क्या तुमने कभी सोचा है कि कोई सच में गायब हो सकता है, ताले बिना चाभी के खुल सकते हैं, या फिर कोई मौत को मात दे सकता है या जादू असल में क्या होता है? क्या यह सिर्फ़ हाथों की सफ़ाई है, या फिर हमारी समझ और कल्पना का एक खेल? या फिर यह सब केवल एक भ्रम है, जिसे हमारा दिमाग़ मानने को मजबूर हो जाता है?
जादू और हक़ीक़त के बीच का रिश्ता हमेशा से जटिल रहा है। दोनों में फर्क शायद सिर्फ़ इतना ही है कि जादू वो चीज़ें दिखाता है जिन्हें हम नामुमकिन समझते हैं, और हक़ीक़त वो चीज़ें हैं जिन्हें हम मानने को मजबूर होते हैं। लेकिन क्या कभी ऐसा हो सकता है कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हों?
अगर ध्यान से देखें, तो हमारी पूरी ज़िंदगी भी एक जादू से कम नहीं। हमारा जन्म…एक ऐसा चमत्कार जिसे कोई पूरी तरह समझ नहीं सकता। हमारा प्यार एक ऐसा भ्रम जो हमें सच से ज़्यादा सच्चा लगता है। हमारी मौत…एक ऐसा रहस्य जिसे कोई कभी हल नहीं कर सका। हूडिनी जैसे लोग इसी रहस्य को तोड़ने की कोशिश करते थे। उनके लिए जादू सिर्फ़ एक तमाशा नहीं, बल्कि हक़ीक़त की सीमाओं को चुनौती देने का एक तरीका था। हूडिनी ने यही साबित करने की कोशिश की। उनके लिए हथकड़ियां सिर्फ़ धातु के टुकड़े नहीं थीं, बल्कि समाज की उन बेड़ियों का प्रतीक थीं जो हमें बांधकर रखती हैं। उनके लिए पानी से भरे ताबूत से निकलना सिर्फ़ एक स्टंट नहीं था, बल्कि यह साबित करना था कि अगर मन तैयार हो, तो इंसान मौत को भी चुनौती दे सकता है।
लेकिन क्या सच में कोई मौत को हरा सकता है? या फिर यह भी सिर्फ़ एक भ्रम है? यही वो सवाल है जिससे हूडिनी की कहानी शुरू होती है।
हैरी हूडिनी! यह नाम सुनते ही ज़ेहन में एक ऐसा शख़्स उभरता है जो जंजीरों को तोड़कर भाग जाता था, ताले तोड़कर खुद को आज़ाद कर लेता था, और मौत को धोखा देकर लौट आता था। लेकिन क्या कोई इंसान सच में मौत को हरा सकता है? क्या जादू सिर्फ़ हाथों की सफ़ाई है, या फिर इंसान की इच्छाशक्ति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण?
मार्च 24, 1874 हंगरी के एक यहूदी परिवार में जन्मे एरिक वीस, जिन्हें दुनिया हैरी हूडिनी के नाम से जानेगी, एक ऐसे दौर में पले-बढ़े जब जादूगरी सिर्फ़ तमाशा नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता को चुनौती देने का ज़रिया भी थी। उनके पिता, रब्बी मेयर सैमुअल वीस, अमेरिका में बेहतर जीवन की उम्मीद लेकर आए, लेकिन विस्कॉन्सिन के एप्पलटन में ज़िंदगी उतनी आसान नहीं थी।
गरीबी, संघर्ष और प्रवासी होने का बोझ, यह सब एरिक के बचपन का हिस्सा थे। लेकिन इन कठिनाइयों के बीच एक चीज़ थी जो उनके भीतर पल रही थी…खुद को हर बंधन से मुक्त करने की चाहत। क्या यह सिर्फ़ रस्सियों और हथकड़ियों से आज़ादी की बात थी, या फिर एक यहूदी प्रवासी के बेटे की अंदरूनी जंग, जिसे हमेशा यह साबित करना था कि वह अपने भाग्य का मालिक खुद है?
