सनातन धर्म में संन्यासी की परिभाषा ये है कि मोह-माया का त्याग कर प्रभु का गुणगान करे, लेकिन महाकुंभ में पहुंचे कुछ बाबाओं को देख कर लगता है कि मोह भी बचा है और माया भी। ऐसे दर्जन भर मठाधीश तंबू गाड़ कर बैठे हैं, जिनकी दसों उंगलियों में हीरा-पन्ना और सोने की अंगूठियां हैं।
सोने से लदे इन बाबाओं को देखने के लिए भीड़ भी उमड़ रही है। नारायण स्वामी उर्फ बाबा निरंजनी इन्हीं में से एक हैं। गले में किलो भर सोना लटका है। पूरे शरीर का तौल लिया जाए, तो छह किलो हो जाता है। त्रिवेंद्रम से आए हैं और महामंडलेश्वर हैं। नारायण स्वामी का कहना है कि महामंडलेश्वर बनने के बाद सनातन संस्कृति की जिम्मेदारी बढ़ गई है। दक्षिण के राज्यों में धर्म का प्रचार कर रहा हूं। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में बारह महीने घूमता रहता हूं।
बाबा का सोना देखने आते हैं लोग
कुंभ के सेक्टर-5 में इनकी यज्ञशाला है। बाबा का सोना देखने लोग आते हैं। इन्हीं के पांडाल में भारतीय वायुसेना के तेजस विमान का मॉडल लगा है। बाबा अरुण गिरि महाराज पंच दशनाम आवाहन अखाड़े से हैं। इनके पास हीरे की घड़ी है। अरुण गिरि को ‘पर्यावरण बाबा’ भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने एक करोड़ से ज्यादा पौधे लगवाए हैं। बाबा के एक हाथ में घड़ी और दूसरे हाथ में ब्रेसलेट रहता है। डायमंड घड़ी पहनने वाले पहले बाबा हैं। एक बार में चार किलो सोना पहनते हैं।
आदित्य नंदन गिरि भी इन दिनों खूब लोकप्रिय हो रहे हैं। वो दशनाम श्री संत गुरुदत्त अखाड़ा से ताल्लुक रखते हैं। चार दिन पहले ही कुंभ में पहुंचे हैं। उनके पास पांच किलो सोने के आभूषण हैं। सेक्टर 13 में इन्हें जगह मिली है।
एम्बेसडर बाबा
महंत राज गिरि भी हैं, जो 35-40 साल पहले तोहफे में मिली एंबेसेडर कार में ही समय बिताते हैं, जिन्हें ‘एंबेसेडर बाबा’ कहा जाता है। कार भगवा है। कैंप में जगह मिल गई है, लेकिन कार को ही अपना घर बना लिया है।
इंदौर से आए महंत राज गिरि मध्यप्रदेश में खासे लोकप्रिय हैं। इन्हें ‘टार्जन बाबा’ कहा जाता है। बाबा बताते हैं कि किसी और के भरोसे कहीं नहीं जाता हूं, इसीलिए अपनी एंबेसेडर साथ लेकर पहुंच जाता हूं। कोई सोने की जगह नहीं दे, तो गाड़ी तो है ही।