खेलों के मामले मे हमारा देश शुरू से ही क्रिकेट या फिर हॉकी के लिए जाना जाता रहा है, फुटबॉल ने भूटिया और सुनील छेत्री जैसे बड़े खिलाड़ी भी दिए लेकिन गिनती बड़ी सीमित है। हालांकि एक समय ऐसा भी आया था जब भारतीय फुटबॉल को ‘एशिया का ब्राजील’ कहा जाता था। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह टाइटल भारत को क्युं और किसके चलते दिया गया। दरअसल ये बात उस दौर की है जब सैयद अब्दुल रहीम और उनकी टीम ने कमाल कर जैसे एक पुनर्जागरण का काम किया था। भारतीय फुटबॉल के उसी ‘गोल्डन एरा’ को निर्देशक अमित शर्मा ने पर्दे मे उतारा है। फिल्म का नाम है मैदान जिसे 2 महीने पहले रिलीज़ किया गया था। अब ये OTT पर भी आ चुकी है। यह फिल्म महान फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम की जिंदगी पर आधारित है, जिन्होंने भारतीय फुटबॉल को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
फिल्म की कहानी 1950 और 1960 के दशक के उस समय पर आधारित है जब भारतीय फुटबॉल टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की थीं। फिल्म मे अजय देवगन ने सैयद अब्दुल रहीम की भूमिका निभाई है, जो एक दूरदर्शी कोच थे उन्होंने भारतीय टीम को अपनी मेहनत और लगन से एक अजेय शक्ति बना दिया। कहानी की शुरुआत में दिखाया गया है कि सैयद अब्दुल रहीम पूरे देश से प्लेयर्स को इकट्ठा करते हैं और उन्हें देश की तरफ से खेलने के लिए ट्रेनिंग देते हैं। इसी बीच उन्हें इंडियन फुटबॉल फेडरेशन के अंदर बैठे कुछ लोगों से भिड़ना भी पड़ता है। वे बंगाल के प्लेयर्स को टीम इंडिया में ज्यादा मौके मिलें, लेकिन सैयद अब्दुल रहीम की सोच कुछ और ही थी। फिल्म उनके संघर्ष, समर्पण और फुटबॉल के प्रति उनकी अद्वितीय दृष्टिकोण को बड़े ही संवेदनशील और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करती है।
अजय देवगन ने कोच रहीम की भूमिका में जान डाल दी है। उनका समर्पण और भावनात्मक गहराई हर दृश्य में स्पष्ट रूप से झलकती है। प्रियामणि ने उनकी पत्नी की भूमिका में सहज और प्रभावी अभिनय किया है। गजराज राव और रुद्रनील घोष ने अपने-अपने किरदारों को बेहतरीन ढंग से निभाया है, जो फिल्म में हास्य और संवेदनशीलता का एक अच्छा संतुलन बनाए रखते हैं। फिल्म में कई नए चेहरे हैं और सभी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। चुन्नी गोस्वामी के रूप में अमर्त्य रे, पीटर थांगराज के रोल में तेजस रविशंकर, जरनैल सिंह के किरदार में देविंदर सिंह, पीके बनर्जी के रूप में चैतन्य शर्मा, एसएस हाकिम के रोल में रिषभ जोशी, तुलसीदास बलराम की भूमिका में सुशांत वेदांदे और राम बहादुर छेत्री के किरदार में अमनदीप ठाकुर ने बढ़िया काम किया है।
अमित शर्मा ने फिल्म को ऐतिहासिक संदर्भों और भावनात्मक रंगों से भरपूर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। स्क्रीनप्ले में सटीकता और शोध की झलक मिलती है, जो दर्शकों को उस युग में ले जाती है। फुटबॉल मैचों के दृश्यों को बड़े ही रोमांचक और रियलिस्टिक तरीके से फिल्माया गया है, जिससे दर्शक पूरी तरह से जुड़ जाते हैं।
हाँ फिल्म का रनिंग टाइम और बंगाली भाषा कुछ लोगों भले ही ना जचे, लेकिन मेरे हिसाब से किसी भी सब्जेक्ट को तसल्ली से बनाना बेहतर होता है।
फिल्म का संगीत सच्ची भावनाओं को उकेरता है और कहानी के साथ पूरी तरह से मेल खाता है। ए आर रहमान ने फिर से जादू किया है। सिनेमाटोग्राफी ने 1950 और 1960 के दशक को खूबसूरती से चित्रित किया है, जिससे देखते समय आप उस समय के समाज और खेल की दुनिया में पूरी तरह से खो जायेंगे।
‘मैदान’ न केवल एक खेल फिल्म है बल्कि यह उस समय के भारतीय समाज और संस्कृति का भी चित्रण करती है। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे खेल ने न केवल व्यक्तिगत जीवन को बदल दिया बल्कि एक राष्ट्र की पहचान को भी पुनर्परिभाषित किया। फिल्म उन कठिनाइयों और चुनौतियों को भी उजागर करती है जो उस समय के खिलाड़ियों और कोच को झेलनी पड़ी थीं।
ये फिल्म एक प्रेरणादायक और सजीव कथा है जो भारतीय फुटबॉल के महान युग को संजोए हुए है। अजय देवगन का शानदार प्रदर्शन, अमित शर्मा का कुशल निर्देशन फिल्म को एक यादगार अनुभव बनाते हैं। यह फिल्म न केवल फुटबॉल प्रेमियों के लिए बल्कि उन सभी के लिए है जो संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानियों को पसंद करते हैं। ये एक ऐसी फिल्म है जिसे हर भारतीय को देखनी चाहिए, ताकि वह अपने खेल इतिहास के उस स्वर्णिम अध्याय को जान सके और उस पर गर्व महसूस कर सके।