भारत के कुछ प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों में कैम्पस को सबके रहने लायक स्थान बनाने के कई नियमों के बावजूद, जाति आज भी एक जटिल मुद्दा बनी हुई है। जाति-आधारित भेदभाव कई रूपों में होता है। जैसे एक सवाल से की आपका पूरा नाम क्या है? भारत के कुछ प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों, भारतीय संस्थानो खास कर IIT और IIM, मे पूछे जाने वाला यह एक ऐसा प्रश्न है जो हॉस्टल मे अपने रूममेट के साथ पहली बार हाथ मिलाने, कॉफी के पहले कप के क्षणों के बाद और अनगिनत मौकों पर उठता रहता है। कुछ आरक्षित लोगों के लिए ये आइस ब्रेक करने का तरीका है। पूरा नाम सुनते ही दिमाग मे वो उन्हें एक स्टीरियोटाइप वैसल मे कैद कर देते हैं… लाख कोशिश कर ले सामने वाला लेकिन मजाल है कि व्यक्ती वैसल का ढक्कन खोल सामने वाले को एक भी मौका दे दे। पिछड़ी जातियों (ओबीसी) का इतना खराब प्रतिनिधित्व है कि इनमें से कुछ प्रमुख हैं। संस्थानों में इन श्रेणियों से एक भी संकाय सदस्य नहीं है।
राष्ट्रपति ने भी जाहिर की चिंता
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी इस समस्या को लेकर चिंता जाहिर की है।राष्ट्रपति मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में 10 जुलाई को विज़िटर्स कॉन्फ्रेंस-2023 का उद्घाटन करते हुए इस समस्या को लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों के सभी प्रमुखों, शिक्षकों और कर्मचारियों के साथ देश का ध्यान खींचा है। उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों के आत्महत्या की खबरें अक्सर मीडिया की सुर्खियां बनी रहती है। राष्ट्रपति ने ऐसे मामलों का भी जिक्र करते हुए इन घटनाओं को पूरे शिक्षा जगत के लिए चिंता का विषय बताया है।
ड्रॉपआउट करने वालों में ज्यादा तर आरक्षित वर्ग से
पीड़ित छात्र अधिकांश ड्रॉपआउट कर देते है, सर्वे लिस्ट लंबी है इस सूची में दिल्ली सबसे ऊपर है, इसके बाद खड़गपुर, बॉम्बे, कानपुर और मद्रास हैं। आईआईटी दिल्ली के एक अन्य संकाय सदस्य के अनुसार स्नातक स्तर पर पढ़ाई छोड़ने वाले अधिकांश छात्र आरक्षित वर्ग से हैं जो पाठ्यक्रम की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हैं।
भाषा की भी है समस्या
अनुपात के लिहाज से आरक्षित वर्ग के छात्रों की संख्या अधिक है। कार्यकर्ता इसके लिए इन प्रमुख संस्थानों, खासकर पुराने आईआईटी में जाति को एक कारक मानते हैं। आईआईटी में जाति-आधारित उत्पीड़न प्रत्यक्ष नहीं बल्कि व्यवस्थित है।” “आरक्षित श्रेणी के तहत आईआईटी में आने वाले अधिकांश छात्र गैर-अंग्रेजी माध्यम पृष्ठभूमि से हैं और संस्थान यह सुनिश्चित नहीं करते हैं कि परिवर्तन हो। इन छात्रों के पास योग्यता की कोई कमी नहीं है लेकिन भाषा की समस्या है जिसके कारण छात्रों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।” – (अनूप कुमार डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता )