भारतीय सभ्यता में “कास्ट सिस्टम” यानि जातीय प्रणाली का अपना एक अलग और खास हिस्सा है। आज के ज़माने में हम चाहे जितना भी इस चीज को झुटला लें, चाहे कितनी भी अनेकता में एकता वाली बात कर लें, पर इस कटु सत्य पर कोई भी पर्दा नहीं डाला जा सकता कि भारत में जातीय प्रणाली के आधार पर कई महत्वपूर्ण फैसले किए जाते हैं, उदाहरण के लिए रिजर्वेशन और वोटिंग बिलकुल सटीक रहेगा।
भारत में जाति व्यवस्था प्राचीन काल में ही बनाई गई, जिसके अनुसार पेशे के आधार पर जातियों या उस समय की बात की जाए तो “वाराणो” में विभाजन किया जाता था, जो थे “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र।
इस व्यवस्था के कई दुष्परिणाम भी निकले। उच्च वरण में आने वाले लोगों ने निचले वरण के लोगों के साथ कई प्रकार के शोषण करने शुरू कर दिए जिसमे “अस्पृश्यता या छूत-अछूत” सबसे बड़ा उदाहरण है। इसको लेकर हमारे भारतीय इतिहास ने कई महामानवों को देखा जिन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई और आखिरकार जब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान की संरचना की, तो आर्टिकल 15 के तहत इस भेदभाव को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इसका सीधा उद्देश्य ये था कि जाति को लेकर भेदभाव की मानसिकता को तोड़ा जाए।
संविधान को बने 73 साल हो चुके हैं। जातीय-भेदभाव के लिए कई कानून बनाए गए, पर फिर भी वे इस कोढ़ की बीमारी को हमारे प्रजातांत्रिक देश से उखाड़ फेंकने में नाकामयाब रहे। आज भी जाति के नाम पर प्रताड़ना और खून खराबे की खबरें काफी आम हैं। हमारे समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों की एक बड़ी संख्या आज भी मैला ढोने का काम करती है। आज भी जातीय हत्याकांड, ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं। दशरथ पेशाब कांड आपको याद हो होगा। इंटर कास्ट मैरेज को तो अभी भी इस देश में बुरी नजर से देखा ही जाता है। जितने आंदोलन और जितनी आवाजें हमारे देश में जातीय आरक्षण के लिए उठाई जाती हैं, उतनी ही आवाजें और उतने ही आंदोलन अगर जातीय व्यवस्था प्रताड़ना को हटाने में लगाया जाता या भी उन्हें एजुकेशन के जरिए बराबरी के दर्जे पर लाने में लगाया जाता, तो अब तक हमारा देश शायद इसकी जकड़ से छूट गया होता।
इस बात को अनुभव सिन्हा द्वारा निर्मित फिल्म “आर्टिकल 15” ने बड़ी ही बेबाकी और गंभीरता से उठाया है। फिल्म में एक विदेश में पढ़ा हुआ अपने देश पर गर्व करने वाला लड़का (आयुष्मान खुराना) जब आई पी एस बन देश की असली जातीय दलदल में उतरता है तो कैसी खौफनाक सच्चाइयां उसके सामने आती है, और वो कैसे उनसे पार पाता है, इस बात का जीता जागता प्रदर्शन है आर्टिकल 15।
हमारा देश आज विकास की राह पर तेज गति से दौड़ रहा है, नई तकनीकों को बढ़ावा दे रहा है। ऐसे में जब भारत एक बिलकुल आज के ज़माने से कदम से कदम मिलाकर चल रहा है, तो क्यों हम जातीय भेदभाव जैसी पुरातन काल की रूढ़िवादी और पिछड़ी सोच में फसें। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि इसके बारे में एजुकेशन को ज्यादा से ज्यादा पब्लिक किया जाए और इनका खंडन करने वालों के प्रति रवैए को और भी सख्त किया जाए। तब जाकर हमारा देश कहीं असली प्रजातंत्र की ओर अग्रसर हो सकेगा।