हमारे देश के सिस्टम में घोटालाकर्ताओं से ज्यादा ईमानदारों का जीवन व्यापम करना ज्यादा मुश्किल है। यह बात हाल ही में हुए आईएएस तुकाराम मूंधे के तबादले की खबर से साफ होती हैं। तुकाराम का पिछले 17 सालो में 20वी बार तबादला हुआ है। उनका शुरू से ही देशवासियों के हित में काम करने का उद्देश्य रहा है। तुकाराम ने बहुत ही कठनाइयों के साथ अपनी आईएएस की पढ़ाई की थी। उनके पिता एक साहूकार के कर्ज में डूबे हुए थे। पैसों के अभाव में उन्होंने अपना जीवन व्यापम किया था।
तुकाराम ने तीन प्रयासों के बाद साल 2005 में आईएएस की परीक्षा पास की थी। आईएएस बनने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग महाराष्ट्र के सोलापुर में ट्रेनी उप-कलेक्टर के रूप में हुई थी। पहली पोस्टिंग के तीसरे दिन ही, उन्होंने जिले के एक ताकतवर नेता के गैरकानूनी शराब ठिकाने में रेड मार दी थी। इस वजह से उनका 2 महीनों के अंदर ही पहला तबादला हो गया था। फिर उन्हें धरनी नाम के एक आदिवासी क्षेत्र में एक आदिवासी प्रोजेक्ट में लगा दिया गया था। इसके बाद उनका नांदेड़ में सहायक कलेक्टर के रूप में तबादला कर दिया गया था।
वहां पर उन्होंने तबादला होने के 3 महीनों बाद ही एक रेत माफिया का भांडा फोड़ कर दिया था, जिसके बाद उन्हें मारने की धमकियां मिलने लगी थी। उसके बाद 2007 में उन्होंने गैरकानूनी अतिक्रमण इमारतों के खिलाफ एक अभियान चलाया था, जिसके बाद उन पर मॉलेस्टेशन जैसे फर्जी मामले भी दर्ज होने लगे थे। उनका 2008 में फिर तबादला हुआ। इतने तबादले और मुसीबतों के बाद भी उनकी ईमानदारी में असर नहीं पड़ा।
2008 में उनकी नागपुर जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में पोस्टिंग हुई। वहां पर वह सरकारी स्कूल और अस्पताल में सरप्राइज़ विजिट करने पहुंच गए थे। वहां पर उन्होंने लापारवाही बरतने वाले शिक्षकों और डॉक्टरों को निलंबित कर दिया। शिक्षकों को निलंबित करने के बाद वहां पर शिक्षकों की अनुपस्थिति दर 10-12% से घटकर 1-2% रह गया है। साथ ही इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी सीईओ ने डॉक्टर को निलंबित किया हो।
फिर 2011 में उन्होंने जालान्य जिले के कलेक्टर के रूप में काम किया। वहां पर उन्होंने जनता की सालो से चली आ रही पानी की समस्या का समाधान, कुछ महीने में कर दिया था। दरअसल, जालान्य में जयकवाड़ी से पानी लाने का काम पिछले छह साल से रुका हुआ था। लेकिन उन्होंने उस काम को तीन महीनों में ही पूरा कर दिया था। इसके बाद 2012 में उन्होंने सोलापुर के 282 गांवों में पानी के टैंकरों की सुविधा करवाई थी। जिसके लिए उन्हें महाराष्ट्र सरकार से “बेस्ट कलेक्टर” का अवार्ड भी मिला था।
इसके बाद नवी मुंबई नगर निगम में उन्होंने आयुक्त के रूप में काम किया। उस दौरान उन्होंने “वॉक विद कमिश्नर” नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया था। इसमें वह हर हफ्ते के अंत में आम जनता के साथ टहलते हुए, उनकी शिकायत सुना करते थे। जिसके बाद जनता की जो भी शिकायत या मांग रहती थी, वह उसे तुरंत पूरा कर दिया करते थे। इस वजह से उन्हें जनता की ओर से “असल नायक” का खिताब भी मिला था। लेकिन कुछ लोगों को तुकाराम की यह लोकप्रियता रास नहीं आई और उनका वहां से भी बहुत जल्द तबादला हो गया।
तुकाराम मूंधे के हालिया तबादले के बाद जब उनसे पूछा गया कि, वह इतना सब होने के बाद भी अच्छे काम करने में क्यों लगे है? तो उन्होंने कहा कि, “वह खुद से पूछते हैं, अगर वह नहीं कर सकते, तो और कौन कर सकता है? आईएएस अफसर होने के नाते, अगर वह व्यवस्थाओं को नहीं बदल सकते, अगर वह नागरिकों को नेतृत्व नहीं दे सकते, अगर वह उन्हें प्रेरणा नहीं दे सकते, तो और कौन कर सकता है?” उनकी इसी ईमानदारी की वजह से सिस्टम की गंदी पॉलिटिक्स के चलते वह आज तक एक भी जगह टिक नहीं पाए हैं।