संसद सत्र खत्म होने में अब महज़ एक सप्ताह बचा है, लेकिन कई अहम मुद्दों पर न तो चर्चा हो पाई है और न ही कोई ठोस फैसला लिया गया है। किसान आंदोलन, प्रदूषण, वक्फ़ और कई अहम मसलों पर चर्चा होनी थी लेकिन भला हो काँग्रेस का कि बिजनेसमैन गौतम अडानी को लेकर ही हर दिन बहस चलती रही, वो भी संसद के अंदर नहीं बल्कि बाहर। लेकिन यह बहस भी किसी नतीजे तक नहीं पहुंच रही। इसके चलते न सिर्फ वक्त बर्बाद हो रहा है, बल्कि करदाताओं को हर मिनट ढाई लाख रुपये का नुकसान भी हो रहा है। मुझे याद आ रहा है कि संसद के मॉनसून सत्र के पहले जब एक पत्रकार ने राहुल गांधी से संसद का समय और करदाताओं के पैसे बर्बाद करने वाला प्रश्न किया तो उन्होंने पत्रकार का मज़ाक बनाते हुए कहा कि ‘ये तो बीजेपी वाला सवाल है।’ राहुल ने ये बेतुका जवाब देने से पहले असल प्रश्न पर एक मिनट भी ध्यान देने और सोचने की जरूरत नहीं समझी। ये साबित करता है कि महलों – तख्तों के शीशमहल में रहने वालों को आम आदमी का मोल अठन्नी से भी कम लगता है।
सदन में आए दिन हंगामे के कारण कार्यवाही स्थगित हो जाती है। सांसद बिना किसी ठोस वजह के आपस में उलझ जाते हैं। महंगाई, बिगड़ता पर्यावरण, और अन्य गंभीर मुद्दों पर बात करने की जरूरत अब भी बनी हुई है। लेकिन सेशन आए दिन स्थगित पर स्थगित होते जाते हैं। यह चिंता कोई नई नहीं है। 2012 में तत्कालीन संसदीय मामलों के मंत्री पवन बंसल ने कहा था कि संसद सत्र ठप होने पर करदाताओं को हर मिनट ढाई लाख रुपये का नुकसान होता है। बाजार और वित्तीय विशेषज्ञ इसे समझते हैं, लेकिन अड़ंगा लगाने वाले नेता और उन्हें आंख बंद कर वोट देने वाली जनता इसे गंभीरता से नहीं लेती।
कभी अडानी मोदी के नाम की टी-शर्ट पहनकर संसद आना तो कभी मोदी-अडानी के पेपर मास्क लगाकर संसद के बाहर हंसी-ठठा करना, ऐसा लगता ही नहीं के ये देश के नेता हैं। लगता है जैसे कि ये कोई स्कूल-कॉलेज की गेट टूगेदर पार्टी चल रही है। अडानी के जुनून में कांग्रेस पार्टी दिन-ब-दिन हास्यास्पद होती जा रही है। जिसका उद्देश्य राजनीति से अलग सोशल मीडिया के रील और मीम ट्रेंड मे बने रहना है।
लेकिन अब ऐसा लगता है कि उनके अन्य साथी यानी इंडिया ब्लॉक के घटक दल इस गेट टूगेदर मे शरीक होने की बिल्कुल रुचि नहीं रखते हैं। हर दिन के साथ अडानी मुद्दे पर कांग्रेस एक-एक करके अकेले पड़ती जा रही है। कांग्रेस के इंडिया गठबंधन सहयोगी तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और समाजवादी पार्टी ने अभी तक इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी है, केवल कांग्रेस ने संसद में रोजाना विरोध प्रदर्शन किया है।
कुछ दिन पहले टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने संसद को बाधित करने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों को जिम्मेदार ठहराया। बनर्जी ने अडानी मुद्दे पर कांग्रेस के संसद की कार्यवाही अटकाने की आलोचना की थी। उन्होंने कहा, ‘हम यहां कुछ काम करने आए हैं। अडानी मुद्दा ही एकमात्र मुद्दा नहीं है जिसे उठाया जाना है। इतने सारे मुद्दे हैं।’
अमोल कोल्हे ने भी कहा था, ‘हम राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं, न कि राजनीतिक नारों पर। यह कुछ ऐसा है जिससे सरकार और विपक्ष दोनों को अवगत होना चाहिए। ‘हमें इस बात की ज्यादा चिंता होनी चाहिए कि हमारे किसानों और युवाओं की आवाज यहां उठती है या नहीं, बल्कि एक राजनीतिक नेता का एक कॉरपोरेट के साथ क्या संबंध है, कौन सा नेता किसी के पलायन में कहां गया है, या किस विदेशी नेता ने एक स्थानीय नेता को चंदा दिया है।’ सांसद सुप्रिया सुले भी उनके पूरे भाषण के दौरान अपनी सहमति का संकेत देती रहीं।
इस पूरे मामले को लेकर उद्धव, ममता और अखिलेश के बाद अब शरद पवार ने भी अलगाव का संकेत दिया है। शरद पवार ने कहा कि ‘संसद के समय का ‘बेहतर उपयोग’ होगा अगर वह किसानों और युवाओं के मुद्दों पर चर्चा करे, न कि नेता के किसी व्यापारी के साथ संबंधों की।’ पवार के पल्ला झाड़ने के बाद कांग्रेस पर दबाव बढ़ सकता है और वह अडानी मुद्दे से पीछे हट सकती है।
इसके अलावा कांग्रेस नेता पवन खेड़ा अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर घिर गए। खेड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की एक तस्वीर शेयर की थी, जिसमें इवेंट स्पॉन्सर अडानी ग्रुप का भी जिक्र था। खेड़ा, राहुल गांधी और कांग्रेस का अडानी ग्रुप के प्रति ‘जुनून’ अब उन्हें बार बार ‘बचकाना’ साबित कर रहा है। सोशल मीडिया में कई बड़े लोगों के साथ आम जनता भी उनकी इन हरकतों को लेकर आलोचना कर रहे हैं।