रियो डी जेनेरियो। फुटबॉल के दम से दुनिया भर में पहचाने जाने वाले ब्राजील में लडक़े-लड़कियों का फर्क होता था। इसकी मार झेलने वाली फुटबॉलर दीमा मेंडिस (59) की वो काली यादें आज तक ताजा हैं। महिला विश्व कप जारी है।इसी बीच, दीमा ने आपबीती सुनाई कि न जाने कितनी बार गिरफ्तार हुई और गालियां सुनीं।
फुटबॉल के कारण गिरफ्तारी
मैं ब्राजील के उत्तर-पूर्वी इलाके कामाकरी में रहती थी। लडक़ों को फुटबॉल खेलता देख कर दिलचस्पी जाग गई। सरकार और पुलिसवालों को पसंद नहीं था कि लड़कियां फुटबॉल खेलें। हमने मैदान के पास ही एक सुरंग खोद ली। जब भी कोई आता, तो उसी में छिप कर बैठ जाते थे। सब ठंडा होने के बाद फिर खेलने लग जाते। कई साल तक यह चलता रहा। फिर एक दिन किसी ने शिकायत कर दी और पुलिस मुझे ले गई। बुरा बर्ताव तो नहीं किया, लेकिन सख्त हिदायत दी कि अब फुटबॉल मत खेलना। पुलिस टीम में से कई लोग नाराज थे कि हम लड़कियां ब्राजील की संस्कृति खराब कर रही हैं। उन्होंने यह तक कहा कि अगर अब फुटबॉल खेलते दिखीं, तो सजा के लिए तैयार रहना। जिन लडक़ों के साथ खेलते थे, उनमें से भी ज्यादातर हमें पसंद नहीं करते थे। उनकी गिनती कम रहती थी, तभी खेलाते थे। जब उनकी पूरी टीम बन जाती थी, तो हमें बाहर खड़े होकर देखने के लिए कह देते थे।
राष्ट्रपति का ढीला रवैया
तब के राष्ट्रपति गेटुलियो वर्गास के सामने लड़कियों को फुटबॉल खेलने से रोकने का मामला पहुंचा, तो वो भी राजी हो गए। सख्त कानून तो नहीं बनाया, लेकिन सुरक्षा गार्ड और पुलिस को कह दिया कि जैसा उन्हें ठीक लगे, करें। कुछ इलाकों में इक्का-दुक्का लड़कियां खेलती थीं, लेकिन ज्यादातर जगह लड़कियों को फुटबॉल से दूर कर दिया गया। ज्यादातर जानकारों का मानना था कि फुटबॉल खेलने से उनकी मां बनने की ताकत पर फ र्क पड़ेगा। दूसरी शारीरिक परेशानियां भी हो सकती हैं, क्योंकि वो उतनी मजबूत नहीं हैं। लड़कियों के फुटबॉल खेलने का यही हाल ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के कुछ इलाकों में भी था, लेकिन ब्राजील में सख्ती ज्यादा हुई। 1979 में जब लड़कियों को फुटबॉल खेलने की इजाजत मिली, तब तक पुरुषों की टीम तीन विश्व कप जीत चुकी थी। अगर लड़कियों को भी रोका नहीं जाता, तो यही कामयाबी ब्राजील की महिला टीम भी हासिल कर सकती थी। मुझ जैसी हजारों लड़कियां सही उम्र में फुटबॉल नहीं खेल सकीं। बाद में मौका मिला भी, तो उम्र अड़चन डालने लगी।