नीतीश कुमार और बिहार की राजनीति के लिए आज का दिन खास है। बिहार विधानसभा में नीतीश सरकार को बहुमत साबित करना है। सभी दलों के विधायक सदन में पहुंच गए हैं। RJD से नाता तोड़ 28 जनवरी को NDA के साथ नई सरकार बनाने वाले नीतीश को आज विधानसभा में बहुमत परीक्षण देना होगा और सदन में सबसे पहले अपनी सरकार के बहुमत को लेकर वोटिंग का प्रस्ताव रखेंगे। अगर वह बुहमत परीक्षण में फेल होते हैं तो क्या होगा, आखिर यह फ्लोर टेस्ट होता कैसे है।
RJD के 3 विधायकों ने बदला पाला
RJD के विधायक चेतन आनंद और नीलम देवी ने पाला बदल लिया है। वह विधानसभा में सत्ता पक्ष के साथ बैठे हैं। इसके अलावा RJD विधायक प्रह्लाद यादव ने भी पाला बदल लिया है। इससे फ्लोर टेस्ट के दौरान क्रॉस वोटिंग तय मानी जा रही है।
फ्लोर टेस्ट क्या होता है ?
फ्लोर टेस्ट किसी भी गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को विश्वास मत पेश करने के लिए किया जाता है। इससे यह जाना जाता है कि, क्या सीएम को विधानसभा में बहुमत प्राप्त है या नहीं। यह संसद और विधानसभा दोनों जगह होता है।
कौन करवाता है फ्लोर टेस्ट ?
फ्लोर टेस्ट राज्य के विधानसभा अध्यक्ष या उनकी गैर मौजूदगी में प्रोटेम स्पीकर कराते हैं। अध्यक्ष के ना होने पर अस्थाई तौर पर प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। फ्लोर टेस्ट में राज्यपाल का काम सिर्फ आदेश देने का होता है। इसमें राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं होती है। इसमें विधानसभा में विधायक पेश होकर अपना वोट करते हैं।
फ्लोर टेस्ट की क्या है प्रक्रिया?
किसी भी सदन में चर्चा के बाद स्पीकर वहां मौजूद विधायकों से गुप्त मतदान से समर्थन या विरोध में वोटिंग कराते है। अगर विश्वास मत प्रस्ताव के समर्थन में ज्यादा विधायकों ने वोट किया तो तब माना जाता है कि, सरकार को सदन में बहुमत हासिल है।
फ्लोर टेस्ट में फेल हुए तो क्या?
नीतीश कुमार को फ्लोर टेस्ट देते हुए दिखाना होगा कि, उनके पास जरूरी बहुमत का आंकड़ा है। जब भी सरकार के पास बहुमत होने पर सवाल उठाए जाते हैं तो बहुमत का दावा करने वाले सीएम को अपने सभी विधायकों से वोटिंग करवानी होती है। जितने भी विधायक विधानसभा में पेश होते हैं, उनके ही वोट गिने जाते हैं। अगर कोई सीएम बहुमत परीक्षण में फेल हो जाता है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है।