नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही थी, लेकिन यह भी जुमला ही साबित हुआ। हरित-क्रांति के बाद देश में खेती से उत्पादन बढ़ा है, लेकिन फसलों की कीमत 19 फीसद बढ़ी है, जबकि अन्य क्षेत्रों में वेतन बढ़ोतरी 150 फीसद से ज्यादा हुई है। 2021 में देश में 10881 किसानों ने खुदकुशी की। 2018 के मुकाबले उद्यमियों की आत्महत्या में 54 फीसद बढ़ोतरी दर्ज की गई। किसानों की कर्ज माफी के साथ फसलों की कीमत में तीन गुना बढ़ोतरी होनी चाहिए। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि पार्क, म्यूजियम, स्टेडियम, मूर्ति लगाने के लिए सरकार के पास खजाना है, लेकिन गोदाम बनाने के लिए नहीं है। देश में अब 11 करोड़ 89 लाख किसान पांच एकड़ में खेती करते हैं।
हर 41 मिनट में खुदकुशी !
कृषि उत्पादन बढ़ा है, फिर भी किसान क्यों भूखा मरने को मजबूर हैं। हर 41 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है, फिर भी भारत कृषि प्रधान देश कहलाता है। किसान की औसत मासिक आय 2115 रुपए है। एक एकड़ खेती करने की लागत 4400 रुपए है। फसल अच्छी हुई, तो 10500 रुपए कमाई होती है। आज भी 52 फीसद किसान मॉनसून के भरोसे हैं। बारिश अच्छी हुई तो कमाई होती है। इस सब के बावजूद दुनिया में सबसे ज्यादा ट्रैक्टर भारत में बिकते हैं। खेती घाटे का सौदा होने से रोजनदारी, मजदूरी करने वाले शहरों में दिहाडी करते हैं। एनसीआरबी के मुताबिक कॉर्पोरेट सेक्टर में होने वाली आत्महत्या की बजाय किसानों की संख्या ज्यादा है।
75 साल बाद भी हाल बेहाल
अन्नदाता, जो देश भर के लोगों का पेट भरता है, उसकी बदहाली आजादी के 75 साल बाद भी नहीं सुधरी है। अब खेती की जमीन पर उद्योग लग रहे हैं। बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल बन रहे हैं। खेती के लिए जमीन कम होती जा रही है। औद्योगिकीकरण की तेज रफ्तार ने भी खेती को घाटे का सौदा बना दिया है। किसानों के सहायक उद्योग खत्म हो गए हैं। किसान आलू सस्ता होने पर फेंक देता है। टमाटर को मंडी या सड़क पर कुचलने के लिए डाल देता है, लेकिन चिप्स या टोमैटो सॉस बनाने के उद्योग का नहीं सोचता है। सरकार भी कृषि आधारित उद्योग लगाने में उसकी मदद नहीं करती है। किसान कब तक खुदकुशी करेगा? उसे मरने से बचाने के लिए कृषि आधारित उद्योग एक बड़ा विकल्प है, लेकिन किसी का इस पर ध्यान नहीं है।