द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुए दो साल और दो महीने बीत चुके थे। लगभग हर मोर्चे पर युद्ध की आग भड़क रही थी। जर्मनी ने यूरोप के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था, जिसमें फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड और पोलैंड शामिल थे। वहीं, सोवियत संघ पर हमला करके जर्मनी ‘ऑपरेशन बारबरोसा’ के तहत तबाही मचा रहा था। भारत में भी इस युद्ध को लेकर गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच मतभेद पैदा हो गया था। गांधीजी भारतीयों को इस युद्ध में शामिल नहीं करना चाहते थे, जबकि सुभाष चंद्र बोस ने एक्सिस पावर्स (जर्मनी और जापान) के साथ सहयोग किया ताकि वे बाद में भारत की स्वतंत्रता के लिए उनकी मदद ले सकें।
ब्रिटेन और विंस्टन चर्चिल तब तक केवल जर्मनी और इटली के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे। वहीं, अमेरिका ने अब तक खुद को तटस्थ बनाए रखा था। हालांकि, उसने अपने पुराने सहयोगियों को अप्रत्यक्ष रूप से हथियारों की आपूर्ति करके मदद की, लेकिन सीधे तौर पर वह युद्ध का हिस्सा बनने से बच रहा था।
7 दिसंबर 1941, तूफान के पहले वाली एक शांत सुबह…सुबह के 7:50 बजे। हवाई के पर्ल हार्बर में रविवार का दिन था। अधिकांश सैनिक छुट्टी पर थे। यह वही समय था जब जापान के फाइटर जेट्स एक घातक मिशन के लिए रवाना हो चुके थे। पर्ल हार्बर में ‘यूएसएस एरिज़ोना’, ‘यूएसएस ओक्लाहोमा’ और ‘यूएसएस वेस्ट वर्जीनिया’ जैसे बड़े युद्धपोतों पर सामान्य तैयारी चल रही थी। कमांडर हसबैंड ई. किमेल, जो आमतौर पर सतर्क रहते थे, उस दिन अपने घर से निकलने की तैयारी कर रहे थे।
जहाज पर मौजूद जेबी मिलर अपनी मां को पत्र लिख रहे थे:
“डियर मॉम, आज का दिन बहुत शांत है। यह समुद्र किनारे का दृश्य मुझे बहुत अकेला महसूस करा रहा है। बस कुछ और दिन, और मैं घर लौट आऊंगा। सब कुछ ठीक होने की उम्मीद है।”
लेकिन मिलर और वहां मौजूद किसी भी सैनिक को यह अंदाजा नहीं था कि इस शांति के पीछे कितना बड़ा तूफान छुपा हुआ है। अचानक, तेज़ आवाज़ के साथ कई विमान आसमान में दिखाई दिए। ये अमेरिकी सेना के नहीं, बल्कि जापानी लड़ाकू विमान थे।
‘टोरा! टोरा! टोरा!’: हमला शुरू
सुबह 7:55 पर जापान के फर्स्ट फोर्स के कमांडर मित्सुओ फुचिदा ने ‘टोरा! टोरा!’ का संदेश दिया, जिसका मतलब था ‘बिजली की तरह हमला।’ लगभग 350 जापानी विमान, जिनमें फाइटर प्लेन, बॉम्बर्स और टॉरपीडो लोडेड विमान शामिल थे, पर्ल हार्बर पर हमला करने के लिए तैयार थे।
पहले टॉरपीडो से ‘यूएसएस ओक्लाहोमा’ को निशाना बनाया गया। जहाज पर आग लग गई और यह धीरे-धीरे पलट गया, जिसमें 400 से ज्यादा सैनिक पानी में फंस गए। इसके बाद ‘यूएसएस एरिज़ोना’ पर एक बड़ा बम गिराया गया, जिससे पूरा जहाज और उसका गोला-बारूद भंडार तबाह हो गया।
1 घंटे 15 मिनट तक चले इस हमले में अमेरिका के 8 युद्धपोत, 19 जहाज और लगभग 300 विमान तबाह हो गए। 2,403 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
क्यों हुआ यह हमला?
यह सवाल उठता है कि जापान ने अमेरिका जैसे सुपरपावर को उकसाने का फैसला क्यों किया? इसका जवाब जापान के 1930 के दशक की राजनीति और उसकी विस्तारवादी नीतियों में छिपा है।
30 के दशक में जापान एक छोटे से द्वीप राष्ट्र से एशिया की एक ताकतवर शक्ति में बदल चुका था। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की कमी ने उसे अपने उपनिवेश बढ़ाने पर मजबूर कर दिया। 1931 में उसने चीन के मांचुरिया पर कब्जा कर लिया, और 1937 में उसने नानजिंग पर हमला किया।
नानजिंग हमले के दौरान जापानी सैनिकों ने गलती से अमेरिकी काफिले पर हमला कर दिया, जिससे अमेरिका और जापान के संबंध खराब होने लगे। अमेरिका ने जापान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसमें तेल का व्यापार प्रतिबंध भी शामिल था।
जापान, जो 90% तेल आयात पर निर्भर था, को महसूस हुआ कि अगर वह अमेरिका से भिड़ा नहीं तो उसके विस्तारवादी सपने अधूरे रह जाएंगे।
इसके लिए जापानी नौसेना कमांडर इसोरोकू यामामोटो ने एक साहसिक योजना बनाई—पर्ल हार्बर में अमेरिका के प्रशांत बेड़े पर हमला करने की। यह योजना 1925 में लिखे गए उपन्यास ‘द ग्रेट पैसिफिक वॉर’ से प्रेरित थी।
26 नवंबर 1941 को जापान का काफिला पर्ल हार्बर के लिए रवाना हुआ। 7 दिसंबर को सुबह जब अमेरिकी सैनिक आराम कर रहे थे, तब जापानी विमानों ने हमला किया।
अगले दिन, 8 दिसंबर 1941 को अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटेन ने भी जापान के खिलाफ युद्ध में शामिल होने की घोषणा की।
यह हमला जापान के लिए एक तात्कालिक जीत थी, लेकिन लंबे समय में यह एक विनाशकारी निर्णय साबित हुआ। अमेरिका ने अपनी औद्योगिक ताकत और इच्छाशक्ति के बल पर जापान को हराने की तैयारी शुरू कर दी।
पर्ल हार्बर पर हुआ यह हमला इतिहास में एक ऐसा मोड़ साबित हुआ, जिसने न केवल द्वितीय विश्व युद्ध का रुख बदला, बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाला। आगे चलकर जब हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए गए तो उसे पर्ल हार्बर का बदला ही करार दिया गया।