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Reading: देवी अहिल्याबाई होळकर: धर्म, न्याय और शक्ति का संगम
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Fourth Special

देवी अहिल्याबाई होळकर: धर्म, न्याय और शक्ति का संगम

अहिल्याबाई अत्यंत न्यायप्रिय थीं

Last updated: मई 31, 2025 11:07 पूर्वाह्न
By Mihir Dhekane 2 दिन पहले
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5 Min Read
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भारतभूमि हमेशा ऐसे महापुरुषों और स्त्रियों की जन्मस्थली रही हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से, अपने शौर्य-पराक्रम से हमारे देश, समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला हैं। इन्हीं में से एक नाम हैं देवी अहिल्याबाई होळकर का, जिन्होंने अपने इंदौर राज्य का प्रशासन तो बड़ी कुशलता से संभाला ही, साथ ही युद्धभूमि में भी शौर्य दिखाया। इसके अलावा भारत भर में आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए सैकड़ों मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाकर हिंदूधर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए जो योगदान दिया, वो वाकई में अतुलनीय हैं।

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को वर्तमान महाराष्ट्र के एक गांव चौंडी में हुआ था। उनके पिता मानकोजी शिंदे गांव के पाटिल थे और उनकी माँ का नाम सुशीलाबाई था। उस वक्त जब लड़कियों को पढ़ाई के मौके कम ही मिलते थे, उनके पिता ने ही उन्हें घर पर लिखना-पढ़ना सिखाया। उनकी योग्यता बचपन से ही झलकने लगी थी।

सिर्फ 9-10 साल की उम्र में उनके उत्तम चरित्र से प्रभावित होकर सुभेदार मल्हारराव होळकर ने अपने बेटे खंडेराव से उनके विवाह का प्रस्ताव रखा। दोनों का विवाह हुआ और उन्हें दो संतानें हुई, माळेराव और मुक्ताबाई। मल्हारराव माळवा के शासक थे, साथ ही मराठा साम्राज्य के सबसे महान लोगों में से एक थे। मल्हारराव ने उनके भीतर छिपी योग्यता को बहुत पहले ही देख लिया था और गृहस्थी के कामों के अलावा उन्हें राजनीति, प्रशासन और युद्धभूमि की बारीकियां भी समझाई। अहिल्याबाई ने अपने ससुर से जो बातें सीखी, वो उन्हें भविष्य में बहुत काम आईं।

विवाह के बाद कुछ वर्षों तक तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन उनका बाद का जीवन दुःखद घटनाओं से भरा हुआ था। 1754 में उनके पति खंडेराव कुम्भेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। 1766 में उनके ससुर मल्हारराव का भी देहांत हो गया। इसके कुछ वक्त बाद ही, 1767 में उनके बेटे माळेराव का भी निधन हो गया। इन घटनाओं के बाद कोई भी सामान्य व्यक्ति टूट सकता हैं, मगर उन्होंने बहुत धैर्य और साहस से काम लिया। अपने बेटे के शासनकाल के दौरान भी प्रशासन की बागडोर संभाली और उसके निधन के बाद 1767 में खुद भी इंदौर की महारानी बनी।

अहिल्याबाई अत्यंत न्यायप्रिय थीं। वे स्वयं जनता की शिकायतें सुनती थीं और निष्पक्ष निर्णय लेती थीं। उनके दरबार में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता था। उन्होंने न्याय व्यवस्था को मज़बूत किया और गरीबों तथा वंचितों को न्याय दिलाया। वो अपनी प्रजा के कल्याण को बहुत महत्व देती थी। उन्होंने कुएँ खुदवाए, नहरें बनवाईं और किसानों को हर संभव सहायता प्रदान की। उन्होंने व्यापार को भी बढ़ावा दिया, जिससे राज्य में खुशहाली आई।

हालांकि उनके जिस कार्य के लिए लिए उन्हें आज भी याद किया जाता हैं वो हैं आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए भारत के मंदिरों का पुनर्निर्माण। उन्होंने अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार और निर्माण करवाया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, गया का विष्णुपाद मंदिर, सोमनाथ मंदिर और अन्य प्रमुख तीर्थस्थल शामिल हैं। उन्होंने धर्मशालाओं, घाटों और सड़कों का भी निर्माण करवाया, जिससे तीर्थयात्रियों को सुविधा हुई।

उनका प्रशासन बहुत कुशल था। उन्होंने योग्य अधिकारियों की नियुक्ति की और राज्य की आय और खर्च का ध्यान रखा। अहिल्याबाई में गजब की सैन्य क्षमता भी थी। उन्होंने अपनी सेना को एकजुट रखा और राज्य की सीमाओं की रक्षा की। ज़रूरत पड़ने पर उन्होंने खुद भी युद्धभूमि में सैनिकों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कला और साहित्य को भी संरक्षण दिया। उनके दरबार में विद्वानों, कलाकारों और कवियों को सम्मान मिलता था।

देवी अहिल्याबाई होळकर का 1795 में निधन हो गया, लेकिन उनके कार्यों की छाप आज भी दिखाई देती हैं। इंदौरवासी तो उन्हें सम्मान के साथ याद करते ही हैं, लेकिन सभी भारतवासी भी उन्हें बहुत आदर से याद करते हैं। ऐसी महान विभूति को उनकी 300वीं जयंती पर हमारा कोटि-कोटि नमन।

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TAGGED: Devi Ahilyabai Holkar, hindu culture, Indian history, indore, madhya pradesh, thefourth, thefourthindia
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