भारत हमेशा से ही धर्म, अनेक मत-पंथ, संप्रदायों की जननी रहा हैं। समय-समय पर अनेक महापुरुष इस धरा पर अवतरित हुए और इसे अपने ज्ञान से सींचा। ऐसे ही एक महापुरुष जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकर भगवान महावीर थे, जिनकी जयंती (महावीर जयंती) जैन समुदाय का एक बेहद ही अहम और श्रद्धास्पद त्योहार होता हैं। महावीर जयंती का आयोजन चैत्र माह की 13वीं तिथि को किया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई के बीच पड़ती है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी भगवान महावीर के जीवन और उनके उपदेशों को याद करते हैं और उनका पालन करने का संकल्प लेते हैं।
भगवान महावीर का जन्म 599 BC में वैशाली या नालंदा जिले में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय और कुंडलपुर के राजा थे वहीं उनकी माता त्रिशाला लिच्छवी गणराज्य की राजकुमारी थी। उनके जन्म का नाम “वर्धमान” था। इसके पीछे का कारण यह था कि उनके जन्म के बाद राज्य में सुख-समृद्धि और उन्नति का आगमन हुआ। राजपरिवार का एक सदस्य होने के नाते उनकी पास सभी सुख-सुविधाएं थीं। लेकिन 30 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर-परिवार और सभी प्रकार के सुखों का त्याग कर संन्यास लेने का फैसला किया। उन्होंने साधना के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति के लिए 12 सालों तक अनेक कष्टों को सहते हुए कठोर तपस्या की। इस साधना के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिससे उन्होंने जीवन के सत्य को समझा।
भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी से बचना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (वस्तु की अधिकता से बचना) के सिद्धांतों पर जोर दिया। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। भगवान महावीर का अभिषेक किया जाता हैं। इसके बाद प्रतिमा को रथ में बैठकर शोभा यात्रा भी निकाली जाती हैं। जैन धर्म मानने वाले इस दिन व्रत रखते हैं और उनके उपदेशों का पालन करते हैं। इस दिन गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान भी दिया जाता हैं।
महावीर जयंती केवल जैन समुदाय के लिए नहीं बल्कि सनातन धर्म की सभी शाखाओं के लिए एक विशेष पर्व हैं। यह दिन भगवान महावीर के आदर्शों और उनके उपदेशों का पालन करने की प्रेरणा देता हैं। महावीर जयंती हमें अहिंसा, सत्य, और शांति का मार्ग दिखाती है और इन सिद्धांतों के आधार पर अपना जीवन चलाने की प्रेरणा देती है।