दृश्य 1
रोम मे सीनेट सभा चल रही थी, बैठक में 60 से ज्यादा सीनेटर मौजूद थे, राजगद्दी पर बैठा राजा सभी को सुन रहा था। सुरक्षा में सैनिक भी खड़े थे, तभी अचानक एक सीनेटर अपनी कुर्सी से उठा और राजगद्दी के पास जाकर राजा के पेट में चाकू मार दिया। सुरक्षा में तैनात सैनिक टस से मस न हुए। राजा कुछ समझ पाता तब तक दूसरा सीनेटर उठा, फिर तीसरा-चौथा…क्रम बढ़ता गया। 60 से ज्यादा सीनेटर एक एक कर उस निहत्थे राजा पर चाकू से हमला कर रहे थे।
दृश्य 1 का अंत
इसे इतिहास का सबसे नृशंस हत्याकांड कहा जाता है। ये किस्सा है प्राचीन रोम का और जिस राजा की हत्या हुई वो था जूलियस सीज़र।
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आज की तारीख मे आज वो किस्सा जिसके आधे पक्ष से कई भारतीय रुबरू हो चुकें है, लेकिन एक बड़ा तबका आज भी आधा पक्ष नहीं जानता। स्कूल के दिनों मे हम मे से अधिकतर लोग इंग्लिश लिटरेचर मे रोम की राजनीति और जूलियस सीज़र के बारे में पढ़ चुके हैं। शेक्सपियर ने सीज़र के जीवन को ड्रामा के तौर पर भी प्रस्तुत किया है। जूलियस सीज़र का जन्म और उनकी हत्या तब से लेकर आज तक एक बड़ी घटना मानी जाती है। जब उनकी हत्या की बात आती है तो ‘मार्कस ब्रूटस’ का नाम भी लिया जाता है जिन्होंने ‘सीज़र’ के साथ विश्वासघात करके उनकी हत्या मे योगदान दिया था। लेकिन आज भी एक बडा तबका है जिसे इस कहानी का दूसरा पक्ष नहीं है कि आखिर क्यूँ ‘ब्रूटस’ ने अपने ही मित्र की हत्या कर वा दी और उसके बाद क्या हुआ। इससे जानने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं।
लगभग दो हज़ार साल पहले, आज ही के दिन यानी 23 अक्टूबर 42 ई.पू. वह दिन था जब रोम की राजनीति और सत्ता की भूख ने एक पुराने मित्र और विश्वासपात्र को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। यह कहानी है, जूलियस सीज़र और मार्कस जूनियस ब्रूटस के संबंध की जो उस विश्वासघात से कहीं ज्यादा दी जिसे आज याद रखा जाता है।
जूलियस सीज़र और ब्रूटस का आपसी संबंध समझना सरल नहीं है। ब्रूटस, एक आदर्शवादी और सम्मानित रोमन नागरिक था, जिसे रिपब्लिक इंस्टीट्यूशन और पुरानी परंपराओं में दृढ़ विश्वास था। वहीं, जूलियस सीज़र एक कमाल के सेनापति और राजनेता थे, जिनका मुख्य उद्देश्य रोम की राजनीति को इकट्ठा करना था।
ब्रूटस और सीज़र का संबंध केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। इतिहासकारों का मानना है कि ब्रूटस, सीज़र का करीबी था और दोनों के बीच एक तरह का पारिवारिक बंधन भी था। सीज़र ने ब्रूटस पर हमेशा विश्वास किया और उसे एक बेटे की तरह भी देखा। परंतु, इसी विश्वास ने दोनों को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा किया जहाँ व्यक्तिगत और राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एक-दूसरे से टकराने लगीं।
गृहयुद्ध में जीत के बाद जूलियस सीजर रोम का शासक बन गया और रोम की शक्तिशाली राजनीति को प्रभावित करने लगा। रुबिकॉन को पार कर लौटने के बाद उसने सीनेट में कई बदलाव किए। उसकी लगातार बढ़ती लोकप्रियता और सीनेट की कम होती अहमियत सीनेटरों को रास नहीं आई। रोम की जनता बेशक जूलियस सीजर को हीरो मान चुकी थी, लेकिन सीनेटरों को सीजर की हरकतें तानाशाह जैसी लगने लगीं थी। वह उसे लोकतंत्र के लिए खतरा मानने लगे थे।
जूलियस सीज़र का सत्ता पर बढ़ता नियंत्रण और एक तानाशाह की तरह उभरना, रोमन रिपब्लिक के लिए खतरे की घंटी बन गया था। सीनेटरों का मानना था कि अगर सीज़र को नहीं रोका गया, तो वह रोमन रिपब्लिक को खत्म कर देगा और खुद सम्राट बन जाएगा। ऐसे में, बचाव के लिए एक षड्यंत्र रचा गया, जिसका नेतृत्व ‘ब्रूटस’ और ‘कैसियस’ जैसे सम्मानित नेताओं ने किया।
