पूरे देश में लोकसभा चुनाव की हलचल दिखाई दे रही है। देश के हर राज्य में जनता अपने अपने पसंद के दल को वोट देने की तैयारी में दिखाई दे रही है। लेकिन एक ऐसा राज्य है जहां के दो गांव में स्थिति कुछ अलग दिखाई दे रही हैं। जहां पर इन गांवों के लोग चाहते ही नहीं है कि, उनके यहां पर कोई भी सरकार आए। इसलिए वह चुनाव का ही बहिष्कार कर रहे हैं। वह राज्य तमिलनाडु है। इसके दो गांव एकानापुरम और नागापट्टू में पिछले 623 दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है। यह प्रदर्शन राज्य में चलने वाला अब तक का सबसे लंबा विरोध प्रदर्शन है। दोनों गांव में कुल 1600 वोटर्स हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करना शुरू कर दिया हैं।
क्या है बहिष्कार का कारण?
तमिलनाडु की सरकार परांदूर में चेन्नई का दूसरा हवाई अड्डे बनाने का विचार कर रही है। इस प्रोजेक्ट के लिए वहां के 13 गांवों का चयन हुआ है, जिसमें इन दोनों गांवों के नाम भी शामिल है। इस हवाई अड्डे को परणदुर के 5368.93 एकड़ जमीन में बनाने का विचार किया गया है। इस आंकड़े में 47% सिंचित कृषि भूमि, 16% शुष्क कृषि भूमि और 27% जल निकाय यानी सिंचाई टैंक शामिल है। इस प्रोजेक्ट से गांव के लगभग 1,005 परिवार प्रभावित होंगे और 36,635 से ज्यादा पेड़ काट दिये जायेंगे। प्रपोज्ड प्लान के मुताबिक, झीलों के ऊपर दो रनवे आएंगे, जो 400 एकड़ जमीन की सिंचाई करेंगे। ऐसे में सिर्फ एकानापुरम को ही अपनी 905 एकड़ की जमीन खोनी पड़ जाएगी। गांव वालो का कहना है कि, इस प्रोजेक्ट से उनके गांवों की मैप से हटने की भी संभावना है।
क्या है गांववालों का कहना?
गांव के लोगों का कहना है कि, वहां पर 40% लोग कृषि का ही कार्य करते हैं। उनकी जमीन काफी उपजाऊ हैं। एकानापुरम की कुल 905 एकड़ भूमि पर साल में तीन बार खेती की जाती है और प्रति एकड़ औसतन 2,500 किलोग्राम चावल की पैदावार होती है। 80 किलो की एक बोरी अब 1500 रुपये में बिक रही है।उनके अनुसार एकानापुरम की जमीन उनके लिए सोने के समान है। उन्हें यहां पर खेती करने से काफी लाभ होता है। ऐसे में वो अपनी उपजाऊ जमीन हवाई अड्डे के निर्माण के लिए गवाना नहीं चाहते हैं। हवाई अड्डे के निर्माण से उनकी आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। गांव वालों की इन चिंताओं पर पार्टियां कुछ भी ध्यान नहीं दे रही है। यह ही वजह है कि वह सब चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं। गांववासी चाहते नहीं है कि, वहां कोई सरकार आए और गांव के कृषि को विकास के नाम पर नुकसान पहुंचाए।
गांव वालो की मांग एक तरीके से जायज भी है। ऐसे विकास का कोई मूल्य नहीं रहेगा जब वहां की जनता को अपना घर-बार गवाना पड़े। लेकिन गांव वालो की अपनी मांग मंगवाने का तरीका सही नहीं है। चुनाव के बहिष्कार से उनकी समस्यों का समाधान नहीं होगा। इससे उनके और सरकार के बीच में मदभेद और बढ़ेंगे। उन्हें अपनी शिकायतों के समाधानों के लिए सरकारी अधिकारियों के साथ बातचीत करनी चाहिए।