अभी इलाहाबाद हाइकोर्ट के विवादित फैसले की चर्चा थमी भी नहीं थे कि अब बॉम्बे हाईकोर्ट भी अपने फैसले से सुर्खियों में आ गया हैं। ये मामला एक नाबालिग लड़की से बलात्कार से जुड़ा हैं, जिसमें कोर्ट ने लंबे वक्त से जेल में बंद आरोपी को ज़मानत दे दी है।
ये सब कैसे शुरू हुआ?
ये सब तब शुरू हुआ जब वह नाबालिग लड़की जुलाई 2020 से घर से चली गई और उसके बाद लौट कर नहीं आई। जिसके बाद अगस्त 2020 में पिता के शिकायत के आधार पर पुलिस ने FIR दर्ज की। मई 2021 में उस लड़की ने अपने पिता को अपनी pregnancy के बारे में बताया और आरोप लगाया कि लड़के ने उसके साथ शादी करने से इंकार कर दिया हैं। लड़की ने ये भी बताया कि वो आरोपी को 2019 से जानती हैं और अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर वे नियमित रूप से मिला करते थे। उसने मार्च 2020 में कथित जबरन बलात्कार की एक घटना का भी ज़िक्र किया, जिसके बाद आरोपी COVID-19 के कारण अपने गांव लौट गया। बाद में, वह उसके साथ चली गई और उनके बीच संबंध बने जिसके कारण वह pregnant हो गई।
आरोपी के बचाव में तर्क
आरोपी के वकील ने ये तर्क दिया कि लड़की करीब 10 महीने अपनी इच्छा से आरोपी के साथ रही। इस दौरान उसने किसी भी तरह की ज़ोर-ज़बरदस्ती का आरोप नहीं लगाया। वकील ने ये भी बताया कि लड़की के पिता को उनकी location के बारे में पता था मगर फिर भी उन्होंने आरोपी को पकड़वाने या किसी कानूनी कारवाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
कोर्ट का फैसला
सारे facts की समीक्षा के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लड़की को इस बात की पूरी समझ और क्षमता थी कि वह क्या कर रही है, और वह अपनी इच्छा से आरोपी के साथ गई थी। कोर्ट ने इसका भी ज़िक्र किया कि लड़की का परिवार दोनों के रिश्ते से अच्छी तरह से वाकिफ था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस बात का भी उल्लेख किया कि आरोपी लगभग 4 साल से जेल में बंद हैं और इस मुकदमे की खत्म होने की कोई संभावना नज़र नहीं आ रही हैं। ऐसे में कोर्ट ने माना कि वो ज़मानत पर रिहा होने का हकदार हैं। आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) और पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत एक नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला दिखाता है कि नाबालिग लड़की के साथ रिश्ते और बलात्कार के मामलों में फैसला करना कितना मुश्किल है। कोर्ट ने लड़की की अपनी मर्जी से लड़के के साथ रहने को ज़मानत देने की वजह माना है। लेकिन लड़के पर जो आरोप लगे हैं, उनका भी ध्यान रखना ज़रूरी है। ये केस बताता है कि ऐसे मामलों में सही और गलत तय करना आसान नहीं होता और इसमें कई पहलुओं पर सोच-विचार करना पड़ता है।