जहां देश के पहले आम चुनाव मे पर्ची पर छोटू की मां, गोलू की बहन जैसे नाम दर्ज़ कराने के साथ महिलाएं घूंघट के पीछे छुपी होती थी। अब चुनावी मैदान मे महिलाएं खुल कर मुकाबला करती दिखाई देती हैं। राजनीति में महिला सशक्तीकरण की बड़ी कहानी इंदिरा गांधी से शुरू होती है। उसके बाद लोकसभा चुनावों मे सुमित्रा महाजन सर्वाधिक आठ और राजमाता विजयराजे सिंधिया सात बार महिला सांसद के रूप में रिकॉर्ड बना चुकी है। उनके अलावा सुषमा स्वराज, मायावती, जयललिता ममता बैनर्जी जैसे बहुत सारे नाम हुये जिन्होंने राजनीति मे एक अमिट छाप छोड़ी है। लेकिन आप मे से बहुत से लोग ये नहीं जानते होंगे कि भारत मे पहली बार साल 1936 में, कमलादेवी चट्टोपाध्याय नाम की महिला, भारतीय संसद के चुनाव में भाग लेने वाली पहली महिला बनीं थी। हालांकि वह चुनाव नहीं जीत सकीं, लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के लिए एक मजबूत आधार स्थापित किया। उनके प्रयासों से प्रेरित होकर, आगे की पीढ़ियों की महिलाओं ने भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। आइये जानते है कि कौन थी कमलादेवी?
कमलादेवी का जन्म कर्नाटक के मैंगलोर में हुआ था। उनके पिता, अनन्तैया धरे, एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता थे, और उनकी माता, गिरिजाबाई, एक शिक्षित और प्रगतिशील महिला थीं। कमलादेवी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चली गईं, जहां उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से समाजशास्त्र की पढ़ाई की। कमलादेवी को भारत की एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लीडर थीं। उन्हें भारतीय महिलाओं के अधिकारों की पुरजोर वकालत के लिए जाना जाता है
कमलादेवी चट्टोपाध्याय महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं। उन्होंने नमक सत्याग्रह और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाई। वह भारत छोड़ो आंदोलन (1942) और अन्य महत्वपूर्ण आंदोलनों में भी अग्रणी रहीं।
कमलादेवी महिलाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए जीवनभर संघर्षरत रहीं। उन्होंने महिला स्वयंसेवक संगठन (SEWA) की स्थापना की, जो महिलाओं को स्वरोजगार और वित्तीय स्वतंत्रता की दिशा में प्रोत्साहित करता है। उनकी सक्रियता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में महिलाओं की भागीदारी और अधिकारों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने भारतीय हस्तशिल्प और हस्तकलाओं के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट्स बोर्ड और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की स्थापना में योगदान दिया। उनके प्रयासों से भारतीय हस्तशिल्प और लोक कलाओं को वैश्विक मंच पर पहचान मिली। उन्होंने सरोजिनी नायडू और अन्य प्रमुख हस्तियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय महिला परिषद की स्थापना की, जिसने महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए।
कमलादेवी एक प्रतिभाशाली लेखिका भी थीं। उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति पर विचार व्यक्त किए गए हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में “इनवार्ड लाइट”, “अनस्क्वेर्ड कवर”, और “द आवाकनिंग” शामिल हैं, जो उनके गहरे सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1955 में, उन्हें पद्म भूषण और 1987 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें मैगसेसे पुरस्कार और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकारों के क्षेत्र में भी सम्मानित किया गया।
29 अक्टूबर 1988 को कमलादेवी चट्टोपाध्याय का निधन हो गया, लेकिन उनका कार्य और उनके आदर्श आज भी भारतीय समाज में जीवित हैं। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से समाज सुधार, महिलाओं के अधिकार, और भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार की दिशा में जो योगदान दिया, वह सदैव प्रेरणादायक रहेगा।