दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने महिलाओं के लिए बड़ा एलान किया है। पार्टी ने कहा कि अगर वो सत्ता में आती है तो महिलाओं के लिए ‘प्यारी दीदी योजना’ शुरू की जाएगी। जिसके तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये दिए जाएंगे। यूं तो यह कोई नई योजना नहीं है बल्कि मध्य प्रदेश मे भाजपा द्वारा ‘लाड़ली बहना योजना’ की सफलता, जिसे उन्होंने छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी दोहराया उसी प्रारूप की नकल है। अब हर राज्य की चुनाव में सरकारें जनता को तरह-तरह के मुफ्त के लोलीपॉप देने लगी है जो एक चिंतनीय बात है।
हर बीतते दिन के साथ भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। हर चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने का वादा किया जाता है, जैसे मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन, मुफ्त शिक्षा, यहां तक कि मुफ्त पैसा भी। यह प्रवृत्ति न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है, बल्कि आम जनता के भविष्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रही है।
अब ये ट्रेंड बन चुका है जिसका मुख्य चेहरा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। उन्होंने मुफ्तखोरी को एक नई पहचान दी है, जिसका देश भर में बुरी तरह का व्यापक प्रभाव पड़ा है।
पिछले कुछ वर्षों में, राजनीतिक दलों ने चुनावी वादों के तौर पर मुफ्त सुविधाएं देने की होड़ में शामिल हो गए हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ राज्यों में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त वाईफाई, और यहां तक कि मुफ्त स्मार्टफोन तक देने का वादा किया गया है। 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस ने “गरीब न्याय योजना” के तहत महिलाओं को प्रतिमाह ₹2,000 देने का वादा किया था। इसी तरह, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में भी मुफ्त सुविधाओं का चलन बढ़ा है।
अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी ने मुफ्तखोरी को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पहले भी कई मुफ्त की योजनाओं को लागू किया हुआ है, जिसका बुरा असर हम दिल्ली की हवा तक में महसूस कर सकते हैं। उनकी सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की सुविधा शुरू की, जिसे शुरू में तो लोगों ने सराहा, लेकिन बाद में इसके आर्थिक प्रभाव सामने आने लगे।
केजरीवाल ने अपनी नीतियों को “रिहायशी सुविधाएं” बताकर लोगों को लुभाने की कोशिश की, लेकिन इन योजनाओं का खर्च दिल्ली सरकार के बजट पर भारी पड़ा। उदाहरण के लिए, दिल्ली सरकार ने 2022-23 के बजट में मुफ्त बिजली और पानी पर ₹3,250 करोड़ खर्च किए। यह राशि शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च की जा सकती थी।
केजरीवाल ने अपनी मुफ्तखोरी की नीतियों को अन्य राज्यों में भी फैलाने की कोशिश की है। पंजाब चुनाव में AAP ने मुफ्त बिजली और अन्य सुविधाओं का वादा किया था, जिसके बाद पार्टी ने वहां सरकार बनाई। हालांकि, इन योजनाओं के कारण पंजाब की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ रहा है।
मुफ्तखोरी का सबसे बड़ा नुकसान देश की अर्थव्यवस्था को होता है। सरकारें जब मुफ्त सुविधाएं देती हैं, तो उसका खर्च टैक्सपेयर्स के पैसे से ही पूरा होता है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है और देश का कर्ज भी बढ़ता जाता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 85% के करीब पहुंच गया है। मुफ्तखोरी की नीतियां इस ऋण को और बढ़ा सकती हैं।
मुफ्तखोरी का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यह लोगों को आलसी और निर्भर बना देती है। जब लोगों को मुफ्त में सब कुछ मिलने लगता है, तो उनकी मेहनत करने और आत्मनिर्भर बनने की प्रवृत्ति कम हो जाती है। अरविंद केजरीवाल की मुफ्तखोरी की नीतियों ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि सरकार का काम केवल मुफ्त सुविधाएं देना है, न कि रोजगार और विकास के अवसर पैदा करना।
मुफ्तखोरी की नीतियां विकास के मूल मुद्दों से ध्यान भटकाती हैं। बजाय इसके कि सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान दें, वे मुफ्त सुविधाएं देकर लोगों को खुश करने की कोशिश करती हैं। इससे देश का वास्तविक विकास रुक जाता है।
मुफ्तखोरी का चलन अगर यूं ही बढ़ता रहा, तो भविष्य में देश को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। बढ़ता हुआ सरकारी कर्ज, बुनियादी ढांचे की कमी, और आलसी होती जनता देश को पीछे धकेल सकती है। अरविंद केजरीवाल की मुफ्तखोरी की नीतियों ने इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया है, जो देश के लिए चिंताजनक है।
मुफ्तखोरी का चलन भले ही राजनीतिक दलों को चुनाव जिताने में मदद करता हो, लेकिन यह देश और समाज के लिए बहुत ही खतरनाक है। अरविंद केजरीवाल ने इस प्रवृत्ति को एक नई पहचान दी है, जिसका देश भर में व्यापक प्रभाव पड़ा है। जनता को समझना होगा कि मुफ्त की चीजें अस्थायी होती हैं, लेकिन उनके दुष्परिणाम लंबे समय तक भुगतने पड़ सकते हैं। राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे मुफ्तखोरी के बजाय विकास और आत्मनिर्भरता पर ध्यान दें।
लेकिन आवाज़ ख़ुद लोगों को उठानी होगी क्यूंकि …एक बात याद रखें, मुफ्त में मिली चीजों की कीमत हमेशा भविष्य में चुकानी पड़ती है।