26 नवंबर 2008 की वो मनहूस रात! ताज होटल के बाहर पुलिस की गाड़ियाँ तेज़ी से दौड़ रही थीं। सायरनों की आवाज़ से सभी सड़कें गूंज रही थी। होटल के अंदर से लोगों की चीखें और गोलियों की तेज़ आवाज़ें सुनाई पड़ रहीं थीं। लोग इधर – उधर भाग रहे थे। कोई दरवाज़ों की तरफ दौड़ रहा था तो कोई दीवारों की ओट में छिपने की कोशिश कर रहा था। एक माँ, अपने दो बच्चों को सीने से लगाए, ज़मीन पर बैठे रो रही थी। वहीं पास में, एक होटल का कर्मचारी, घबराहट में एक कमरे में छिपा हुआ था। उसकी आँखों के सामने उसके साथी की गोलियों से छलनी लाश पड़ी थी। पुलिस और सेना ने ऑपरेशन चलाया, गोलियों की आवाज़ धीरे धीरे थम गई… आतंकी मारे गये। इतना समय बीत गया लेकिन उस रात का दर्द और खौफनाक यादें आज भी लोगों के दिलों में एक नासूर बनकर जिंदा हैं।
इस हमले में 10 पाकिस्तानी आतंकवादी शामिल थे, जो पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा संगठन से जुड़े थे। इन आतंकवादियों को कई महीनों की कड़ी ट्रेनिंग दी गई थी, जिसमें हथियारों का इस्तेमाल, बम बनाना, और गुप्त तरीकों से आतंक फैलाने की शिक्षा शामिल थी। उस आतंकी हमले ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को हिला कर रख दिया। 166 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। इस पूरे हमले की योजना पाकिस्तान में रची गई थी, जहाँ इन आतंकवादियों को समुद्री रास्ते से मुंबई पहुंचाया गया। ये आतंकी कोलाबा के पास से समुद्र के रास्ते मुंबई में दाखिल हुए और शहर के विभिन्न हिस्सों में दहशत फैलाने लगे। आतंकवादियों में से अजमल कसाब एकमात्र ऐसा आतंकी था जिसे ज़िंदा पकड़ा गया। कसाब ने अपने बयान में खुलासा किया कि’ उसे और अन्य आतंकियों को पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी गई थी और वे लोग भारत में आतंक फैलाने के लिए भेजे गए थे।’
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पर दबाव डाला और संयुक्त राष्ट्र समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों से आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने की अपील की। जांच आगे बढ़ी तो उसमे ‘डेविड कोलमैन हेडली’ और उसके मित्र ‘तहव्वुर हुसैन राणा’ का नाम भी सामने आया। मुंबई हमले के षड्यंत्र में दोनों व्यक्ती प्रमुख रूप से जुड़े हुए हैं। हेडली एक अमेरिकी नागरिक है, वहीं राणा एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है।
हमले में दोनों की भूमिका
तहव्वुर राणा पर आरोप था कि उसने मुंबई हमले की साजिश रचने में डेविड हेडली की मदद की थी। हेडली, लश्कर-ए-तैयबा का एजेंट था। उसने राणा की कंपनी का इस्तेमाल करते हुए भारत के विभिन्न स्थानों की रेकी की थी। राणा की कंपनी के माध्यम से हेडली ने भारतीय वीजा प्राप्त किया और उसकी गतिविधियों पर संदेह ना हो इसलिये उसने राणा की कंपनी का कवर इस्तेमाल किया। दोनों ने फिर मिलकर मुंबई में हमलों की योजना बनाई, जिनका लक्ष्य भारत के महत्वपूर्ण स्थलों और वहां के नागरिकों को निशाना बनाना था। हेडली ने होटल ताज, नरीमन हाउस, और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की रेकी की थी, जिनकी जानकारी बाद में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को दी गई। राणा ने हेडली को इन गतिविधियों में न केवल वित्तीय सहायता दी, बल्कि उसे सुरक्षा और कानूनी संरक्षण भी प्रदान किया।
गिरफ्तारी और मुकदमा
2009 में तहव्वुर राणा को अमेरिका में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप मे शिकागो से गिरफ्तार कर लिया गया। राणा का मुकदमा शिकागो में ही चला। राणा को 26/11 मुंबई हमले में सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया गया, लेकिन तब उसे डेनमार्क में एक अन्य आतंकी साजिश में शामिल होने के आरोप में दोषी पाया गया था। उसके खिलाफ आरोपों में यह बात सामने आई कि, उसने हेडली के साथ मिलकर आतंकवादी साजिशों को अंजाम दिया और भारत और डेनमार्क में हमलों की योजना बनाने में आतंकियों की सहायता की। इसके अलावा, राणा ने हेडली को उस समय कानूनी संरक्षण भी प्रदान किया जब वह विभिन्न देशों में यात्रा कर रहा था और आतंकी हमलों की योजना बना रहा था।
भारत की मांग
भारत ने अमेरिका से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की मांग की थी, ताकि वह 26/11 के मुंबई हमले में उसकी भूमिका के लिए मुकदमे का सामना कर सके। अमेरिकी अदालत ने भारत के अनुरोध पर विचार किया और दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत अब राणा को भारत को प्रत्यर्पित किया जा सकता है। हालांकि, तहव्वुर राणा ने कोर्ट में तर्क दिया था कि, वह अमेरिकी प्रत्यर्पण संधि के दायरे में नहीं आता। लेकिन कोर्ट ने उसकी दलीलों को खारिज करते हुए माना कि भारत ने राणा के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत दे दिए हैं। साथ ही, राणा पर लगाए गए आरोप अमेरिका और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के अंतर्गत भी आते हैं।
इसका सीधा मतलब है कि अब तहव्वुर राणा को कभी भी भारत को सौंप दिया जायेगा। उस पर बाकी का मुकदमा यहां की जेलों मे रहते हुये चलेगा।