देहरादून। उत्तमरकाशी सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए कई लोगों ने निस्वािर्थ भाव से काम किया। जिन छह रैट होल माइनर्स ने सफलतापूर्व सुरंग खोदा, उन्होंकने इसके बदले पैसा लेने से मना कर दिया। उनका कहना है कि इस काम को करने में उन्हेंस बहुत खुशी मिली है। उन्होंने अपने देशवासियों को बचाने के लिए ये काम किया है। इसी तरह दिल्लीस के निजामुद्दीन निवासी सुरेंद्र राजपूत भी यहां पहुंचे थे। वर्ष 2006 में हरियाणा में बोरवेल में गिरे बच्चेय प्रिंस की जान बचाने के लिए सुरंग बनाने वाले सुरेंद्र ने उत्तारकाशी रेस्यूान ऑपरेशन में भी योगदान दिया। उन्हों ने मिट्टी की सप्लािई के लिए ट्राली तैयार की जो अंतिम चरण में मजदूरों को बाहर निकालने के अभियान का अहम हिस्साा बना। उत्तारकाशी की सिल्याेींरा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने में सबसे अहम रोल रैट होल माइनर्स का रहा। गत रविवार को आए इन छह रैट माइनर्स ने तेजी से काम करना शुरू कर दिया। उन्होंरने इस काम के बदले सुरंग का निर्माण करवा रही कंपनी नवयुग से कोई पैसे नहीं लिए।
रैट माइनर देवेंद्र बोले
रैट होल माइनर देवेंद्र का कहना है कि यह हमारे जीवन का अब तक का सबसे संतोषजनक काम है। इसे पूरा कर हमें बहुत खुशी हुई है। जैसे ही हमने 41 मजदूरों तक पहुंचने के लिए सफलतापूर्वक सुरंग खोदा, सबने खुशी के मारे हमें गले से लगा लिया। पूरे देश को हम लोगों से बहुत उम्मी द थी। हम उन्हें निराश नहीं करना चाहते थे। देवेंद्र ने बताया कि निर्माण कंपनी ने उन्हें सुरंग में होल करने के लिए बुलाया था।
पैसे लेने से इंकार
कंपनी ने हमें इसके बदले पैसे देने चाहे पर हमने लेने से मना कर दिया। यह काम हमने अपने देशवासियों को बचाने के लिए किया है। आपको बता दें कि इन रैट माइनर्स को प्राइवेट कंपनी ट्रेंचलेस इंजिनियरिंग सर्विसेज की ओर से बुलाया गया था। ये दिल्ली समेत कई राज्यों में वाटर पाइपलाइन बिछाने के समय अपनी टनलिंग क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं। उत्तलरकाशी में इनके काम करने का तरीका ‘रैट होल’ माइनिंग से अलग था। इस काम के लिए केवल वही लोग बुलाए गए थे जो टनलिंग में माहिर हैं। यहां पर 6 लोगों की यह टीम ड्रिल मशीनों के साथ पहुंची । इन्हीं। की मदद से मलबे की खुदाई कर रास्ता बनाया गया।