13 जनवरी को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर प्रारंभ हुए महाकुंभ का 26 फरवरी यानि महाशिवरात्रि पर समापन हो गया। 66 करोड़ से अधिक लोगों ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति की। 44 दिनों तक चला यह महाउत्सव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा, साथ ही विवादों से भी भरा रहा।
विभिन्न क्षेत्रों से दिग्गज शामिल हुए!
इस भव्य महाकुंभ में अलग अलग क्षेत्रों से आए दिग्गजों ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। राजनीति, फिल्म, संगीत, व्यापार जगत से जुड़े लोगों ने डुबकी लगाकर अपनी आत्मा की शुद्धि की। कई विदेशी मेहमान भी यहां नज़र आए थे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, व्यापारी गौतम अदाणी, मुकेश अंबानी, सुधा मूर्ति, कुमार विश्वास, अनुपम खेर, कैलाश खेर, कैटरीना कैफ, रवीना टंडन, अनिल कुंबले, भूटान नरेश और कई राज्यों के मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों, राज्यपाल इत्यादि ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
कई हादसों का शिकार!
महाकुंभ हादसों से भी अछूता नहीं रहा। इस 44 दिनों की अवधि में 100 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 150 लोगों की मौत और 385 के घायल होने का अनुमान हैं। प्रयाग पहुंचने की जल्दी और पर्याप्त नींद न हो पाना इसके प्रमुख कारण माने गए हैं। इसके अलावा यातायात में भारी अव्यवस्था होने के कारण यात्रियों को मुश्किलों से गुजरना पड़ा।
सफाई में भी रचे कीर्तिमान!
इस दिव्य आयोजन ने स्वच्छता में कई रिकॉर्ड बनाए। महाकुंभ मेला क्षेत्र के चारों मंडलों में 19,000 सफाई कर्मचारियों ने एक साथ सफाई कर नया इतिहास बनाया। 300 लोगों ने नदी की सफाई का रिकॉर्ड बनाया, वहीं करीब 10,000 लोगों ने हैंड पेंटिंग कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। मेले के आख़िरी दिन 700 शटल बसें संचालित हुई, वो भी अपने आप में एक नया कीर्तिमान था।
निष्कर्ष
महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक अहम प्रतीक भी। इस महाआयोजन ने अलग अलग परंपराओं को एक साथ लाने का काम किया। इस आयोजन ने दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की गहराई से परिचित कराया। इस दौरान हुए हादसों से सबक लेकर आने वाले सिंहस्थ तथा नाशिक कुंभ में तैयारी को बेहतर भी किया जा सकता हैं।