पिछले कुछ दिनों से गुजरात में चांदीपुरा वायरस तेजी से अपना कहर दिखा रहा है। अब तक इसके 71 मामले सामने आ चुके हैं और 27 लोगों की मौत भी हो चुकी है। इस जानलेवा बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब अलग-अलग राज्यों में अलर्ट जारी किया गया है। यह वायरस दिमाग में सूजन का कारण बनता है और फ्लू जैसे लक्षणों के साथ कोमा और मौत तक का कारण बन रहा है।
क्या है चांदीपुरा वायरस?
CHPV रबडोविरिडे फैमिली का एक वायरस है, जिसमें रेबीज का कारण बनने वाले लाइसावायरस जैसे अन्य वायरस भी शामिल हैं। सैंडफ्लाइज़ की कई प्रजातियां जैसे फ़्लेबोटोमाइन सैंडफ़्लाइज़, फ़्लेबोटोमस पपाटासी और कुछ मच्छर प्रजातियां जैसे एडीज एजिप्टी को CHPV माना जाता है। ये वायरस इन कीड़ों की लार ग्रंथि में रहता है और इंसान को काटकर उसके शरीर में प्रवेश करता है। वायरस के कारण होने वाला ये संक्रमण Central Nervous System तक पहुंच सकता है, जिससे एन्सेफलाइटिस (दिमाग के टिशू में सूजन होना) हो सकता है।
कब और कहां से शुरू हुआ वायरस?
साल 1966 में पहली बार महाराष्ट्र में इससे जुड़ा केस रिपोर्ट किया गया था। नागपुर के चांदीपुर में इस वायरस की पहचान हुई थी, इसी लिए इसका नाम चांदीपुरा वायरस पड़ गया। इसके बाद इस वायरस को साल 2004 से 2006 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रिपोर्ट किया गया था। बता दें कि चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है, जो सबसे ज्यादा मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है। इसके फैलने के पीछे मच्छर में पाए जाने वाले एडीज जिम्मेदार हैं।
चांदीपुरा वायरस के लक्षण
- सिरदर्द: मरीज़ अक्सर गंभीर सिरदर्द की शिकायत करते हैं।
- बुखार: अचानक तेज बुखार आना और बार-बार उल्टी आना।
- कोमा: कभी वायरस के कारण कोमा और दुर्लभ मामलों में मृत्यु भी हो सकती है।
- आक्षेप (Convulsions): मरीजों को दौरे या आक्षेप आ सकते हैं।
कैसे बचें चांदीपुरा वायरस से?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि, बच्चों को इस संक्रामक रोग से सुरक्षित रखने के लिए, प्रभावित क्षेत्रों में खेतों या झाड़ियों में जाने से बचें। मच्छरों, टिक्स और मक्खियों से बचाव करें। संक्रमण के लक्षणों के बारे में जानना और समय रहते इलाज लेना सबसे आवश्यक है।
चांदीपुरा वायरस का संक्रमण काफी दुर्लभ है इसलिए अभी तक इसका कोई उचित इलाज नहीं है। इस संक्रमण का समय पर पता लगने और सही उपचार लेने से इस बीमारी के गंभीर रूप लेने और मस्तिष्क से संबंधित खतरों को कम किया जा सकता है।