चंद्रयान-3 मिशन की तैयारियां इसरो में जोर-शोर से चल रही हैं। चंद्रयान-3 को रॉकेट के ऊपरी हिस्से में रख गया है। इसके बाद उसे असेंलबिंग यूनिट में ले जाकर जीएसएसवी-एमके3 (GSLV-MK3) रॉकेट से जोड़ दिया गया है। भारत के लिए यह एक बेहद रोमांचक क्षण है। जबकि चंद्रयान-3 देश का सबसे महत्वकांक्षी स्पेस मिशन है।
पहले दो चंद्र अभियानों के बाद यह तीसरा प्रयास है। इस मिशन को 12 से 19 जुलाई के बीच लॉन्च किया जाएगा लेकिन संभावित लॉन्च डेट 13 जुलाई 2023 है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो इसे आंध्र प्रदेश के तट पर मौजूद श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च करेगा। लॉन्चिंग के लिए जिस रॉकेट का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसका नाम जीएसएलवी-एमके3 (GSLV-MK3) है।
चंद्रयान-3 का उद्देश्य क्या हैं
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 का उद्देश्य, चंद्र सतह पर एक सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग क्षमताओं का प्रदर्शन करना है। इसके अलावा, इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोग करना और इंटरप्लेनेटरी मिशन के लिए आवश्यक नई तकनीकों का विकास और प्रदर्शन करना भी इसके अहम का उद्देश्य हैं।
मिशन के तहत चंद्रमा के चट्टानों की ऊपरी परत की थर्मोफिजिकल विशेषताएं, चंद्रमा पर भूकंप आने की फ्रीक्वेंसी, चंद्रमा की सतह पर प्लाज्मा वातावरण और उपकरण उतारे जाने वाले स्थान के निकट तत्वों की संरचना का अध्ययन करने वाले उपकरण भेजे जाएंगे। इसरो अधिकारियों के अनुसार, चंद्रयान-3 में एक प्रणोदन मॉड्यूल होगा, जो लैंडर और एक रोवर को लेकर जाएगा और यह उन्हें चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने में सक्षम बनाएगा।
इसरो के अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम कार्यालय की पूर्व निदेशक डॉ. सीता ने बताया कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र की नर्म सतह पर उतरेगा, उससे रोवर बाहर आएगा और चंद्रमा की सतह पर घूमना शुरू करेगा। उन्होंने कहा कि हमारी अपेक्षा है कि यह चंद्रमा की सतह के गुणों का अवलोकन करे। लैंडर के साथ कुछ ‘पेलोड’ भी जाएंगे और वह भी विभिन्न प्रयोग सतह पर करेंगे तथा जांच करेंगे।
डॉ. सीता के अनुसार, प्रयोग एक चंद्र दिवस के दौरान किए जाएंगे यानी इनमें पृथ्वी के करीब 30 दिन लगेंगे। उन्होंने कहा, करीब 15 दिन बाद रात होगी और तापमान शून्य से 170 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे कम हो जाएगा। अगले 15 दिन में स्थिति बदलेगी। लेकिन, शुरुआती 15 दिन बेहद अहम होंगे।
चंद्रयान-3 का मिशन क्या है?
चंद्रयान-3 का मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखेगा, जिसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर उतरने में असफल हुआ, उन पर फोकस किया गया है। चंद्रयान -3 का लॉन्च चंद्रयान -2 के लैंडर-रोवर के दुर्घटनाग्रस्त होने के चार साल बाद होने जा रहा हैं। इस मिशन के चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होने की उम्मीद है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता है।
चंद्रयान-3 को एलवीएम3 के साथ जोड़ा जा रहा है
रॉकेटों में शक्तिशाली प्रणोदन प्रणालियां होती हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पर काबू पाकर उपग्रहों जैसी भारी वस्तुओं को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए जरूरी भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। एलवीएम3 भारत का सबसे भारी रॉकेट है। इसका कुल भार 640 टन, कुल लंबाई 43.5 मीटर और पांच मीटर व्यास पेलोड फेयरिंग है। प्रक्षेपण यान आठ टन तक पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षाओं (LEO) तक ले जा सकता है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 200 किमी दूर है। हालांकि, जब भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षाओं (GTO) की बात आती है, तो यह केवल लगभग चार टन भार ले जा सकता है। भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा पृथ्वी से काफी आगे लगभग 35,000 किमी तक स्थित है।
एलवीएम3 ने 2014 में अंतरिक्ष में अपनी पहली यात्रा की और 2019 में चंद्रयान -2 भी ले गया था। इस साल मार्च में यह LEO में लगभग 6,000 किलोग्राम वजन वाले 36 वनवेब उपग्रहों को ले गया, यह दूसरी बार था जब एलवीएम3 ने व्यावसायिक लॉन्च किया। पहली बार अक्टूबर 2022 में इसने वनवेब इंडिया-1 मिशन को लांच किया था।
एलवीएम3 के घटक क्या हैं
रॉकेट में कई अलग होने वाले हिस्से होते हैं। वे रॉकेट को ऊर्जा देने के लिए विभिन्न प्रकार के ईंधन जलाते हैं। एक बार जब उनका ईंधन खत्म हो जाता है, तो वे रॉकेट से अलग हो जाते हैं और गिर जाते हैं। मूल रॉकेट का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही चंद्रयान-3 की तरह उपग्रह के गंतव्य तक जाता है। एलवीएम3 अनिवार्य रूप से एक तीन चरण वाला प्रक्षेपण यान है। इसमें दो ठोस बूस्टर (S200), कोर तरल ईंधन-आधारित चरण (L110) और क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (C25) शामिल हैं।