पत्रकारिता का पेशा हमेशा से ही साहस और सच्चाई की खोज का प्रतीक रहा है। लेकिन कई बार यह जॉब पत्रकारों के लिए खतरनाक भी साबित होता है। बीते दिनों छत्तीसगढ़ के बीजापुर में लापता पत्रकार मुकेश चंद्राकर का शव बरामद हुआ था। उनका शव सुरेश चंद्राकर नाम के ठेकेदार के कंपाउंड में बने नए सेप्टिक टैंक में मिला था। कुछ समय पहले उन्होंने ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के खिलाफ सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की रिपोर्ट की थी। इस हत्या के प्रकाश में आने के बाद पत्रकारों की सुरक्षा का मामले पर बहस तेज़ हो गई। हालांकि आज ही की तारीख के दिन पत्राकारीता जगत को एक बड़ा झटका लगा था जब अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या कर दी गई थी।
बात 11 जनवरी 2002 की एक शाम की है, जब ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के पत्रकार ‘डैनियल पर्ल’ पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के एक होटल में उन्होंने एक व्यक्ति से मुलाकात कर थे। उस व्यक्ती को डैनियल अपना एक सोर्स मान रहे थे, लेकिन यह मुलाकात उनकी ज़िंदगी की आखिरी मुलाकात साबित हुई।
डैनियल एक खोजी पत्रकार थे, जिन्होंने कई संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग की थी। जनवरी 2002 में, वह पाकिस्तान में उन आतंकवादी संगठनों की जाँच कर रहे थे जो 9/11 हमले से जुड़े थे। वह ‘शेख मुबारिक अली गिलानी’ नाम के एक कट्टरपंथी इस्लामी नेता तक पहुँचने की कोशिश कर रहे थे, जिनका नाम ‘सूह बमबर’, ‘रिचर्ड रीड’ से जोड़ा गया था…वह व्यक्ति जिसने दिसंबर 2001 में एक विमान को उड़ाने की कोशिश की थी।
डैनियल पर्ल इसी सिलसिले में पाकिस्तान पहुँचे थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उनकी खोज उन्हें सीधे मौत के मुंह में ले जाएगी। होटल में उनसे मिलने वाले सोर्स इस व्यक्ति का असली नाम था ‘अहमद उमर सईद शेख’, जो ब्रिटिश मूल का पाकिस्तानी आतंकी था और उसके नाम के साथ पश्चिमी देशों के नागरिकों के अपहरण का लंबा इतिहास जुड़ा हुआ था। डैनियल उनसे मिलने इस उम्मीद में गए कि वह उन्हें कट्टरपंथी गिलानी से मिलवाने में मदद करेगा। पर यह एक ट्रैप था। जब वह एक कार में बैठे, तो उन्हें एहसास नहीं हुआ कि यह उन्हें उनकी मौत की ओर ले जा रही है। इसके बाद उनका अपहरण कर लिया गया और अगले नौ दिनों तक उन्हें बंधक बनाकर रखा गया।
पर्ल के अपहरणकर्ताओं ने उनसे जबरन वीडियो मैसेज रिकॉर्ड करवाया, जिसमें उन्होंने अमेरिकी नीतियों की आलोचना की। इसके बाद 1 फरवरी 2002 को उनका बेरहमी से गला काट दिया गया। हत्या का वीडियो 21 फरवरी 2002 को सामने आया, जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया। इस निर्मम हत्या को कथित रूप से खालिद शेख मोहम्मद (9/11 हमले का मास्टरमाइंड) ने अंजाम दिया था।
2002 में, पाकिस्तानी अदालत ने ‘अहमद उमर सईद शेख*’ को मौत की सजा सुनाई, लेकिन पाकिस्तान की ISI और आतंकियों के बीच संदिग्ध संबंधों के कारण यह सजा आज तक लागू नहीं हुई।
2021 में पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने उमर शेख को रिहा करने का आदेश दिया, जिससे अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आक्रोश फैल गया। पर्ल के परिवार ने इसे न्याय का अपमान बताया।
डैनियल पर्ल की हत्या कोई पहली घटना नहीं थी, न ही यह आखिरी होगी। दुनियाभर में पत्रकारों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है, खासकर जब वे युद्ध क्षेत्रों, तानाशाही शासनों और आतंकवाद प्रभावित इलाकों में काम करते हैं।
साल 2021 तक, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) के अनुसार, हर साल औसतन 50 से 100 पत्रकार मारे जाते हैं। कई देशों में सरकारें भी खुद पत्रकारों को चुप कराने के लिए दमनकारी नीतियाँ अपनाती हैं। पाकिस्तान, चीन, रूस, और सऊदी अरब जैसे देशों में आज प्रेस की स्वतंत्रता शब्द मात्र है।
डैनियल पर्ल की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सच्चाई की खोज पर हमला था। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि पत्रकारों की सुरक्षा केवल उनका अधिकार ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सच्चाई को सुरक्षित रखने का एक जरिया है। ऐसी घटनाओं से बचने के लिए और प्रेस स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए सभी सरकारों को स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को समर्थन देना चाहिए।
जब तक पत्रकार सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक सच्चाई को दबाने की साजिशें कामयाब होती रहेंगी। इसलिए यह समय की मांग है कि दुनिया भर के पत्रकारों के लिए सुरक्षा अधिकार को अनिवार्य बनाया जाए।