बिहार की राजनीति के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले नितीश कुमार भारतीय राजनीति के उस अनूठे किरदार हैं, जिनकी चालों को समझने के लिए आपको न केवल राजनीति की किताबें पढ़नी होंगी, बल्कि शायद ज्योतिषियों और मनोवैज्ञानिकों से भी सलाह लेनी पड़ेगी।
हाल ही में खबर आई कि जेडीयू ने मणिपुर में भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। इस बात से हर जगह खलबली मच गई। हालांकि जल्दी ही हालत सम्भाले गए और ग़लत चिट्ठी लिखने वाले को अनुशासनहीनता के लिए दंड दिया गया।
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद के मुताबिक, ‘यह कदम मणिपुर जेडीयू अध्यक्ष की ओर से एनडीए से अलग होने का दावा करने के बाद उठाया गया है।’ उन्होंने स्पष्ट किया कि मणिपुर इकाई ने केंद्रीय नेतृत्व से कोई बात नहीं की थी। उन्होंने कहा, ‘मणिपुर इकाई ने केंद्रीय नेतृत्व से कोई संवाद नहीं किया, उन्हें (मणिपुर जेडीयू प्रमुख) ने अपनी मर्जी से पत्र लिखा था। अनुशासनहीनता पर उनके खिलाफ कार्रवाई कर पदमुक्त कर दिया गया है।’ उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि जेडीयू अब भी एनडीए का समर्थन करती है। फिलहाल, हम एनडीए के साथ हैं और राज्य इकाई राज्य के विकास के लिए मणिपुर के लोगों की सेवा करना जारी रखेगी।
मणिपुर विधानसभा में भाजपा के पास 37 सीटें हैं, जो बहुमत से ज्यादा है। जेडीयू का फ़िलहाल 1 विधायक है। हालांकि उन्होंने पहले 6 सीट जीती थी। अगर जेडीयू ने सच में भी समर्थन वापस लिया होता तो NDA सरकार पर तत्काल कोई खतरा नहीं होता । हां लेकिन इस फैसले के दूरगामी परिणाम जरूर होते। खासकर दिल्ली और पटना में चुनावों में।
बिहार में इस साल अक्टूबर के आसपास विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस भ्रामक कदम के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ लोगों का तो कहना ये भी है कि भाजपा पर सीट बंटवारे के लिए दबाव बनाने की रणनीति के तहत ऐसा करवाया गया है।
वैसे ये कोई नई बात नहीं नितीश कुमार का पूरा राजनीतिक सफर ऐसा है कि बिहार की जनता नितीश कुमार को देखकर शायद यही सोचती होगी, “कभी इधर, कभी उधर, कब तक झेले जनाब आपका ये सफर?
2015 में उन्होंने लालू प्रसाद यादव के साथ हाथ मिलाया, भाजपा के खिलाफ ‘महागठबंधन’ बनाया और जीत दर्ज की। लेकिन 2017 में वही नितीश, जो लालू को ‘भ्रष्टाचार का प्रतीक’ कहकर गले मिले थे, अचानक भाजपा के साथ हो लिए। जनता अभी तक इस चमत्कार को समझने की कोशिश ही कर रही थी कि 2022 में उन्होंने भाजपा को अलविदा कहकर फिर से महागठबंधन का राग छेड़ दिया।
नितीश कुमार का राजनीतिक दर्शन ‘सिद्धांत’ से ज्यादा ‘सुविधा’ पर आधारित लगता है। वह कभी ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाने गए, तो कभी ‘पलटू राम’ के उपनाम से। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह कभी भी हार नहीं मानते। सत्ता में बने रहने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं।
नितीश की राजनीति को समझने की कोशिश करना समय बर्बाद करने जैसा है, क्योंकि अगले दिन वह फिर कुछ नया कर सकते हैं। वह बिहार की राजनीति के ‘टाइम ट्रैवलर’ हैं… हमेशा इधर-उधर और कभी-कभी दोनों जगह एक साथ।