भोपाल। मध्य प्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर का मशहूर कड़कनाथ मुर्गा चुनावी सीजन में भारी डिमांड में है। इसकी कीमतें भी सामान्य से काफी अधिक होती जा रही हैं। क्षेत्रीय भाषा में ‘कालामासी’ नाम से प्रसिद्ध इस जीआई टैग प्राप्त चिकन की कीमत यूं तो 700-800 रुपए के बीच होती है लेकिन चुनाव या विशेष अवसरों पर इनका मिलना ही दुर्लभ हो जाता है मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर यही हुआ है। हाय न्यूट्रीशनल वैल्यू, लो फैट, हाई प्रोटीन, विटामिन, आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर कड़कनाथ के दाम बढ़ना शुरू हो गए हैं।
यूनिक टेस्ट लिए मशहूर
कड़कनाथ अपने यूनिक टेस्ट और न्यूट्रिशियंस के लिए भी मशहूर है। इस बार विधानसभा चुनावों की वजह से कड़कनाथ ऊंची कीमत पर भी कुर्बान होने की तैयारी में है। चौंकाने वाली बात ये है कि स्थानीय आदिवासी समाज की पहली पसंद कड़कनाथ नहीं है। वह देसी मुर्गे का ही सेवन करते हैं और दीपावली पर हर घर में मुर्गा बनाया जाता है।
चुनावी सीजन में तांता
हालांकि नॉनवेज पसंद करने वाले बाहरी व्यक्ति कड़कनाथ की चाहत के लिए झाबुआ या अलीराजपुर क्षेत्र में आते हैं। यह चुनावी सीजन है और क्षेत्र में प्रचार के लिए बाहरी नेता और उनके समर्थकों का तांता लगा हुआ है। चुनाव प्रचार के साथ-साथ उनकी प्राथमिकता में कड़कनाथ का सेवन भी होता है। हालांकि, उनका कहना है कि 10 नवम्बर के बाद कड़कनाथ की बिक्री और उनकी कीमतों पर तेजी से असर पड़ेगा। कड़कनाथ की उत्पत्ति झाबुआ जिले कट्ठीवाड़ा व अलीराजपुर क्षेत्र के जंगलों में हुई है। इसे काला मासी इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसका मांस, चोंच, कलगी, जुबान, टांगे, नाखून और चमड़ी आदि काली होती है। ऐसा मेलेनिन पिगमेंट की अधिकता के कारण होता है। इसकी जेट ब्लैक, पेन्सिलड और गोल्डन प्रजाति होती है।
क्या बोले जानकार
कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ के जगदीश मौर्य बताते हैं कि कड़कनाथ की बुकिंग की संख्या बढ़ी है। उनके केंद्र से प्रतिदिन दो से तीन कड़कनाथ बिकते थे, जो अब 8 से 10 हो गए हैं। इसके अलावा करीब डेढ़ दर्जन स्व सहायता समूह भी कड़कनाथ का उत्पादन कर रहे हैं। वे भी प्रतिदिन फिलहाल करीब 80 मुर्गे बेच रहे हैं। उन्होंने कहा हमारे यहां तो कीमतें निश्चित हैं, लेकिन स्व सहायता समूह इसमें मौके के हिसाब से उतार-चढ़ाव कर लेते हैं। इसके अलावा जगह-जगह आउटलेट भी खुल चुके हैं। उन्होंने बताया कि सावन मास के बाद यूं भी इसकी डिमांड बढ़ने लगती है। जैसे-जैसे ठंड का असर तेज होता है इनकी बिक्री और भी बढ़ जाती है। इस बार चुनाव है, तो निश्चित ही बाहर से आने वाले लोगों की भी पहली चाहत कड़कनाथ ही होगी। उन्होंने बताया कि गुजरात की एक पार्टी करीब 4 महीने पूर्व केंद्र से करीब 4000 चूजे ले जा चुकी है। अभी भी करीब 500 कड़कनाथ उनके केंद्र पर बिक्री के लिये उपलब्ध हैं।