रतलाम में रहने वाला 17 साल का ललित पाटीदार बचपन से ही लोगों की जिज्ञासा का केंद्र रहा है। जहाँ आम बच्चे अपने दोस्तों संग खेल-कूद में मशगूल होते हैं, वहीं ललित की दुनिया चार दीवारों में सीमित हो गई थी। कारण? एक Rare genetic condition ‘Hypertrichosis’.
यह कोई आम बीमारी नहीं है। Hypertrichosis या ‘वेयरवोल्फ सिंड्रोम’ एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति के शरीर पर असामान्य रूप से घने और लंबे बाल उग आते हैं। चेहरे से लेकर हाथ, पैर और पीठ तक… हर जगह। यह सिंड्रोम इतना दुर्लभ है कि पूरी दुनिया में अब तक केवल 50 से भी कम केस दर्ज किए गए हैं। और ललित उनमें से एक है।
हाइपरट्रिकोसिस एक अत्यंत दुर्लभ बीमारी है, जो दुनिया में हर 1 अरब लोगों में से केवल 1 को प्रभावित करती है। इतिहास में अब तक 50 से कम मामले दर्ज किए गए हैं। यह आनुवंशिक भी हो सकता है और कभी-कभी बाहरी दवाओं या हार्मोनल असंतुलन के कारण भी उत्पन्न हो सकता है।
स्पेन की मैड्रिड यूनिवर्सिटी द्वारा कि गई एक रिसर्च के अनुसार, अब तक जिन मामलों का डॉक्यूमेंट किया गया है, उनमें से अधिकांश में यह विकार जन्मजात था। मेक्सिको में Hypertrichosis के कई केस सामने आए हैं, जिन्हें “वेयरवोल्फ फैमिली” के रूप में जाना जाता है। 19वीं सदी में अमेरिका और यूरोप में कई मामलों को सर्कस में दिखाया जाता था, जिससे पीड़ितों का शोषण होता था। ऐसा ही एक किरदार हम फिल्म ‘The Greatest showman’ में भी देख चुके हैं।
जब ललित छोटा था, तब पहली बार उसके माता-पिता ने गौर किया कि उसके चेहरे और शरीर पर असामान्य रूप से घने बाल उग रहे हैं। गाँव के लोगों की अजीब नज़रें, स्कूल में बच्चों का मज़ाक उड़ाना और लोगों के ताने,यह सब उसके लिए रोज़मर्रा की हकीकत थी।
ललित ने एक इंटरव्यू में बताया, “स्कूल में बच्चे मुझे भूत कहते थे, कुछ मुझे जानवर समझकर दूर भागते थे। मैं अपने ही शरीर में अजनबी जैसा महसूस करता था। ” “मैं अलग हूँ, लेकिन अस्वीकार्य नहीं। मैं Hypertrichosis से पीड़ित हूँ, पर यह मेरी कमजोरी नहीं, मेरी ताकत है।”
समाज की क्रूरता ने उसे अंदर तक तोड़ दिया। उसकी पहचान सिर्फ एक बीमारी तक सिमट कर रह गई थी।
ललित ने डर को ही अपनी शक्ति बना लिया। वह जानता था कि वह एक आम जिंदगी नहीं जी सकता, लेकिन वह असाधारण बन सकता है। उसके संघर्ष, आत्मस्वीकृति और साहस ने उसे अब ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ तक पहुँचा दिया।
आज, वह अपने लुक्स को छिपाने की बजाय गर्व से अपनाता है। वह लोगों को यह संदेश देना चाहता है कि “हमारी पहचान हमारी त्वचा या हमारे बालों से नहीं, बल्कि हमारे कामों और सोच से बनती है।”
Hypertrichosis का कोई स्थायी इलाज नहीं है। लेज़र ट्रीटमेंट और हेयर रिमूवल तकनीकें अस्थायी राहत दे सकती हैं, लेकिन मानसिक और भावनात्मक घावों को भरने के लिए समाज को बदलना ज़रूरी है।
ललित जैसे बच्चों को नज़रें चुराने की ज़रूरत नहीं, बल्कि उन्हें अपनाने और समझने की ज़रूरत है। उनकी असली समस्या उनके शरीर के बाल नहीं, बल्कि समाज की असंवेदनशीलता है।
ललित की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन सभी के लिए एक संदेश है जो किसी न किसी रूप में समाज की क्रूरता का शिकार होते हैं। यह कहानी Hypertrichosis से कहीं ज़्यादा, आत्म-स्वीकृति और हिम्मत की है। यह दिखाती है कि भले ही शरीर कैद हो, लेकिन आत्मा कभी बंदी नहीं हो सकती।