साल 1972 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘द गॉडफादर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि सिनेमा की दुनिया में एक नई क्रांति थी। फ्रांसिस फोर्ड कोपोला द्वारा निर्देशित और मारियो पूजो के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म ने ‘माफिया सिनेमा’ को परिभाषित किया और इसे कला के स्तर पर ले गई। इसने ‘अल पैचीनो, मार्लन ब्रांडो, जेम्स कान, रॉबर्ट डुवैल और डायने कीटन’ जैसे कलाकारों को अमर कर दिया। यह फिल्म न केवल अपने समय की सबसे महान फिल्मों में गिनी जाती है, बल्कि आज भी इसकी शेड हर क्राइम थ्रिलर सिनेमा पर दिख जाती है।
‘द गॉडफादर’ की कहानी को देखें तो यह सिर्फ एक माफिया परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि सत्ता, परिवार, नैतिकता और नैतिक पतन की जटिल परतों से भरी हुई है। डॉन विटो कोरलियोन(मार्लन ब्रांडो) इटैलियन-अमेरिकन माफिया का सबसे शक्तिशाली और सम्मानित व्यक्ति है। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता है, पारिवारिक जिम्मेदारियां उसके छोटे बेटे माइकल कोरलियोन(अल पैचीनो) के कंधों पर आ जाती हैं। माइकल, जो पहले अपराध की दुनिया से दूर रहना चाहता था, हालातों के चलते माफिया साम्राज्य का उत्तराधिकारी बन जाता है और धीरे-धीरे एक निर्दयी डॉन में बदल जाता है।
फिल्म का हर सीन, हर संवाद, और हर किरदार गहराई से गढ़ा गया है। “I’m gonna make him an offer he can’t refuse.” यह डायलॉग न केवल फिल्म का सबसे प्रतिष्ठित संवाद बना, बल्कि पूरे हॉलीवुड इतिहास में सबसे ज्यादा याद किए जाने वाले डायलॉग्स में से एक बन गया।
‘द गॉडफादर’ से पहले हॉलीवुड में अपराध और माफिया फिल्मों का अलग रूप था। ये ज्यादातर एक्शन से भरपूर होती थीं और नैतिक रूप से काले-सफेद में बंटी होती थीं। लेकिन इस फिल्म ने अपराध और मानवीय संबंधों को गहराई से दिखाया, जिसमें अपराधी सिर्फ अपराधी नहीं, बल्कि जटिल मनोवैज्ञानिक पहलुओं से भरे हुए किरदार थे। इसके बाद ‘गुडफेलाज’, ‘कसीनो’, ‘स्कारफेस’ और ‘डॉन’ जैसी कई फिल्में इसी प्रभाव से बनीं।
मार्लन ब्रांडो ने जिस तरह से डॉन विटो कोरलियोन का किरदार निभाया, वह अभिनय की पाठशालाओं में पढ़ाया जाता है। उनका शांत लेकिन खौफनाक लहजा, चेहरे पर झुर्रियों की गहरी छाया, और संवाद अदायगी…सबकुछ लाजवाब था। अल पैचीनो, जो उस समय ज्यादा मशहूर नहीं थे, ने माइकल कोरलियोन के किरदार को एक नई ऊंचाई दी। उनकी आँखों में बदलाव, शांत चेहरे के पीछे छुपा गुस्सा और अंत में एक निर्दयी डॉन में तब्दील होने की यात्रा सिनेमा का स्वर्णिम पल बन गई।
फ्रांसिस फोर्ड कोपोला ने इस फिल्म को जिस खूबसूरती से बनाया, वह किसी मास्टरपीस से कम नहीं। गहरे रंगों की सिनेमेटोग्राफी, धीमे लेकिन तनावपूर्ण दृश्यों का फिल्मांकन, और पारिवारिक रिश्तों की गहराई…ये सब ‘द गॉडफादर’ को सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि सिनेमा का महाकाव्य बना देते हैं।
चाहे हॉलीवुड हो या हिन्दी सिनेमा, ‘द गॉडफादर’ का प्रभाव हर जगह देखा जा सकता है। कई फिल्मों और वेब सीरीज ने इससे प्रेरणा ली है। आज भी जब कोई शक्ति, सत्ता और अपराध की बात करता है, तो ‘गॉडफादर’ के डायलॉग्स और किरदारों का जिक्र जरूर आता है।
यह फिल्म आज भी फिल्म स्कूलों में पढ़ाई जाती है। इसका स्क्रीनप्ले, किरदारों का विकास और निर्देशन सिनेमा के छात्रों के लिए एक गाइडबुक जैसा है। भारत में राम गोपाल वर्मा की ‘सरकार’ सीरीज और कई अन्य फिल्मों में ‘गॉडफादर’ की छाया दिखती है।
आज जब भी कोई माफिया फिल्म बनती है, तो उसकी तुलना ‘द गॉडफादर’ से जरूर की जाती है। यह एक ऐसी विरासत है, जो आने वाले दशकों तक सिनेमा पर अपनी छाप छोड़ती रहेगी। डॉन कोरलियोन का साम्राज्य भले ही फिल्म के अंत में बिखर जाता है, लेकिन ‘द गॉडफादर’ हमेशा के लिए सिनेमा का अमर बादशाह बना रहेगा।