1 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने UCC को लेकर लगाई गई सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इनमें केंद्र और विधि आयोग को समान नागरिक संहिता (UCC) का मसौदा बनाने और उसे तत्काल लागू करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनी पुष्करणा ने दलील सुनने के बाद कहा कि, भारत का विधि आयोग पहले से ही इस मुद्दे पर काम कर रहा है और हम संसद को अलग से कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकते।
इससे पहले भी दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 नवंबर को एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा था कि, मार्च में सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई से इनकार कर चुका है। अब हम कुछ नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जेंडर न्यूट्रल और रिलीजन न्यूट्रल कानूनों के लिए याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वालों में भी उपाध्याय शामिल हैं।
कोर्ट कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकता
केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, कानून बनाना या नहीं बनाना विधायिका का काम है। जनता ने अपने निर्वाचित प्रतिनिधि चुने हैं। कोर्ट इस बारे में कोई निर्देश नहीं दे सकता है।
केंद्र ने कहा कि, याचिकाकर्ताओं ने जो राहत की मांग की है, वह न तो कानून के अनुरूप थी और न ही तथ्यात्मक थी। इसलिए इसे निकाल सकते हैं। साथ ही याचिका में कोई तथ्य नहीं है जो प्रभावित व्यक्ति को अदालत का दरवाजा दिखाता है।
याचिकाकर्ताओं ने यह मांगें रखी थीं
- तीन महीने के भीतर UCC का मसौदा तैयार करने के लिए विधि आयोग को निर्देश दिया जाए।
- विवाह की समान न्यूनतम आयु को UCC में शामिल किया जाए।
- तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता का आधार, गोद लेना और कस्टडी, तीन महीने के भीतर उत्तराधिकार और विरासत पर सार्वजनिक विचार-विमर्श के लिए वेबसाइट बनाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई स्थगित करने के कारण
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर आगे की सुनवाई स्थगित कर दी क्योंकि याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई मौजूद नहीं था। याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में जिन दस्तावेजों का उल्लेख किया था, उन दस्तावेजों को भी कोर्ट में पेश नहीं कर पाए।
2015 में UCC से जुड़ी एक याचिका ली गई थी वापस
हाई कोर्ट को सूचित किया गया कि मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने लिंग तटस्थ और धर्म तटस्थ कानूनों के संबंध में उपाध्याय की याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि मामला विधायी क्षेत्र में आता है और 2015 में उन्होंने वहां से यूसीसी के संबंध में एक याचिका वापस ली थी।