मणिपुर में 3 मई 2023 से चल रहे कुकी-मैतेई संघर्ष के बाद, 9 फरवरी को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया हैं। उनके त्यागपत्र के बाद पार्टी नए मुख्यमंत्री की तलाश कर रही थी, लेकिन किसी एक नाम पर सहमति न बन पाने के कारण राष्ट्रपति शासन लगाया गया। राज्य में लागू होने वाला ये 11वा राष्ट्रपति शासन हैं।
क्यों आई ये स्थिति?
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने के कई कारण हैं। लंबे समय से चली आ रही जातीय हिंसा का समाधान न हो पाने के कारण एन. बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद भाजपा एक ऐसे नेता की तलाश में थी, जो दोनों समुदायों को साथ लेकर चल सके, क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम के बाद कुकी विधायकों को मैतेई मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं था और मैतेई विधायकों को कुकी मुख्यमंत्री। इसके अलावा, विधानसभा अध्यक्ष टी. सत्यब्रत सिंह और बीरेन के गुटों को भी संतुष्ट करना ज़रूरी था। इसके लिए पूर्वोत्तर भारत के प्रभारी और सांसद संबित पात्रा कई दिनों से वहां डेरा डाले हुए रहे, कई बैठकें हुई, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। पात्रा दो बार राज्यपाल से भी मिले, लेकिन विधायक दल के नेता का नाम तय नहीं हो सका जिसके कारण वे सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सके।
क्या हैं राष्ट्रपति शासन ?
राष्ट्रपति शासन का मतलब होता हैं राज्य में सरकार का निलंबन और सीधे राष्ट्रपति का शासन लागू होना। राज्य का सारा नियंत्रण राष्ट्रपति के हाथों में चला जाता हैं और राज्यपाल उसके संवैधानिक मुखिया बन जाते हैं। भारत के संविधान के आर्टिकल 356 के तहत, यदि राज्य सरकार संवैधानिक नियमों के अनुसार काम नहीं कर पाती हैं, तो सीधा केंद्र सरकार राज्य पर शासन का अधिकार पा सकती हैं। इसके बाद राज्यपाल ही राज्य के कामकाज को चलाते हैं। वे अन्य अधिकारियों को भी नियुक्त कर सकते हैं।
किस प्रकार की घटनाएं हुई?
यह हम सभी जानते हैं कि वहां पर अब तक किस प्रकार की घटनाएं हो चुकी हैं। हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 1000 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। हिंदू मंदिरों और ईसाई चर्चों को बहुत नुकसान भी पहुंचाया गया और 60,000 से अधिक लोग घरों से बेघर हो गए। हम आशा करते हैं कि स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो और राज्य में पुनः हंसी-खुशी, आपसी विश्वास और भाईचारे का वातावरण हो।