3 दिन पहले हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने “असम ट्रिब्यून” के साथ हुए इंटरव्यू में कहा है कि, “भारत सरकार के समय पर हुए हस्तक्षेप और मणिपुर सरकार के प्रयासों के कारण ही, मणिपुर की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।” साथ ही में उनका मानना है कि, स्थिति से संवेदनशीलता से निपटना एक सामूहिक जिम्मेदारी है। वह पहले ही इस बारे में संसद में बोल चुके हैं। उन्होंने संघर्ष को सुलझाने के लिए अपने सर्वोत्तम संसाधन और प्रशासनिक मशीनरी समर्पित भी कर दी है।
एक तरीके से प्रधानमंत्री का यह बयान सही भी है। तभी तो अगस्त 2023 में हुए अविश्वास प्रस्ताव के 120 मिनट की अवधि में, उन्हें मणिपुर की स्थिति पर बोलने के लिए 2 से 3 मिनट का समय पर्याप्त लगा था।
आइए जानते है कि, सरकार के द्वारा हुए हस्तक्षेप और मणिपुर सरकार के प्रयासों से वहां की स्थिति पर कितना सुधार आया है। सबसे पहली बार मणिपुर में संघर्ष या हिंसा की शुरुआत 3 मई 2023 के दिन हुई थी, जब “आदिवासी एकजुटता मार्च” (TSM) निकाला गया था। यह मार्च कुकी समाज के “मणिपुर के सभी जनजातीय छात्र संघ” (ATSUM) ने निकाला था। यह मार्च उन्होंने “SC” वर्ग में शामिल करने के लिए मैतेई समुदाय द्वारा लगातार हो रही मांग के विरोध में किया था। दरअसल, मैतेई समुदाय के लोग इंफाल और विष्णुपुर जैसी घाटी में रहते है और जनसंख्या में इनका आंकड़ा 51% है। वहीं चुराचांदपुर और कांगपोकपी जैसी पहाड़ी में कुकी समुदाय के लोग रहते जिनकी जनसंख्या 40% है। जनसंख्या में ज्यादा होने के वाबजूद मैतेई समुदाय के पास रहने के लिए मात्र 10% जमीन ही है । ऐसे में वह लोग SC वर्ग में शामिल होने की मांग कर रहे थे।
TSM के दिन मणिपुर में हुई हिंसा से पूरा देश दहशत में आ गया था। कुकी समुदाय के लोगों ने मैतेई समुदाय के घरों पर हमला कर दिया था। मैतेई समुदाय के लोगों को जिंदा जलाया गया, उनके घर जला दिए गए और यहां तक की औरतों की निर्वस्त्र परेड करवाई गई थी। इस मार्च में 219 से ज्यादा लोगो की मौत हुई थी और 50,000 लोग बेघर हो गए थे। इस मार्च के बाद पिछले एक साल से मणिपुर से आए दिन हिंसा की खबरें आते ही रहती हैं।
मणिपुर में अधिकतम हिंसा के मामले औरतों के खिलाफ ही आते है। पिछले एक साल में उनके खिलाफ 11 मामले सामने आए हैं और इन में से 7 ऐसे मामले है जिनके आरोपी अभी तक पकड़े तक नहीं गए हैं। इन में से 5 मामले बलात्कार, 4 हत्या और 2 हमले के शामिल हैं। एक मामले में एक 56 वर्षीय महिला पर CRPF के अफसर अत्याचार करते है, तो वहीं कुछ कुकी समुदाय के लोग कार में सवार एक महिला और उसके बेटे के साथ।
2024 में सिर्फ 4 महीनों के अंदर ही कई हिंसा के कई मामले सामने आ गए हैं
- 9 जनवरी के दिन सुरक्षा कर्मियों और कुकी उग्रवादी के बीच मोरेह में हुई मुठभेड़ के चलते 200 स्थानियो को अपना घर छोड़ना पड़ा था।
- 11 जनवरी के दिन विष्णुपुर से 4 लोग लापता हो गए थे, जिनमें से 3 अगले दिन मृत पाए गए थे।
- 17 जनवरी के दिन कुकी उग्रवादी ने सोते हुए रक्षा सैनिकों पर गोलियों से हमला कर दिया था, जिसमें एक कमांडो की मौत हो गई थी। माउंट मोरेह पब्लिक स्कूल, मोरेह हिल टाउन और आसपास के मासूम लोगो के घरों को भी आग से तबाह कर दिया था।
- 24 जनवरी को असम राइफल के एक जवान ने अपने 6 साथियों के ऊपर ओपन फायरिंग कर, अपने आप की जान ले ली थी। घटना के पीछे की वजह अज्ञात है। इनमें से कोई भी असम का नहीं था।
- 16 फरवरी को चुराचांदपुर में हुई हिंसा में 2 की मौत और 25 घायल हो गए थे। 400 लोगों ने एसपी अधिकारी पर हमला किया था। जिसके बाद वहां 5 दिनों के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया था।
- 28 फरवरी को एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी के घर के बाहर रात को हमला किया गया था। जिसके बाद सेना बुलाई गई थी।
यह मणिपुर में हुई हिंसा के कुछ ही उदाहरण है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में राहत शिविर में रह रही औरतों ने करीबन 513 बच्चों को जन्म दिया हैं। इसमें उन औरतों का कहना है कि बहुत ही मुश्किलों में उन्होंने बच्चों को जन्म दिया है।
भाजपा ने अपनी पार्टी से टी. बसंत कुमार को आंतरिक मणिपुर सीट से उम्मीदवार बनाया है, जिसमें इंफाल समेत घाटी के जिले आते हैं। पार्टी ने राज्य के पहाड़ी जिलों वाली बाहरी मणिपुर सीट पर कोई उम्मीदवार भी नहीं उतारा है। ऐसा लगता है जैसे सरकार को कुकी समुदाय से निपटने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
प्रधानमंत्री जी ने अपने असम ट्रिब्यून के साथ हुए इंटरव्यू में यह भी बताया है कि, ग्रहमंत्री अमित शाह 15 अप्रैल को मणिपुर के दौरे पर जाएंगे। मणिपुर में मतदान 19 और 26 अप्रैल को हैं। सरकार की तरफ से अमित शाह ने मणिपुर का दौरा पिछले साल 29 मई को जातीय हिंसा के दौरान किया था, जिसमें वो वहां तीन दिन तक रुके थे। पूरे एक साल तक अमित जी मणिपुर नहीं गए है, शायद इसलिए प्रधानमंत्री जी मणिपुर की वर्तमान स्थिति से अज्ञात है।