जयपुर। कई ऐसे सियासी मिथक हैं, जिनको लेकर मतदान से पहले और बाद में भी चर्चा आम है। इनमें से एक सियासी मिथक प्रदेश के परिवहन मंत्री से जुड़ा है। दरअसल, पिछले तीन दशक में हुए 6 चुनावों के आंकड़ों के अनुसार सरकार में परिवहन विभाग संभालने वाला कोई भी मंत्री अपना अगला विधानसभा चुनाव नहीं जीत सका है। गहलोत सरकार के कार्यकाल में पहले प्रताप सिंह खाचरियावास परिवहन मंत्री रहे और उनके बाद बृजेंद्र ओला परिवहन मंत्री बने। दोनों नेता इस बार भी चुनावी मैदान में हैं, इसलिए लोगों में चर्चा है कि क्या यह दोनों इस बार सालों से चले आ रहे इस सियासी मिथक को तोड़ पाएंगे या नहीं।
दिग्गज भी हारे
साल 1990 में भैरोंसिंह शेखावत सरकार में डॉ. चंद्रभान और जगमाल यादव परिवहन मंत्री रहे। साल 1993 में विधानसभा चुनाव हुए तो दोनों हार गए। वहां से शुरू हुआ परिवहन मंत्रियों की हार का सिलसिला 2018 में हुए विधानसभा चुनाव तक जारी है। 1993 के चुनावों में भैरोंसिंह शेखावत की सरकार बनी। इसमें रोहिताश कुमार परिवहन मंत्री रहे, लेकिन 1998 में वो भी चुनाव हार गए। 1998 में अशोक गहलोत पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। उनके मंत्रिमंडल में तीन परिवहन मंत्री रहे, लेकिन 2003 में हुए अगले विधानसभा चुनावों में छोगाराम बाकोलिया, बनवारी लाल बैरवा और केसी विश्नोई चुनाव हार गए। 2003 में प्रदेश में सरकार बदली।
वसुंधरा सरकार की बात
वसुंधरा राजे सरकार में यूनुस खान को परिवहन विभाग का जिम्मा सौंपा। अगला चुनाव 2008 में हुआ और यूनुस खान चुनाव हार गए। इसी तरह से 2008 में गहलोत फिर से मुख्यमंत्री बने। इस बार उनके मंत्रिमंडल में बृजकिशोर शर्मा और वीरेंद्र बेनीवाल को परिवहन विभाग का जिम्मा सौंपा गया, लेकिन साल 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में दोनों चुनाव हार गए।
2013 से 2018 तक प्रदेश में वसुंधरा सरकार रही। इसमें पहले यूनुस खान परिवहन मंत्री और बाबूलाल वर्मा परिवहन राज्यमंत्री रहे। 2018 में यूनुस खान ने टोंक से और बाबूलाल वर्मा ने बारां-अटरू से चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों हार गए।
वर्तमान गहलोत सरकार में परिवहन मंत्री का जिम्मा संभाल चुके प्रताप सिंह खाचरियावास सिविल लाइंस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं वर्तमान में परिवहन मंत्री बृजेंद्र ओला झुंझुनूं से चुनावी मैदान में हैं। दोनों ही जगह बीजेपी ने इनके सामने नए चेहरों को मौका दिया है।