मणिपुर से एक बार फिर हिंसा और झड़प की घटना सामने आई है। घटना इंफाल पश्चिम जिले के कांगचुप क्षेत्र में कोटरुक के पास हुई है। हमले में जिन लोगों की मौत हुई है, उनमें स्थानीय नागरिक नगांगबाम सुरबाल है, जबकि उसकी 8 साल की बेटी के हाथ में चोट आई है। हालांकि अभी एक महिला की पहचान होना बाकी है। घटना में 2 पुलिस कर्मियों को भी चोटें आईं है, कुल 9 लोग घायल हुए हैं। पुलिस ने बताया कि, जो 9 लोग घायल हुए हैं, उनमें से 5 को गोली लगी है। वहीं, बाकियों को बम धमाके में चोटें आईं हैं।
इस बीच स्थानीय प्रशासन ने इंफाल पश्चिम जिले में कर्फ्यू लगा दिया है, तो वहीं मणिपुर सरकार ने हमले की निंदा की है और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा किया है। मणिपुर गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि, “राज्य सरकार को निहत्थे कौत्रुक ग्रामीणों पर ड्रोन, बम और कई अत्याधुनिक हथियारों का उपयोग करके किए गए हमले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बारे में पता चला है, जिसमें कथित तौर पर कुकी उग्रवादियों की तरफ से एक महिला सहित दो लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए।”
मणिपुर में 3 मई, 2023 को पहली बार हिंसा हुई थी। तब से लेकर अब तक वहां कुकी और मैतेई समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर विवाद चल रहा है। हिंसा में अब तक 226 लोगों की मौत हो चुकी हैं और 1100 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। लगभग 65 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। मणिपुर में मैतेई आबादी लगभग 53 प्रतिशत है, जो मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। जबकि नागा और कुकी समेत आदिवासी समुदाय लगभग 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं।
मणिपुर विवाद की असल जड़ क्या है,आइए जानते है?
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। इसमें से दो समुदाय पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं, नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। लेकिन यह समुदाय चाहता जरूर है कि, इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
कैसे शुरू हुआ विवाद ?
मैतेई समुदाय की मांग है कि, उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। समुदाय की दलील थी कि, 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है ?
मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी को युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं?
दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि, राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
घटना के बाद से लोग काफ़ी नाराज़ है। उनका कहना है कि,राज्य सरकार द्वारा शांति बहाली को लेकर कई बार कहा गया, उसके बावजूद हम लोग सुरक्षित नहीं हैं। स्थानीय महिला पर्यवेक्षण समूह की सदस्य निंगथौजम टोमालेई ने कहा, राज्य सरकार बार-बार दावा करती है कि, शांति बहाल हो गई है, लेकिन हम अभी भी डर में जी रहे हैं। कब तक हम लोगो को ऐसे रहना होगा। आख़िर हम कब सुरक्षित होंगे?