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Reading: Guru Nanak Jayanti: आखिर क्यों मनाते है गुरुनानक जयंती, और कैसे शुरू हुई लंगर की प्रथा
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Religion

Guru Nanak Jayanti: आखिर क्यों मनाते है गुरुनानक जयंती, और कैसे शुरू हुई लंगर की प्रथा

क्या है गुरूनानक जी की तीन बड़ी शिक्षा।

Last updated: नवम्बर 27, 2023 7:58 अपराह्न
By Divya 1 वर्ष पहले
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6 Min Read
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गुरूनानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस साल 2023 में गुरूनानक जयंती आज यानि 27 नवंबर को मनाई जाएगी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिखों के पहले गुरु गुरूनानक देव का जन्म हुआ था। इस लिए सिख धर्म में इस दिन को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन को प्रकाश पर्व और गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस दिन गुरुद्वारों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन सिख लोग गुरुद्वारे जाकर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं।

कौन थे गुरुनानक, कब और कहा हुआ उनका जन्म

गुरुनानक देव सिख धर्म के पहले गुरु संस्थापक और एक आध्यात्मिक लीडर थे। उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन यानि 15 अप्रैल 1469 में तलवंडी गांव में हुआ था। गुरु नानक देव एक दूरदर्शी और धार्मिक सुधारक थे। जिनकी शिक्षाओं और सिद्धांतों ने सिख धर्म की नींव रखी। आपको बता दे कि, गुरुनानक देव अपने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। जिसके बारे में कहा जाता है कि, यह ज्ञान उन्हें बेन नदी के किनारे ध्यान की अवधि के दौरान मिला था। सिख परंपरा के अनुसार वह तीन दिनों के लिए पानी के भीतर गायब हो गए और एक दिव्य संदेश के साथ उभरे जिसमें ईश्वर की एकता और निस्वार्थ सेवा और समानता के लिए समर्पित जीवन जीने के महत्व पर जोर दिया गया।

सिख धर्म में लंगर का मतलब क्या है?

सिख धर्म में लंगर का मतलब यह हैं कि, बिना किसी भेदभाव जाति और ऊंच नीच की भावना से एक साथ एक ही रसोई में बना भोजन करना है। गुरुद्वारों में यह भोजन निःशुल्क होता है, और लंगर की व्यवस्था हर गुरुद्वारे में होती है। गुरुनानक देव जी ने कहा था कि “अमीर-गरीब जाती-पाती ऊंचा-नीचा इन सबसे ऊपर भूख है, जो लोग भूखे है उन्हे खाना खिलाओ” यही सबसे बड़ा कार्य होना चाहिए।

लंगर की प्रथा कब से शुरू हुई?

आपको बता दे कि सिख धर्म में प्रचलित कहानियों के अनुसार एक बार गुरुनानक जी के पिता ने उन्हें काम करने के लिए कुछ पैसे दिए थे। जिसे देकर उन्होंने कहा कि वो बाज़ार से सौदा करके कुछ पैसे कमा कर लेके आए। लेकिन रास्ते में उन्होंने कुछ भिखारियों और भूखों को देखा, तो उन्होंने सारे पैसों से भूखों को खाना खिला दिया और खाली हाथ घर लौट आए। इस वजह से गुरुनानक के पिता बहुत नाराज हुए। गुरुनानक देव का कहना है कि, सच्चा लाभ तो सेवा करने में ही है। तभी से गुरुनानक देव की यह परंपरा को गुरुद्वारे में शुरू किया। जिसके बाद से यह परंपरा अभी तक बनाई रखी है, जो अब भी चल रही है। साथ ही तब से पंजाब राज्य के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर यानी गोल्डन टेम्पल में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर आयोजित होता है।

गुरूनानक जी की तीन बड़ी शिक्षा

गुरु नानक जी की तीन बड़ी शिक्षा कि बात करे तो खुशहाली से जीने का मंत्र देती हैं। नाम जपो, किरत करो और वंड छको। यह सीखें कर्म से जुड़ी हुई हैं। जो हमें कर्म में श्रेष्ठता लाने की ओर ले जाती हैं।

नाम जपो

नाम जपो- गुरु नानक जी ने कहा है “सोचै सोचि न होवई, जो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहालिवतार”। यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम जपे और नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना और दोहराना।

किरत करो

किरत करो- यानी ईमानदारी से मेहनत कर आजीविका कमाना। श्रम की भावना सिख अवधारणा का भी केंद्र है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने एक अमीर जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में गरीब के कठिन श्रम के माध्यम से अर्जित मोटे भोजन को प्राथमिकता दी थी।

वंड छको

वंड छको- एक बार गुरुनानक जी दो बेटों और लेहना के साथ थे। सामने एक शव ढंका हुआ था। नानक जी ने पूछा इसे कौन खाएगा। बेटे मौन थे। लेहना ने कहा मैं खाऊंगा। उन्हें गुरु पर विश्वास था। कपड़ा हटाने पर भोजन मिला। लेहना ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया। नानक जी ने कहा लेहना को पवित्र भोजन मिला, क्योंकि उसमें समर्पण का भाव और विश्वास की ताकत है।

अंतिम समय में यह थे गुरुनानक देव

आपको बता दे की लाहौर से 120 किलोमीटर दूर करतारपुर गुरुद्वारा है। जहाँ गुरुनानक देव ने 22 सितंबर 1539 को अंतिम सांस ली थी। यह गुरुद्वारा रावी नदी के पास है। जो भारत और पाकिस्तान सीमा से सिर्फ 3 किलोमीटर दूर है। इस गुरुद्वारा को गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है। यह सिखों के प्रमुख धर्मस्थलों में से एक है। आपको बता दे की इस स्थान पर गुरुनानक देव ने अपने जीवन के 16साल बिताए थे।

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TAGGED: Golden Temple, Guru Nanak Jayanti, Gurudwara, Kartik Purnima Langar, Sikhism
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