इसी विश्वासघात के दौरान, 15 मार्च 44 ई.पू. को ‘आइड्स ऑफ मार्च’ के दिन, सीज़र की हत्या कर दी गई। इस हत्या में सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि सीज़र को उसके सबसे करीबी ब्रूटस ने भी छुरा घोंपा। यह वही ब्रूटस था, जिसे सीज़र अपना बेटा मानता था। इस घटना के बाद सीज़र के अंतिम शब्द “Et tu, Brute?” (अरे तुम भी, ब्रूटस?) जो उस दिन से लेकर आज भी दुनिया भर में ताने के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ सबसे प्रमुख फ़्रेज़ेस में से एक से एक है। हालांकि। इसको लेकर विवाद है कि क्या सीज़र ने ये शब्द कहे थे या नहीं। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि जूलियस सीज़र ने मरते हुए कोई शब्द नहीं बोला. कुछ कहते हैं कि उसने ‘ब्रूट्स तुम भी’ नहीं, ‘मेरे बच्चे, तुम भी?’ कहा था। इसके अलावा कुछ इतिहासकार ये भी कहते हैं कि जिस दौरान जूलियस पर चाकुओं से वार किए जा रहे थे, उस दौरान वो अपना बचाव भी कर रहा था। लेकिन जैसे ही उसने ब्रूट्स को देखा, अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया और विरोध करना बंद कर दिया। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि जूलियस सीज़र ने दरअसल ये कहा था कि ‘तुम भी ब्रूट्स, एक दिन मेरी तरह सत्ता का स्वाद चखोगे।’ जूलियस के आखिरी शब्द की कोई संभावना बेतुकी नहीं लगती क्यूंकि सबके मतलब भी बन रहे थे।
बहरहाल, सीज़र की हत्या के बाद, रोम में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। सीज़र के समर्थकों और ब्रूटस के नेतृत्व वाले षड्यंत्रकारियों के बीच संघर्ष छिड़ गया। अंततः, मार्क एंटनी और ऑक्टेवियन(अगस्टस) ने ब्रूटस और कैसियस के खिलाफ युद्ध छेड़ा। यह युद्ध फिलिप्पी की लड़ाई के नाम से जाना जाता है, जो 42 ई.पू. में लड़ी गई थी।
इस युद्ध के पहले चरण में, ब्रूटस की सेना को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। दूसरे चरण में, कैसियस को भ्रम हुआ कि वे हार गए है और इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली। विडंबना देखिए उन्होंने खुद को उसी तलवार से मारा जिससे उन्होंने सीज़र की हत्या की थी।
कैसियस की आत्महत्या ने ब्रूटस को अंदर से तोड़ दिया। अब, जब ब्रूटस को लगा कि उसकी सेना पूरी तरह से हार चुकी है और कोई उम्मीद नहीं बची है, तो उसने भी आत्मसमर्पण की बजाय आत्महत्या करने का फैसला किया। ऐसा माना जाता है कि ब्रूटस ने अपने साथी ‘स्ट्रेटो’ से कहा कि वह उसकी तलवार पकड़ें और ब्रूटस ने खुद उस पर गिरकर आत्महत्या कर ली।
ब्रूटस की आत्महत्या केवल हार की निराशा का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह अपराधबोध और आत्म-संवेदनशीलता का भी प्रतीक थी। उसने एक ऐसे व्यक्ति को धोखा दिया था, जिसने उस पर अटूट विश्वास किया था। ब्रूटस हमेशा रोम रिपब्लिक को बचाने के उद्देश्य से लड़ रहा था, उसका सपना था कि वह रोम रिपब्लिक मे अमन और चैन कायम कर पाए लेकिन सीज़र की हत्या और युद्ध के परिणामस्वरूप, रोम रिपब्लिक और भी अधिक अंधेरे में फंस गया था।
इतिहासकारों का मानना है कि ब्रूटस के मन में भरी आत्मग्लानि ने उसे आत्महत्या तक पहुंचा दिया था। उसके लिए यह हार सिर्फ एक राजनीतिक हार नहीं थी, बल्कि यह उसकी नैतिकता और आदर्शों की भी हार थी।
जूलियस सीज़र और ब्रूटस का संबंध एक द्वंद्व की कहानी है। इसे सिर्फ विश्वासघात की कहानी कहकर टालना गलत होगा। क्यूंकि इसमे दोस्ती, विश्वास, नैतिकता, और राजनीति के आदर्श सब दांव पर लग गए। इस कहानी का कोई किरदार ब्लैक या व्हाइट नहीं बल्कि सब ग्रे कलर मे रंगे हुए हैं।