अपनी मर्जी से शादी करने वाले जोड़े को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि, कोई भी बालिग व्यक्ति अपने पसंद के व्यक्ति के साथ रह सकता है और उससे intercast marriage भी कर सकता है। हर बालिग को जीवन साथी चुनने का अधिकार है। क्योंकि “यह एक अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है”।
21 वर्षीय महिला ने अप्रैल 2024 में मुस्लिम रीति-रिवाजों के तहत अपनी मर्जी से विवाह किया था। जिसे तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड ने प्रमाणित भी किया था। लेकिन महिला द्वारा शादी करने के फैसले से उसके चाचा खुश नहीं थे। महिला ने यह भी आशंका जताई थी कि उसे मार दिया जाएगा क्योंकि उसके चाचा उसे धमका रहे थे। उसके बाद युवती ने FIR को चुनौती देते हुए, याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया।
इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं। इसलिए महिला के चाचा को FIR दर्ज कराने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने महिला को उसके चाचा के घर भेजने के मजिस्ट्रेट के आदेश को सही नहीं माना। मजिस्ट्रेट ने महिला को CRPC की धारा 164 के तहत उसके बयान के बावजूद उसके चाचा के घर भेज दिया था, जिसमें उसने अपने चाचा/माता-पिता के घर भेजे जाने पर अपनी जान को खतरा व्यक्त किया था। उसके बाद कोर्ट ने FIR रद्द करते हुए SP सिद्धार्थनगर और थाना प्रभारी बांसी को महिला की सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया। उसके चाचा या परिवार के अन्य सदस्य की ओर से कोई बाधा नहीं उत्पन्न की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा किसी की मर्जी के खिलाफ किसी के साथ उसे रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता हैं। लड़की के मजिस्ट्रेट के समक्ष जीवन को खतरे के बयान के बाद लड़की के चाचा के खिलाफ FIR दर्ज होनी चाहिए थी, जो की नहीं की गई थी। कोर्ट ने कहा कि, SP सिद्धार्थनगर SHO बांसी द्वारा किसी तरह की कोई कार्रवाई न करने के लिए समान रूप से जवाबदेह हैं। उन्होंने लड़की को किसी तरह की कोई सुरक्षा क्यों नहीं दी?