एक सर्कस कलाकार के रूप में शुरुआत करने वाले हूडिनी को शुरुआती दौर में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली। 1882 में जब उनका परिवार न्यूयॉर्क पहुंचा, तब उनके पास सिर्फ़ सपने थे, लेकिन वो भी अधूरे। वॉडविल थियेटरों में वह मामूली जादू दिखाते, लेकिन दर्शकों का उत्साह ठंडा रहता।
1894 में उनकी मुलाकात बीट्रिस रहनर से हुई, जो बाद में उनकी पत्नी और मंच पर उनकी सहयोगी बनीं। यह शादी सिर्फ़ एक रिश्ते की नहीं, बल्कि एक नई जादूगरी यात्रा की शुरुआत थी।
1900 के दशक की शुरुआत में, हूडिनी ने जादू के खेलों से अलग अपने असल हुनर को पहचाना…”एस्केप आर्ट” यानी खुद को हर तरह के बंधन से आज़ाद कर लेना। वह हथकड़ियों में जकड़े जाने लगे, रस्सियों में बांधे जाने लगे, ताले लगे डिब्बों में बंद किए जाने लगे, और हर बार उन्होंने खुद को छुड़ा लिया।
हूडिनी का हर करतब यही सवाल उठाता था…क्या सच में कोई इंसान बंदिशों से मुक्त हो सकता है? या फिर यह सब एक भ्रम है?
सिगमंड फ्रायड के सिद्धांतों के अनुसार, इंसान की सबसे बड़ी लालसा ‘मुक्ति’ है समाज के नियमों से, व्यक्तिगत कमजोरियों से, और यहाँ तक कि मृत्यु से भी। हूडिनी इसी दर्शन को अपने हर स्टंट में साबित करते थे। जब वह पानी से भरे एक बंद टैंक से बाहर आते, तो लोग हैरान रह जाते। लेकिन असल सवाल यह था…क्या वह सिर्फ़ एक ट्रिक कर रहे थे, या फिर जीवन की उस सच्चाई से खेल रहे थे जिससे हर कोई डरता है?
मौत के साथ हूडिनी का रिश्ता अजीब था। वह इसे हराने के लिए स्टंट करते, खुद को ताबूतों में बंद करवाते, डूबते पानी में गिरवाते, ज़ंजीरों में जकड़वाते मानो वह खुद को यह साबित करना चाहते थे कि वह मौत के पार जा सकते हैं।
लेकिन 1926 में, जब एक कॉलेज छात्र ने उनसे पूछा कि क्या वह पेट पर बिना तैयारी किए मुक्का झेल सकते हैं, तो हूडिनी ने हां कह दिया। यह मुक्का उनके लिए घातक साबित हुआ। उनका अपेंडिक्स फट गया, संक्रमण फैला, और 31 अक्टूबर 1926 को, हैरी हूडिनी इस दुनिया से चले गए।
पर क्या वह सच में गए? हूडिनी ने अपनी पत्नी बीट्रिस से वादा किया था कि अगर मृत्यु के बाद आत्मा का कोई अस्तित्व है, तो वह उनसे संपर्क करेंगे। लेकिन वो हमेशा के लिए गायब हो गए और कभी नहीं लौटे!
हूडिनी सिर्फ़ जादूगर नहीं थे, मैं उन्हें एक दार्शनिक भी कहूँगा जिन्होंने हर परफॉर्मेंस में यह सवाल छोड़ा क्या हम सच में आज़ाद हैं, या सिर्फ़ एक भ्रम में जी रहे हैं?
उनकी ज़िंदगी एक उत्तर की तरह थी। अगर तुममें इच्छाशक्ति है, तो तुम किसी भी ताले को खोल सकते हो, किसी भी जंजीर को तोड़ सकते हो। लेकिन अगर नहीं, तो तुम खुद अपनी सबसे बड़ी जेल में क़ैद हो। क्यूंकि जादू असल में आंखों का धोखा नहीं, दिमाग़ की आज़ादी है। जो सच को समझ ले, वो खुद असली जादूगर है सामने वाला नहीं!