देश में इस बार चुनाव शुरू होने से पहले ही बवाल मचना शुरू हो गया था। देश में हर जगह हलचल मची हुई है। विपक्षी नेता अपना चुनावी अभियान छोड़ अपने आपको CBI और ED के छापों से बचाने में ज्यादा लगे हुए हैं। जिस हिसाब से नेता जेल जाते नजर आ रहे हैं, उसे देख यह चुनावी मौसम कम और विपक्षी नेताओं की धुलाई का मौसम ज्यादा नजर आ रहा है। देश में हो रही इसी हलचल को देखते हुए देश के “87 पूर्व सिविल सेवकों” ने अपनी चिंता दिखाते हुए चुनाव आयोग (EC) को एक पत्र लिखा है।
इन सभी सिविल सेवकों ने अपने समय में राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों में अपना भरपूर योगदान दिया है। पत्र में सभी ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार की मशीनरी पर नियंत्रण रखने की मांग की है। सेवकों ने किसी भी पार्टी से अपना संबंध न बताते हुए, दिल्ली शराब घाटले मामले में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि, घोटाले से संबंधित लोगों की गिरफ्तारी में कोई बात नहीं है, लेकिन जिस समय उनकी गिरफ्तारी हो रही है उससे इन ED और CBI जैसी एजेंसियों की मंशा पर सवाल उठता है। उनके हिसाब से केजरीवाल की गिरफ्तारी आम चुनाव के समय विपक्ष को उत्पीड़न और परेशान करने का तरीका है। ED इस मामले में कार्यवाही 4 जून यानी चुनाव खत्म होने के बाद भी कर सकती थी।
पत्र में उन्होंने कांग्रेस पर हुई आयकर विभाग (IT) की पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही पर भी सवाल किए है। आखिर ऐसी क्या जरूरत थी कि, चुनाव के ही ठीक पहले IT को कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों के पुराने आंकलन को फिर से खोलना पड़ा। लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार महुआ मोइत्रा के परिसरों की तलाशी लेना और अन्य विपक्षी उम्मीदवारों को नोटिस जारी करना स्पष्टीकरण की अवहेलना करना है।
पत्र में उन्होंने EC के प्रति अपना असंतोष भी जताया है। वे इन मामले में तत्काल कार्यवाही करने में “EC की विफलता” से बहुत परेशान है। यह जाहिर है कि, सरकार विपक्षी दलों को चुनाव प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने की स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए ही यह सब कर रही है और इसमें EC ने भी अपनी चुप्पी बनाई रखी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने अपने पत्र में ऐसे कई उदाहरण बताए थे, लेकिन तब भी मामूली कार्यवाही के अलावा EC बार-बार उल्लंघन करने वालों पर अपना आदेश लागू करने में विफल रही थी। मौजूदा चुनाव में भी आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हो रहा है, लेकिन अभी तक EC ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की है।
देखा जाए तो इनकी बात सही भी है। ED अगर चाहती तो चुनाव खत्म होने के बाद भी इन नेताओं पर कार्यवाही कर सकती थी। वैसे भी नेताओं द्वारा घोटाला करना कोई नई बात नहीं है। हमारे देश में नेताओं पर घोटालों का दाग होना एक परंपरा सी बन गई है, तो इसमें सवाल यह उठता हैं कि चुनाव के समय ही ED को उन घोटाले की याद क्यों आई? या तो वह इन मामलों को पहले ही सुलझा लेते या फिर थोड़ा और समय ले लेते सुलझाने में।