भोपाल। छोड़ सकते नहीं… लें तो कहां भेजें… क्या जिम्मेदारी दें। ये मुश्किल उमा भारती को लेकर है। कई मसलों पर पार्टी से अलग चलती दिखी हैं। कभी सीएम शिवराज को डपट देती हैं, तो कभी माथे पर हाथ फेरती हैं। दिल्ली में बैठी भाजपा से भी कभी मीठी रहती हैं तो कभी मुश्कें कस देती हैं।इन सब मुश्किलों के चलते भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि म.प्र. चुनाव में उमा भारती को क्या रोल दिया जाए। टिकट बंटवारे में उनसे सलाह-मशविरा नहीं किया गया है। बुंदेलखंड में उमा का असर ऐसा है कि कई सीटों की जीत-हार तय कर देती हैं।
उमा फिलहाल चुप
कई विधानसभा प्रत्याशी चाह रहे हैं कि खजुराहो और आसपास के इलाकों में प्रचार की कमान उमा को सौंप दी जाए। वहां के फैसले भी उन्हीं से करवाए जाएं।इस सबसे बेपरवाह उमा फिलहाल चुप हैं। दावा है कि नवंबर की शुरुआत में केदारनाथ जा रही हैं। कब लौटेंगी, पता नहीं है। करीबियों का कहना है कि वहां से वापसी के बाद अपना रुख साफ कर देंगी। महीने भर पहले कहा था कि इस बार लोकसभा चुनाव लडऩा चाहती हूं। उमा की आवाज, संघ की आवाज मानी जाती है। इनकार करना आसान नहीं है।
केंद्रीय मंत्री ने कही दलित सीएम की बात
भोपाल। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा कह रहे हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में दलित सीएम भी हो सकता है। भाजपा का बहुमत आता है, तो दलित विधायकों में से किसी एक पर सहमति बन सकती है। ये मेरा निजी खयाल है। पार्टी की रणनीति के बारे में कुछ नहीं कह सकता। जीते हुए विधायक ही सीएम चुनेंगे। भाजपा में जातिवाद को बढ़ावा देने की रणनीति नहीं होती है, लेकिन पहली बार हो सकता है कि दलित सीएम के चेहरे पर सब राजी हो जाएं।