कहते हैं, वक़्त के साथ हर चीज़ बदल जाती है! दिल्ली इसका जीता-जागता सबूत है। आज जब दिल्ली की पहचान खराब मौसम, धुंध और प्रदूषण से हो रही है, तब शायद ही किसी को याद भी है कि 1911 में इसे भारत की राजधानी चुनने के पीछे एक बड़ी वजह इसका “खूबसूरत और संतुलित” मौसम भी था। 25 अगस्त, 1911 को शिमला से वायसरॉय लॉर्ड हार्डिंग का एक पत्र ब्रिटिश सरकार को जाता है जिसमें लिखा होता है कि ‘ब्रिटेन का कलकत्ता की तुलना में दिल्ली को राजधानी बनाकर राज करना बेहतर विकल्प होगा’। इसके अलावा इस पत्र में दिल्ली के मौसम का भी जिक्र किया गया था जो अंग्रेजों के लिए सही था। सोचिए, जो दिल्ली कभी ठंडी हवाओं और गुलाबी सर्दियों के लिए मशहूर थी, आज गर्मी और प्रदूषण की चपेट में है। इस ऐतिहासिक विडंबना वाले मोड़ को समझने के लिए चलिए, दिल्ली को राजधानी बनाने के पीछे के किस्से पर नज़र डालते हैं।
2 दिसंबर 1911 को, दिल्ली में आयोजित ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम के राजदरबार में भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने का ऐलान हुआ। यह निर्णय न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि भारतीय इतिहास में नई दिशा देने वाला भी साबित हुआ।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1772 में कलकत्ता को भारत की राजधानी घोषित किया गया था। लेकिन 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत तक कलकत्ता का महत्व राजनीतिक, प्रशासनिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से घटने लगा। इसके पीछे कई मुख्य कारण थे। जैसे – असंतुलित भौगोलिक स्थिति। कलकत्ता पूर्वी भारत में स्थित था, जिससे उत्तर भारत और पश्चिमी भारत में प्रशासनिक पकड़ कमजोर हो तो हो ही रही थी। मुख्य बात थी – बंगाल उस समय देश के स्वतंत्रता के सबसे प्रमुख केंद्रों में से एक बन चुका था, इसके अलावा साल 1905 में बंगाल का विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन और विरोध को एक नई गति मिली। इस कारण भी अंग्रेज सरकार कलकत्ता से हटाकर इस आंदोलन को दबाना चाहती थी। साम्राज्य को पूरे भारत पर शासन करने के लिए एक ऐसी जगह की आवश्यकता थी जो भौगोलिक रूप से केंद्र में हो और सभी क्षेत्रों से जुड़ी हो।
राजधानी को स्थानांतरित करने के लिए कई शहरों पर विचार किया गया, जिनमें प्रमुख थे – लखनऊ…ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के बावजूद लखनऊ की सीमित भौगोलिक पहुंच और अपेक्षाकृत कमजोर बुनियादी ढांचे के कारण इसे ठुकरा दिया गया। दूसरा नाम था इलाहाबाद…यह ब्रिटिश प्रशासन के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन इसका आकार और आधुनिक राजधानी के लिए आवश्यक सुविधाओं की कमी बाधा बन रही थी। तीसरा नाम था बंबई… जो पहले ही ब्रिटिश व्यापार और कमर्शियल वर्क का केंद्र बन चुका था। इसे राजधानी बनाने से प्रशासनिक और कमर्शियल वर्क में असंतुलन की संभावना थी इसीलिए इसे भी ठुकरा दिया गया। अंतत दिल्ली को चुना गया।
दिल्ली को राजधानी बनाने के महत्वपूर्ण कारणों मे से एक इसका इतिहास और विरासत भी था। यह कई साम्राज्यों की राजधानी रही, जिनमें मौर्य, गुप्त, दिल्ली सल्तनत, और मुगल साम्राज्य शामिल हैं। इसकी ऐतिहासिक विरासत ने इसे ब्रिटिश प्रशासन के लिए एक उपयुक्त विकल्प बनाया। दूसरा दिल्ली भारत के उत्तर और मध्य भाग में स्थित है, जिससे यह पूरे देश के लिए प्रशासनिक और संचार के लिहाज से आदर्श स्थान साबित हुई। इसके अलावा दिल्ली को भारत का सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र माना जाता है। मुगलों के लाल किले से लेकर ब्रिटिश द्वारा निर्मित रायसीना हिल तक, यह शहर हमेशा शक्ति और शासन का प्रतीक रहा।
दिल्ली को राजधानी के रूप में चुनने के पीछे अंग्रेजों की एक बड़ी सोची समझी रणनीति भी थी। 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के शासन की सुरक्षा दिल्ली में ही हुई थी। उस समय के विद्रोह को यहां दबा दिया गया था। अंग्रेजों के लिए सुरक्षा के नजरिए से दिल्ली सबसे सुरक्षित और महत्वपूर्ण शहरों में से एक था। इसके अलावा उस समय के वाइस रॉय यहीं रिज में रह रहे थे। इस समय दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति का जो ऑफिस है वह उस समय के वाइस रॉय का रेजिडेंस था।
1911 के राजदरबार में राजधानी स्थानांतरित करने की घोषणा के बाद, दिल्ली में नए प्रशासनिक भवनों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर ने दिल्ली को आधुनिक राजधानी के रूप में तैयार करने की योजना बनाई। नई दिल्ली का निर्माण 1929 तक पूरा हुआ, जो ब्रिटिश प्रशासन के भव्य और शक्तिशाली प्रतीक के रूप में उभरी। वायसरॉय हाउस (आज का राष्ट्रपति भवन), संसद भवन और इंडिया गेट जैसे संरचनाओं का निर्माण ब्रिटिश वास्तुशिल्प का उदाहरण है।
इस निर्णय का दूरगामी प्रभाव पड़ा। दिल्ली ने धीरे-धीरे भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक केंद्र के रूप में खुद को स्थापित किया। आजादी के बाद भी यह स्वतंत्र भारत की राजधानी बनी रही और इसका महत्व और भी बढ़ता गया।
आज कई वजहों से भले ही नई राजधनी की मांग उठती रहती है लेकिन इसमे कोई दो मत नहीं की दिल्ली को राजधानी बनाने का निर्णय केवल एक प्रशासनिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक कदम था, जिसने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा था।