गोविंदा भारतीय सिनेमा का वो नाम है जिसने हर 90s किड के दिलों पर राज किया है। किसी भी भारतीय सिनेमा प्रेमी से अगर उनके नाम का जिक्र किया जाए, तो लोगों के मुंह से अपने आप ही उनके फ़िल्मों के डायलॉग्स निकलने लगते हैं। चाहे किरदार “स्वर्ग” का हो, या “दूल्हे राजा” का, उनका हर रोल देखकर यह खयाल आता है कि उनसे बेहतर उस रोल को कोई और नहीं कर सकता। दमदार एक्सप्रेशंस, क्रेज़ी कॉमिक टाइमिंग, बेहतरीन डांस मूव्स और डायलॉग डिलीवरी का एक अतरंगी अंदाज, इन सभी चीज़ों का एक पूरा पैकेज इस अकेली शख्सियत में था। चाहे सामने कोई भी अभिनेता हो, गोविंदा के आगे उनकी सारी कलाकारी फीकी दिखाई पड़ती थी। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ, जो इतना बड़ा सुपरस्टार आज बड़े पर्दे ने गायब है? आखिर किन वजहों से गोविंदा के स्टारडम को नज़र लग गई? आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं।
बदलते दौर के साथ नही बदल पाए गोविंदा
गोविंदा ने अपने करियर की शुरुआत एक एक्शन और ड्रामा हीरो की तरह की थी। हालांकि वो फ़िल्में की काफी हिट हुईं और दर्शकों द्वारा खूब सराही गईं, मगर उन्हें असली शोहरत मिली 90s के दौर में, जब डेविड धवन के साथ उन्होंने अपनी पहली एक्शन कॉमेडी फिल्म “शोला और शबनम” की जिसके बाद गोविंदा स्टार से सुपरस्टार बन गए। उसके बाद उन्होंने अपनी कॉमेडी की पकड़ और टाइमिंग को पहचाना और उसका भरपूर इस्तेमाल करते हुए “हीरो नंबर 1”, “आंखें”, “कूली नंबर 1” और “दूल्हे राजा” जैसी फ़िल्मों से भारतीय सिनेमा प्रेमियों का खूब मनोरंजन किया। लेकिन इसके बाद धीरे धीरे समय के साथ जब सिनेमा का दौर बदल रहा था, जहां कलाकार खुद में कई तरह के परिवर्तन कर रहे थे, गोविंदा में ऐसा कोई बदलाव होते हुए नज़र नही आया। न तो उन्होंने अपने फिल्मी फॉर्मूला को चेंज किया और न ही उन्होंने उस समय के हिसाब से मेन लीड में बने रहने के लिए अपने शरीर को फिट रखने की कोशिश की, जिसका नतीजा ये हुआ कि उन्हें लीड रोल्स मिलना बंद हो गए।
पॉलिटिक्स का रहा बड़ा हाथ
सुपरस्टार गोविंदा ने 2000 में एक फैसला करके अपने सभी फैंस को चौंका दिया। फैसला था पॉलिटिक्स में जाने का। खैर, इस फैसले में भी वे सफल रहे और मुंबई से सांसद भी बने। मगर उस दौरान उनकी संसद से गैरमौजूदगी और राजनीतिक जिम्मेदारियों में लापरवाही उनकी आलोचना का बड़ा कारण रही। देखते ही देखते उनका फिल्मी स्टारडम भी इसी सिलसिले में गुम हो गया।
लेट लातीफी ने गिराई इमेज
गोविंदा अपने सेट्स पर लेट आने के काफ़ी मशहूर थे। कई बार वो सेट पर अंधेरा होने के बाद आया करते थे, जिससे उनके कई को-एक्टर्स को शिकायत होती थी। इस लेट लतीफी ने उनकी इमेज पर बहुत गहरा प्रभाव डाला जिससे उन्हें आगे चलकर नुकसान भी उठाने पड़े।
अच्छे सपोर्टिंग रोल्स को ठुकराना
जब गोविंदा ने बॉलीवुड में वापसी की तब तक उनका स्टारडम काफ़ी हद तक जा चुका था। ऐसे में सपोर्टिंग कैरेक्टर्स से अपनी अदाकारी की फैन फॉलोइंग को पुनर्जीवित करने के बजाए गोविंदा अपने लीड रोल की चॉइस पर अड़े रहे। कई मशहूर फिल्मों में उन्हें अच्छे सपोर्टिंग रोल्स का ऑफर दिया गया पर उन्होंने एक के बाद एक उन रोल्स को ठुकराया। संजय लीला भंसाली की फिल्म “देवदास” में चुन्नी बाबू का किरदार पहले गोविंदा को ही ऑफर किया गया था।
खराब फिल्मों का चुनाव
हालंकि इतने उतार चढ़ाव के बाद भी गोविंदा का फिल्मी करियर “पार्टनर” और “भागम भाग” के ज़रिए वापस चल निकला। उनके दोनों रोल्स की काफी सराहना भी हुई। ऐसा लगा की 90s के सुपरस्टार का कम बैक आखिरकार हो ही गया। लेकिन ये सब चार दिन की चांदनी की तरह साबित हुआ। उसके बाद उन्होंने “मनी है तो हनी है” और “चल चला चल” जैसी लगातार फ्लॉप फिल्में साइन की जो दर्शकों को कुछ खास नहीं भायीं और गोविंदा का करियर एक बार फिर असफलता के भवर में फस गया।
उसके बाद “किल दिल” और “होलीडे” जैसी फिल्मों में अच्छे सपोर्टिंग रोल्स करने के बाद भी गोविंदा वापस अपनी वो जगह इंडस्ट्री में नही बना पाए, जो पहले उनके पास थी। और देखते ही देखते आज के दौर में वो बड़े परदे से कहीं गुम हैं।