विपक्ष ने सड़क से लेकर संसद तक सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। मुद्दा है मणिपुर हिंसा पर चुप्पी और उसी तर्ज़ पर अब विपक्ष लोकसभा में सरकार के खिलाफ ‘अविश्वास’ प्रस्ताव ला रहा है। फिलहाल स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है. ऐसे में अब लगभग तय हो गया है कि प्रधानमंत्री को मणिपुर के मुद्दे पर जवाब देना पड़ेगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन, अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है, जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है जिसमें सदन के सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकते हैं। लेकिन आगे की वोटिंग मे ससंद के संख्याबल महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर फिलहाल की स्थिति देखें तो अभी मोदी सरकार काफी मजबूत स्थिति में दिखाई देती है। इसके बावजूद विपक्ष की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव लाया है। सवाल उठ रहा है कि आखिर संसद में संख्याबल कम होने के बावजूद विपक्ष की तरफ से ये अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया जा रहा है? हमारे हिसाब से विपक्ष सरकार को हावी होने का कोई मौका नहीं देना चाहता है। अविश्वास प्रस्ताव एक ऐसा तरीका है, जिसके जरिए विपक्ष पीएम मोदी को संसद में बुलाने की कोशिश कर रहा है। कुल मिलाकर सारे विपक्षी दल पीएम मोदी को ही घेरना चाहते हैं।’
कैसे लाया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव?
प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं। यह अविश्वास प्रस्ताव बहस के लिए तभी स्वीकार होता है जब कम से कम प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के पास 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। यानी, अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के प्रस्ताव पर कुल 50 सांसदों का हस्ताक्षर होना चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिन के अंदर इस पर चर्चा कराई जाती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराते हैं या फिर कोई फैसला ले सकते हैं।
किन प्रधानमंत्रियों के खिलाफ आ चुका है अविश्वास प्रस्ताव?
जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी समेत कई प्रधानमंत्रियों को इस प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। संसद के गठन के बाद से अब तक लोकसभा में कुल 27 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए जिनमें से 15 प्रस्ताव इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए लाए गए थे। इस दौरान कुछ बच गए तो वहीं मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने अविश्वास प्रस्ताव के कारण अपनी सरकारें गिरती देखीं।
हार तय फिर क्यूँ लाया जा रहा अविश्वास प्रस्ताव?
अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है। संख्याबल स्पष्ट रूप से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पक्ष में है। लोकसभा में विपक्ष के 150 से कम सांसद हैं। इसका मतलब कि मोदी सरकार को घबराने की जरूरत नहीं लेकिन विपक्ष इसे लाकर नवनिर्मित ‘I. N. D. I. A’ महागठबंधन की शक्ति का प्रदर्शन करेगा।