के लोगों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की।
तुर्की और पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाया है। तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन तकनीक और सैन्य उपकरण भेजे हैं, जिनका उपयोग भारत के खिलाफ किया गया है।
भारत ने तुर्की पर आरोप लगाया है कि वह कुछ गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से भारतीय मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाने का प्रयास कर रहा है। उदाहरण के लिए, तुर्की की एक NGO, IHH, पर भारत में प्रतिबंधित संगठन PFI के साथ संबंध होने का संदेह है।
भारत ने तुर्की की कई बार मानवीय सहायता और आपदा राहत के समय मदद की है, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग की भावना दिखती है। सबसे हालिया उदाहरण 6 फरवरी 2023 को आए विनाशकारी भूकंप के बाद देखने को मिला था, जब भारत ने “ऑपरेशन दोस्त” के तहत तुरंत राहत भेजी थी। इस मिशन के तहत भारत ने तुर्की को भारतीय सेना की मेडिकल टीम, खोज और बचाव दल, राहत सामग्री, उपकरण, दवाइयाँ और मोबाइल हॉस्पिटल मुहैया कराये थे।
उसी समय भारतीय वायुसेना के विमान सी-17 ग्लोबमास्टर के ज़रिए तुर्की के आदाना और गज़ियांतेप इलाकों में मदद पहुँचाई गई थी। यह कदम भारत की “वसुधैव कुटुंबकम” की नीति को दर्शाता है और यह भी कि भारत आपदा की घड़ी में बिना राजनीतिक मतभेद के मानवता के पक्ष में खड़ा रहता है। इस मदद को तुर्की सरकार और जनता ने सराहा भी था। लेकिन बुजदिल जब मौका मिले ‘पीठ में खंजर घोंप देता है।’
भारत और तुर्की के संबंधों की मौजूदा स्थिति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ दोनों देशों के बीच भरोसे की दीवार गिर सकती है। एक ओर भारत ने तुर्की को बार-बार दोस्ती का हाथ बढ़ाया l लेकिन तुर्की ने बार-बार हमें धोखा दिया है। एक मित्र, चाहे व्यक्ति हो या राष्ट्र…जब विश्वासघात करे तो क्या करना चाहिए? महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को यही सिखाया…”क्षमा वीरस्य भूषणम्”, परंतु यदि क्षमा से अधर्म बढ़ता है, तो युद्ध भी धर्म हो जाता है। मतलब यह कि क्षमा और संयम तभी तक जब तक वह हमारे हितों और नैतिकता के अनुकूल हो।
भारत, एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते, क्षमाशील हो सकता है…पर भूलने वाला नहीं। इसलिए यह समय है कि तुर्की अपने रुख की समीक्षा करे और तय करे कि वह भारत के साथ सच्ची दोस्ती चाहता है या भू-राजनीति की बिसात पर सिर्फ मोहरा बनना। क्योंकि रिश्ते सम्मान और विश्वास से बनते हैं, मजबूरी और अवसरवाद से नहीं।