Doomsday Clock एक बार फिर से चर्चा में हैं और इस का चर्चा में आना यानी खतरे की घंटी। ये एक symbolic clock है, जो इस बात को दर्शाती है कि पृथ्वी विनाश के कितने करीब है। यह घड़ी मूल रूप से परमाणु युद्ध के खतरे को मापने के लिए बनाई गई थी, लेकिन समय के साथ इसमें जलवायु परिवर्तन, जैविक खतरों, AI और अन्य वैश्विक संकटों को भी शामिल कर लिया गया। इसे “कयामत की घड़ी” भी कहा जाता है क्योंकि इसकी सुइयों की स्थिति यह दिखाती है कि दुनिया तबाही के कितने करीब है।
Bulletin of the Atomic Scientists नामक संगठन ने 1945 में इस घड़ी की अवधारणा विकसित की। इस संगठन की स्थापना अल्बर्ट आइंस्टीन, रॉबर्ट ओपनहाइमर, यूजीन रबीनोविच और शिकागो विश्वविद्यालय के कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने की थी। ये वैज्ञानिक वे थे, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बम बनाने की प्रक्रिया को देखा था और इस तकनीक के खतरे को समझते थे।
1947 में इस संगठन ने पहली बार Doomsday Clock की परिकल्पना को प्रस्तुत किया। तब से लेकर अब तक, इस घड़ी को दुनिया की मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर सेट किया जाता है। यह समय बताने वाली साधारण घड़ी नहीं है, बल्कि एक सांकेतिक चेतावनी देने वाली घड़ी है, जिसे मानवता के सामने मौजूद खतरों के हिसाब से एडजस्ट किया जाता है।
इस घड़ी का समय Bulletin of the Atomic Scientists का Science and Security Board तय करता है। इस बोर्ड में दुनिया के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, नोबेल पुरस्कार विजेता और नीति-निर्माता शामिल होते हैं। वे हर साल यह विश्लेषण करते हैं कि पृथ्वी किस तरह के और कितने बड़े संकटों का सामना कर रही है और उसी के आधार पर घड़ी की सुइयों को आगे या पीछे किया जाता है।
इस घड़ी में रात 12 बजे (मिडनाइट) को उस समय के रूप में दर्शाया जाता है, जब मानवता पूरी तरह से विनाश के कगार पर होगी। जैसे-जैसे दुनिया पर खतरा बढ़ता है, वैसे-वैसे यह घड़ी रात 12 के और करीब आ जाती है। अगर हालात सुधरते हैं तो इसे थोड़ा पीछे कर दिया जाता है।
डूम्सडे क्लॉक का ऐतिहासिक टाइमलाइन समझने के अहम घटनाओं के बारे में जानना भी जरूरी है।
1947 – जब इस घड़ी को पहली बार सेट किया गया था, तब इसे रात 11:53 पर रखा गया था, यानी मानवता के पास केवल 7 मिनट का समय बचा था।
1953 – अमेरिका और सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया, जिसके बाद घड़ी को रात 11:58 पर सेट किया गया। यह समय घड़ी के अब तक के इतिहास में सबसे खतरनाक समयों में से एक था।
1991 – शीत युद्ध के अंत और अमेरिका-रूस के बीच START (Strategic Arms Reduction Treaty) संधि होने के बाद इस घड़ी को 17 मिनट पीछे कर दिया गया, और यह रात 11:43 पर आ गई। यह अब तक का सबसे सुरक्षित समय था।
2018 – परमाणु हथियारों की होड़, जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय तनावों को देखते हुए घड़ी को रात 11:58 पर ला दिया गया।
2020 – यह पहली बार हुआ जब घड़ी को 100 सेकंड (1 मिनट 40 सेकंड) पर लाया गया। कोविड-19 महामारी, जलवायु संकट और परमाणु हथियारों की दौड़ इसकी प्रमुख वजहें थीं।
2023– रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता और जलवायु परिवर्तन के कारण घड़ी को 90 सेकंड पर सेट कर दिया गया। यह मानवता के लिए अब तक का सबसे खतरनाक संकेत था।
Doomsday clock क्यूँ है इतनी महत्वपूर्ण?
- वैश्विक संकट की चेतावनी – यह घड़ी दुनिया को बताती है कि हम कितने बड़े संकट की ओर बढ़ रहे हैं और इसे रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए।
- परमाणु हथियारों का खतरा – दुनिया में परमाणु युद्ध की आशंका हमेशा बनी रहती है। इस घड़ी के जरिए वैज्ञानिक बताते हैं कि यह खतरा कितना गंभीर है।
- जलवायु परिवर्तन – पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। डूम्सडे क्लॉक यह संकेत देती है कि हमें जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने होंगे।
- टेक्नोलॉजी और बायोलॉजिकल थ्रेट्स – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर वॉर और जैविक हमलों (जैसे महामारी) के बढ़ते खतरों को भी यह घड़ी संकेत के रूप में दर्शाती है।
नहीं, डूम्सडे क्लॉक कोई भविष्यवाणी करने वाली मशीन नहीं है। यह केवल scientific analysis और वर्तमान स्थिति के आधार पर एक symbolic warning देती है । इसका उद्देश्य लोगों को सचेत करना और सरकारों को सही नीतियां बनाने के लिए प्रेरित करना है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह घड़ी जरूरत से ज्यादा डर फैलाती है, जबकि कुछ लोग इसे एक बहुत जरूरी चेतावनी मानते हैं। कई बार यह भी सवाल उठता है कि इस घड़ी को सेट करने वाले वैज्ञानिक कितने निष्पक्ष होते हैं। लेकिन ज्यादातर वैज्ञानिक और नीति-निर्माता इसे एक उपयोगी टूल मानते हैं, जो सरकारों को सही दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करता है।
डूम्सडे क्लॉक एक चेतावनी संकेत है, जो यह बताने की कोशिश करता है कि मानवता किन खतरों का सामना कर रही है और हमें कैसे जागरूक होना चाहिए। 2024 में यह घड़ी अब तक के सबसे खतरनाक समय यानी 90 सेकंड टू मिडनाइट पर थी, जो इस बात का संकेत है कि हमें अपने ग्रह और समाज के लिए जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यदि हम परमाणु युद्ध को रोकने, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और साइबर वॉर जैसी तकनीकी खतरों को संभालने में सफल रहते हैं, तो यह घड़ी पीछे जा सकती है। लेकिन अगर दुनिया ने इन खतरों को नजरअंदाज किया, तो कयामत की यह घड़ी हमें बहुत कुछ बताने के लिए तैयार है, और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।