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Reading: आज की तारीख – 23: भारतीय सेना, मुक्ति बाहिनी और बांग्लादेश की आज़ादी का मिशन!
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Fourth Special

आज की तारीख – 23: भारतीय सेना, मुक्ति बाहिनी और बांग्लादेश की आज़ादी का मिशन!

1971 के उस युद्ध में लगभग 30 लाख लोग मारे गए और करोड़ों लोग बेघर हुए। लेकिन इस संघर्ष के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ।

Last updated: नवम्बर 21, 2024 1:36 अपराह्न
By Rajneesh 6 महीना पहले
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4 Min Read
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1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान। दोनों हिस्सों के बीच केवल भौगोलिक दूरी ही नहीं, सांस्कृतिक और भाषाई अंतर भी था।

1970 में, पाकिस्तान के आम चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग ने बहुमत हासिल किया। शेख मुजीब ने स्वायत्तता की मांग की, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की सत्ता (ज़ुल्फिकार अली भुट्टो और सेना) इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थी।

25 मार्च 1971 की रात, पाकिस्तानी सेना ने जब ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ चलाया। तब ढाका में भीषण नरसंहार हुआ। यह घटना बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की शुरुआत थी।

पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के कारण लाखों शरणार्थी भारत में आ गए। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम जैसे राज्यों पर इसका भारी बोझ पड़ा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का प्रयास किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों से हस्तक्षेप की अपील की।

इस बीच, पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के लिए ‘मुक्ति बाहिनी’ का गठन हुआ। मुक्ति बाहिनी पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों का समूह था, जिसे भारतीय सेना ने रणनीतिक और सैन्य सहायता प्रदान की।

21 नवंबर 1971 को भारतीय सेना और मुक्ति बाहिनी ने एक संयुक्त कमान के तहत हमला किया। इसे ‘ऑपरेशन ट्रायडेंट ‘कहा गया। इस संयुक्त बल ने पश्चिमी पाकिस्तान की सेना को कई मोर्चों पर हराया।

फिर पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के 11 हवाई अड्डों पर हमला किया। यह भारत के खिलाफ युद्ध की आधिकारिक शुरुआत थी। भारत ने तत्काल जवाब दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए युद्ध का एलान किया। 4-8 दिसंबर 1971 तक भारतीय नौसेना ने कराची के पास ऑपरेशन ट्राइडेंट और ऑपरेशन पायथन चलाया। पाकिस्तानी नौसेना को भारी नुकसान हुआ। 10 दिसंबर 1971 तक भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के प्रमुख शहरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। बांग्लादेश के नागरिकों और मुक्ति बाहिनी ने भारतीय सेना के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को हराने में सहयोग किया। अखिरकार 14 दिसंबर 1971 को ढाका पर कब्जा करने के लिए अंतिम हमला शुरू हुआ। इस दिन को बांग्लादेश की आजादी की दिशा में निर्णायक माना जाता है।

16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के जनरल ए.ए.के. नियाजी ने ढाका में भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया। उनके साथ लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था।

भारतीय सेना के चीफ ऑफ स्टाफ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने कुशल नेतृत्व दिखाया। उनके योजनाबद्ध रणनीति ने भारत को यह ऐतिहासिक जीत दिलाई।

1971 के उस युद्ध में लगभग 30 लाख लोग मारे गए और करोड़ों लोग बेघर हुए। लेकिन इस संघर्ष के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ। यह केवल भूगोल का बदलाव नहीं था; यह मानवीय गरिमा और न्याय की जीत थी।

बांग्लादेश आज एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप का अभिन्न हिस्सा है। इस युद्ध ने भारत और बांग्लादेश के संबंधों को मजबूत किया था।

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