आलम आरा, 1931 मे रिलीज हुई आर्देशीर ईरानी द्वारा निर्मित एक ऐतिहासिक फ़िल्म जिसने भारतीय सिनेमा को हमेशा हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। जिसने भारतीय सिनेमा को उसकी सबसे बड़ी पहचान, उसकी आवाज दे दी।
आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताएंगे आलम आरा के बारे मे 5 ऐसी बातें जो इस फ़िल्म को बेहद ही खास बनाते हैं :
1) भारत की पहली टॉकी फ़िल्म है आलम आरा
जी हाँ, इससे पहले भारत मे मूक फिल्मों का प्रचलन था। पर इस फ़िल्म के रिलीज होने के बाद भारत मे फिल्मों का नया दौर आया और भारत का सिंक साउन्ड और डायलॉग से पहली बार परिचय हुआ। भारतीय फ़िल्मी जगत मे यह एक क्रांतिकारी बदलाव था।
2) पहले से नहीं था टॉकी फ़िल्म बनाने का निर्णय
दरअसल उस समय के बाकी फ़िल्मों की तरह ये फ़िल्म भी पहले मूक फ़िल्म ही बनने वाली थी, पर ऐन मौके पर निर्देशक आर्देशीर ईरानी ने निर्णय लिया और फिर सिलसिला शुरू हुआ इस फ़िल्म मे साउन्ड सीक्वन्स जोड़ने का।
3) नहीं थे साउन्ड सीक्वन्स जोड़ने के उपकरण
जिस वक्त की ये बात है, उस वक्त फ़िल्म जगत के मौजूदा हालातों मे साउन्ड सीक्वन्स ऐड करने के उपकरण का कोई इंतजाम नहीं था। उसके बावजूद इंतजाम करके, उपकरण मगवाये गए और एक नहीं, बल्कि दो भाषाओं हिन्दी और संस्कृत मे इस फ़िल्म को बनाया गया।
4) गाने भी हुए थे मशहूर
इस फ़िल्म मे साउन्ड सीक्वन्स और डायलॉग्स के साथ साथ गाने भी फिल्माए गए। और यही नहीं, गाने मशहूर भी हुए। वजीर मोहम्मद खान द्वारा गाया हुआ मशहूर गाना “दे दे खुदा के नाम पर” उस वक्त काफी प्रसिद्ध हुआ था।
5) खो गई फ़िल्म
सोचिए, आपका मेहनत और लग्न से हासिल किया हुआ वह पहला अवॉर्ड खो जाए तो। कुछ ऐसा ही हुआ भारतीय सिनेमा के साथ जब उसका यह अनमोल रत्न कहीं गुम हो गया। आलम आरा की कोई भी ज्ञात प्रतियां बची नहीं हैं। फिल्मी जगत के लिए यह एक बोहोत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि जिस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा मे आवाज़ को पैदा किया, वही फ़िल्म आज भारतीय सिनेमा के इतिहास मे सिर्फ पन्नों मे दर्ज हो कर रह गई है।
फिल्म भले ही गुम हो गई हो, फिर भी भारतीय सिनेमा के इतिहास मे आलम आरा का नाम हमेशा ही स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा, क्यूंकि यही डब्ल्यूओ फ़िल्म है जिसने भारतीय सिनेमा को उसका वह प्रारूप दिया, जिस रूप मे आज हम उसे जानते हैं।